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अमेरिका का नया टैरिफ प्लान: भारतीय दवा कंपनियों पर मंडराया संकट का बादल

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अमेरिका में अगर दवाइयों पर टैरिफ लगाने की योजना सच हुई, तो भारतीय दवा कंपनियों के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं। हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस बात के संकेत दिए हैं कि वे विदेशी दवाओं पर भारी शुल्क लगाकर अमेरिकी उत्पादन को बढ़ावा देना चाहते हैं। भारत, जो जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा निर्यातक है, इस फैसले से सीधे प्रभावित हो सकता है। हर साल अरबों डॉलर की दवाएं अमेरिका भेजने वाली भारतीय कंपनियों के सामने अब नई चुनौतियां खड़ी हो रही हैं। आइए जानते हैं कि यह बदलाव हमारे लिए क्या मायने रखता है।

दवा उद्योग पर क्यों पड़ सकता है असर?

भारत का दवा उद्योग अमेरिका के स्वास्थ्य ढांचे का अहम हिस्सा है। 2024 में भारत ने अमेरिका को 12.72 अरब डॉलर की दवाएं निर्यात कीं, जो सस्ती और गुणवत्तापूर्ण जेनेरिक दवाओं के लिए जानी जाती हैं। ये दवाएं अमेरिकी मरीजों को किफायती इलाज देती हैं, लेकिन टैरिफ बढ़ने से उनकी कीमतों में उछाल आ सकता है। भारतीय कंपनियां कम मुनाफे पर काम करती हैं, और अगर शुल्क का बोझ बढ़ा, तो या तो उन्हें कीमतें बढ़ानी पड़ेंगी या बाजार में अपनी हिस्सेदारी खोनी पड़ेगी। यह न सिर्फ कंपनियों, बल्कि अमेरिकी मरीजों के लिए भी बुरी खबर हो सकती है।

टैरिफ का मकसद क्या है?

ट्रंप का कहना है कि यह कदम अमेरिका में दवा उत्पादन को बढ़ाने के लिए उठाया जा रहा है। उनका मानना है कि विदेशी कंपनियों पर टैरिफ लगाकर स्थानीय उद्योग को मजबूत किया जा सकता है। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इससे दवाओं की लागत बढ़ेगी, जिसका खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ेगा। भारत जैसे देश, जो सस्ती दवाओं की आपूर्ति करते हैं, इस नीति से सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। यह एक तरह का व्यापारिक दबाव भी हो सकता है, जिसका जवाब देना भारत के लिए आसान नहीं होगा।

भारतीय कंपनियों के सामने चुनौतियां

अगर टैरिफ लागू हुआ, तो भारतीय दवा निर्माताओं को अपनी रणनीति बदलनी पड़ सकती है। नए बाजार तलाशने होंगे या फिर उत्पादन लागत को और कम करना होगा। लेकिन यह इतना आसान नहीं है। सन फार्मा, डॉ. रेड्डीज जैसी बड़ी कंपनियां अमेरिकी बाजार पर बहुत निर्भर हैं। टैरिफ बढ़ने से उनका मुनाफा घट सकता है, और छोटी कंपनियों के लिए तो यह झटका और भी बड़ा होगा। साथ ही, अगर अमेरिका में दवाओं की कीमतें बढ़ीं, तो वहां के मरीजों पर भी असर पड़ेगा, जो भारतीय दवाओं की सस्ती कीमतों पर भरोसा करते हैं।

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