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नेटफ्लिक्स पर भड़के अनुराग कश्यप

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बेबाक राय की पहचान रखने वाले फिल्ममेकर अनुराग कश्यप एक बार फिर इंडस्ट्री की कड़वी सच्चाई पर खुलकर बोले। इस बार उनका निशाना है नेटफ्लिक्स इंडिया, जिसने उनकी ड्रीम प्रोजेक्ट मैक्सिमम सिटी को बिना कोई ठोस वजह बताए ठप कर दिया। हाल ही में दिए गए एक इंटरव्यू में अनुराग ने खुलासा किया कि वह साल 2004 से सुकेतु मेहता की चर्चित किताब मैक्सिमम सिटी को स्क्रीन पर लाने की कोशिश कर रहे थे। उन्होंने कहा, इस प्रोजेक्ट पर मैंने डेढ़ साल से ज्यादा वक्त लगाया। स्क्रिप्ट अपने हाथों से लिखी, पूरे 900 पन्ने। यह सिर्फ एक शो नहीं था बल्कि मेरी ज़िंदगी का अहम हिस्सा बन चुका था।

नेटफ्लिक्स इंडिया पर लगाए गंभीर आरोप

अनुराग कश्यप ने अपने हालिया इंटरव्यू में नेटफ्लिक्स इंडिया पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि मैक्सिमम सिटी जैसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट को लेकर न तो उन्हें कोई प्रतिक्रिया दी गई, न कोई फीडबैक मिला और न ही यह बताया गया कि आखिर इसे बंद क्यों किया गया। कश्यप ने कहा, इतना तो किया जा सकता था कि सामने आकर कहते, ‘नहीं बन रहा’, या ‘कोई दिक्कत है, सुलझा सकते हैं?’ लेकिन उन्होंने एक शब्द तक नहीं कहा। मेरे लिए ये सिर्फ एक अधूरा प्रोजेक्ट नहीं बल्कि मेरी ज़िंदगी की सबसे बड़ी हार्टब्रेक है।

असली क्रिएटिविटी को किया जाता है नजरअंदाज़

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि नेटफ्लिक्स इंडिया को भारतीय दर्शकों की समझ नहीं है। उनके अनुसार, ये लोग वही कर रहे हैं जो कभी टीवी करता था, लेकिन अब पैसे लेकर। यहां कंटेंट का चयन एल्गोरिदम से होता है, न कहानी देखी जाती है, न किसी क्रिएटिव विजन को महत्व मिलता है। जो शो वाकई दमदार होते हैं, उन्हें प्रमोट तक नहीं किया जाता। अनुराग ने उदाहरण भी दिए, उन्होंने कहा कि ‘कोहरा’ और ‘ट्रायल बाय फायर’ जैसे शोज़ नेटफ्लिक्स ने केवल खरीदे थे, बनाए नहीं। उन्होंने कहा, यहां तक कि ‘स्क्विड गेम’ भी नेटफ्लिक्स का ओरिजिनल प्रोडक्शन नहीं था, सिर्फ अक्विजिशन था। जब उन्होंने खुद दूसरा सीजन बनाया, तो उसका हाल सबने देख ही लिया।

जब उनसे पूछा गया कि क्या मैक्सिमम सिटी को दोबारा ज़िंदा किया जा सकता है, तो कश्यप ने निराशा भरे लहजे में कहा, मुझे नहीं पता। एक पॉलिसी होती है, जिसे मैं कभी समझ नहीं पाया। अब तो मैं उन प्रोड्यूसर्स से भी कट चुका हूं, क्योंकि मुझे ये तक नहीं पता कि उन्होंने इस प्रोजेक्ट के साथ आखिर किया क्या।

(Udaipur Kiran) / लोकेश चंद्र दुबे

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