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विचार हीनता के दौर में विचार के पक्ष में खड़े होना ज़रूरी

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इन्दौर। विचारहीनता के दौर में कविता का विचार के साथ खड़ा होना आवश्यक है। जनवादी लेखक संघ, इंदौर द्वारा आयोजित 131वें मासिक रचना पाठ में वरिष्ठ जनवादी लेखक चिंतक सुरेश उपाध्याय ने इस बात पर ज़ोर दिया। वे युवा कवि अनिरुद्ध जोशी की कविताओं पर बोल रहे थे। इस आयोजन में अनिरुद्ध जोशी ने घर में, एक कमरा विचार, मूर्ति भंजक, अंतिम इच्छा, मुझे हाथी होने दो सहित कुछ कविताओं का पाठ किया।

चर्चा की शुरुआत करते हुए प्रदीप कान्त ने कहा कि कविता या तो स्मृति से उपजती हैं या समय और समाज पर कवि की तीक्ष्ण दृष्टि से, यहाँ महत्वपूर्ण यह है कि विचार हीनता के दौर में यह कवि विचार की बात करता है। देवेन्द्र रिणवा ने कहा कि इन कविताओं में दर्शन के साथ साथ हमारा वर्तमान समय भी नज़र आता है लेकिन कुछ नई कविताएँ और पढ़ी जाती तो कवि के विकास क्रम को समझने में मदद मिलती। उन्होंने कहा कि पाठ और बेहतर हो सकता था।

प्रदीप मिश्र ने उनकी दो छोटी-छोटी कविताओं का पाठ करते हुए कविता के बारे विस्तार से बात की। उन्होंने कहा कि बात बोलती है और कवि को ईमानदार और बेबाक़ होना चाहिए। जिस कविता में समय की लाउडनेस और कविता की लाउडनेस में अनुनाद होने लगता है तो वह हमारे समय को बेहतरीन तरीके से अभिव्यक्त करती है। इसके लिए उन्होंने कुछ कविताओं के उदाहरण भी दिए। उन्होंने कविता की संवेदना और उसकी रागात्मकता पर पर भी चर्चा की।

चुन्नीलाल वाधवानी ने कहा कि कविता पाठ में आवाज़ बुलंद रखी जाए तो वरिष्ठ पत्रकार कीर्ति राणा ने कविता पाठ पर चर्चा करते हुए कहा कि यह भी एक अभ्यास है। उन्होंने कहा कि अनिरुद्ध की कविताओं में एक फोटोग्राफी नज़र आती है। बाद में चुन्नीलाल वाधवानी ने अपनी कुछ सिंधी कविताओं का पाठ किया। कार्यक्रम का संचालन प्रदीप कान्त ने किया और आभार देवेन्द्र रिणवा ने।

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