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पुरस्कार ठुकराने वाले देशभक्त उमराव खान की कहानी जो आपको हैरान कर देगी!

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अज़हर उमरी, आगरा। उमराव खान यूसुफज़ई, जो पठान वंश से ताल्लुक रखते थे, का परिवार मुगल काल में पश्तून इलाकों से दिल्ली आया था। बाद में, वे दिल्ली से उत्तर प्रदेश के एटा जिले में अवागढ़ बस गए। उनकी जड़ें गहरी थीं, लेकिन उनका दिल हमेशा देश की सेवा के लिए धड़का। उमराव खान की कहानी सिर्फ़ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि एक ऐसे नायक की है, जिसने अपनी ज़िंदगी देश की आज़ादी के लिए कुर्बान कर दी।

गांधी जी के रास्ते पर चले

बचपन में ही उमराव खान महात्मा गांधी के विचारों से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने स्कूल छोड़ दिया। गांधी जी का असर उन पर ऐसा हुआ कि वे पूरी तरह स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। किताबों और पढ़ाई से ज्यादा, उन्हें देश को आज़ाद कराने का जुनून था। गांधी जी के सत्य और अहिंसा के रास्ते पर चलते हुए, उन्होंने आज़ादी की लड़ाई में कोई कसर नहीं छोड़ी।

पुरस्कारों से दूरी, देश से प्यार

उमराव खान का जीवन देशभक्ति की मिसाल है। उन्होंने न कभी सरकार से कोई सम्मान लिया, न ही कोई पुरस्कार स्वीकार किया। उनका मानना था कि देश की सेवा ही उनका सबसे बड़ा पुरस्कार है। आज़ादी के लिए उनकी मेहनत और समर्पण ने उन्हें एक सच्चा स्वतंत्रता सेनानी बनाया। आज भी उनकी कहानी हमें प्रेरित करती है कि सच्ची देशभक्ति का मतलब है बिना किसी लालच के देश के लिए जीना।

परिवार की विरासत

उमराव खान के तीन बेटों—एन खान, अबरार हुसैन और जमाल अहमद—ने आज़ादी के बाद देश की सेवा को चुना। तीनों ने सरकारी नौकरी में, खास तौर पर कारागार विभाग में, अपनी सेवाएँ दीं। यह उनके पिता की देशभक्ति की भावना को दर्शाता है, जो उनके परिवार में भी बनी रही। उमराव खान की विरासत उनके बेटों के ज़रिए आगे बढ़ी।

अंतिम यात्रा

उमराव खान का निधन उनके बड़े बेटे एन खान के घर हुआ। उन्हें आगरा के लाल सैय्यद कब्रिस्तान में सुपुर्द-ए-खाक किया गया। उनकी मृत्यु के साथ ही एक युग का अंत हुआ, लेकिन उनकी कहानी और उनका बलिदान आज भी लोगों के दिलों में ज़िंदा है।

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