नई दिल्ली, 5 सितंबर (Udaipur Kiran) । हंसराज कॉलेज की प्राचार्या प्रो. रमा ने राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) 2025 में अभूतपूर्व उपलब्धि प्राप्त करने एवं भारत के श्रेष्ठ महाविद्यालयों में तीसरा स्थान प्राप्त करने पर शुक्रवार को खुशी जाहिर की। उन्होंने कहा कि यह सफलता पिछले वर्ष की तुलना में एक बड़ी छलांग है, जब कॉलेज 12वें स्थान पर था।
कॉलेज की प्राचार्या प्रो. रमा ने कहा कि यह उपलब्धि केवल हमारे काम का परिणाम नहीं बल्कि हमारी भावनाओं, सेवा-भाव और सामूहिकता की कहानी है।
प्राचार्या प्रो. रमा ने कहा कि हम कभी रैंकिंग से प्रभावित नहीं हुए। हमारा लक्ष्य हमेशा यही रहा है कि शिक्षा और संस्कार के क्षेत्र में निरंतर उत्कृष्टता प्राप्त की जाए और हमारे पूर्वजों की परंपरा का सम्मान हो। उन्होंने कहा कि हंसराज कॉलेज केवल एक संस्थान नहीं, बल्कि एक परिवार है। इस परिवार का हर सदस्य चाहे वह प्राध्यापक हो, विद्यार्थी (वर्तमान या पूर्व), नॉन-टीचिंग स्टाफ हो या कॉलेज के प्रति अपनत्व का भाव रखने वाला कोई भी व्यक्ति इस उपलब्धि का साझेदार है।
प्रो. रमा ने कहा कि इस यात्रा में विशेष सहयोग उप प्राचार्य डॉ. विजय रानी राजपाल और आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ (आईक्यूएसी) की निदेशक डॉ. अल्का कक्कड़ का रहा। जिनकी ऊर्जा और मार्गदर्शन ने पूरे कॉलेज समुदाय को निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। उनका नेतृत्व इस प्रक्रिया की रीढ़ सिद्ध हुआ।
प्राचार्या ने कहा कि हंसराज परिवार का उत्थान और उसके गौरव में वृद्धि उनके लिए बड़ी उपलब्धि है। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि आज हंसराज कॉलेज केवल भारत के श्रेष्ठ महाविद्यालयों में नहीं, बल्कि शिक्षा, संस्कृति, खेल, शोध और नवाचार के क्षेत्र में वैश्विक पहचान बना रहा है।
प्राचार्या प्रो. रमा ने कहा कि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारे सामने एक और बड़ा संकल्प है। विकसित भारत 2047 का हंसराज जिन आदर्शों से निर्मित हुआ, उनकी चेतना में शिक्षा का अर्थ राष्ट्रनिर्माण है। उन्होंने कहा कि विकसित भारत के लक्ष्य में हंसराज परिवार का हर सदस्य तन, मन और धन से योगदान देगा क्योंकि राष्ट्र सर्वोपरि है।
उन्होंने कहा कि हंसराज कॉलेज की प्रतिष्ठा और गरिमा केवल एक शैक्षणिक उपलब्धि नहीं है बल्कि उसकी बुनियाद महामना दयानंद सरस्वती की तपस्या और महात्मा हंसराज के त्याग पर टिकी हुई है। 1948 से स्थापित इस संस्थान ने हमेशा यही प्रयास किया है कि विद्यार्थियों को केवल ज्ञान ही नहीं, बल्कि संस्कार और समाज के प्रति उत्तरदायित्व का भाव भी मिले।
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(Udaipur Kiran) / माधवी त्रिपाठी
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