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संवेदना जुड़ती है तभी समाज का वास्तविक निर्माण होता हैः डॉ. चन्द्रप्रकाश द्विवेदी

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– आरोग्य भारती की 11वीं वार्षिकोत्सव व्याख्यानमाला

भोपाल, 10 सितंबर (Udaipur Kiran) । “विज्ञान यानी विशेष ज्ञान है, लेकिन जब उसमें संवेदना जुड़ती है तभी समाज का वास्तविक निर्माण होता है।” आज की तेज रफ्तार जिंदगी में प्रतिस्पर्धा और फिर परस्‍पर तुलना मानसिक रोगों का सबसे बड़ा कारण बन चुकी है। उक्‍त उद्गार ‘चाणक्य’ धारावाहिक से लोकप्रिय हुए स्‍वयं चिकित्‍सक, फिल्‍म निर्माता एवं निर्देशक डॉ. चन्द्रप्रकाश द्विवेदी ने वक्‍त किए हैं। यहाँ वे चिकित्सा को केवल तकनीक या व्यवसाय न मानकर, संवेदना और सेवा का रूप मानते हैं। डॉ. द्विवेदी का यह कहना कि “जैसा हम हैं, वैसा स्वयं को स्वीकार करना ही आनंद का मंत्र है”

दरअसल, बुधवार को भोपाल का अंजनी सभागार, रवीन्द्र भवन उस क्षण एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक ऊर्जा से सराबोर हो उठा जब आरोग्य भारती भोपाल महानगर की 11वीं वार्षिकोत्सव व्याख्यानमाला सम्पन्न हुई। यह अवसर केवल एक संस्था के कार्यक्रम का नहीं था, बल्कि स्वास्थ्य, संस्कृति और मानवीय संवेदना के अद्भुत संगम का मंच था। सभागार में उपस्थित चिकित्सक, समाजसेवी, विद्यार्थी और नागरिक एक ऐसे विचार–अनुष्ठान के सहभागी बने जहाँ चिकित्सा विज्ञान, भारतीय जीवनदर्शन और आत्मिक शांति का त्रिवेणी संगम दिखाई दिया।

आत्म-अवलोकन, आत्म-स्वीकार और आत्म-प्रेम ही तनाव मुक्ति का आधार

डॉ. चन्द्रप्रकाश द्विवेदी कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण रहे, उन्होंने “भारतीय सांस्कृतिक अवधारणा में स्वास्थ्य चिंतन” पर बोलते हुए स्वास्थ्य की चर्चा को केवल चिकित्सालयों से बाहर निकालकर आत्मा और समाज के भीतर तक पहुँचा दिया। उनका पहला ही वाक्य विचारोत्तेजक था। उन्‍होंने कहा, आत्म-अवलोकन, आत्म-स्वीकार और आत्म-प्रेम ही तनाव मुक्ति का आधार हैं।

इसके साथ ही बुद्ध का स्मरण करते हुए उन्‍होंने बताया कि सुखद स्थिति को स्थायी बनाने की प्रवृत्ति ही दुख का कारण है। यह विचार माइंडफुलनेस थेरेपी से जुड़ता है, जो आज अवसाद और चिंता के उपचार में व्यापक रूप से उपयोग में लाया जा रहा है। वहीं उनका कहना था कि गांधीजी का विचार, “मुझे उतने ही मिले जितनी आवश्यकता है”। मिनिमलिज्म और सस्टेनेबल हेल्थ की आधुनिक अवधारणाओं से अद्भुत साम्य रखता है। उनका यह दृष्टिकोण कि “I am not ok, You are not ok, but We are ok” समाज में सामूहिक सहयोग और सहजीविता की आवश्यकता को रेखांकित करता है। यह मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी उतना ही आवश्यक है क्योंकि व्यक्ति तभी संतुलित रह सकता है जब समाज में उसे स्वीकार्यता और सहारा मिले।

सांस्कृतिक शुरुआत और भावनात्मक वातावरण

कार्यक्रम का शुभारंभ बच्चों की राम पर आधारित नाटिका से हुआ। जब मंचासीन अतिथियों ने भगवान धन्वंतरि के चित्र पर माल्यार्पण और दीप प्रज्ज्वलन किया, तब वातावरण में यह आभास था कि स्वास्थ्य केवल चिकित्सकीय परिभाषा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह दिव्यता और आस्था से भी जुड़ा हुआ है।

आरोग्य भारती की यात्रा और प्रेरक संदेश

इस अवसर पर आरोग्य भारती के राष्ट्रीय संगठन सचिव डॉ. अशोक कुमार वार्ष्णेय ने संस्था की यात्रा को स्मरण कराते हुए यह कहा कि आरोग्य भारती का उद्देश्य केवल बीमारी मिटाना नहीं, बल्कि हर नागरिक को स्वास्थ्यपूर्ण जीवनशैली की ओर उन्मुख करना है। यह विचार चिकित्सा को न केवल भौतिक स्तर पर, बल्कि सामाजिक और आध्यात्मिक स्तर पर भी देखने का आग्रह करता है। स्वास्थ्य तब ही पूर्ण माना जा सकता है जब समाज का हर वर्ग इसे अपनी जिम्मेदारी माने।

शरीर-मन-आत्मा का संतुलन

सरस्‍वत आयोजन के मुख्य अतिथि स्वांत रंजन जी अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ ने शरीर को साधना का सर्वोच्च साधन बताते हुए गीता और शुश्रुत का संदर्भ दिया। उनका कथन था कि शरीर तभी आनंदित रहेगा जब इंद्रियाँ, मन और आत्मा प्रसन्न हों। चिकित्सा विज्ञान की दृष्टि से भी यह बात उतनी ही सत्य है क्योंकि आधुनिक शोध बताते हैं कि मानसिक तनाव और असंतुलन सीधे शारीरिक रोगों को जन्म देते हैं। जब वे घर की रसोई को औषधालय बताते हैं, तो यह केवल परंपरागत ज्ञान नहीं बल्कि आधुनिक क्लिनिकल न्यूट्रिशन की अवधारणा से मेल खाता है।

उनका कहना था कि घर का भोजन संतुलित, स्वच्छ और ऋतु-अनुकूल बीमारियों की रोकथाम में औषधि का ही कार्य करता है। इसी प्रकार, ब्रह्ममुहूर्त में उठने और व्यायाम करने की उनकी सलाह, आज की क्रॉनिक डिजीज मैनेजमेंट की वैज्ञानिक पद्धतियों से पूरी तरह मेल खाती है।

आध्यात्मिक आधार और राष्ट्र का स्वास्थ्य

कार्यक्रम में अध्यक्षता कर रहे जगद्गुरु सुखानंद द्वाराचार्य स्वामी राघव देवाचार्य ने यहां आहार, विहार और व्यवहार की शुद्धता को राष्ट्र निर्माण का आधार बताया। वास्तव में, राष्ट्र का स्वास्थ्य व्यक्ति के स्वास्थ्य से ही बनता है। जब हर नागरिक अपने आहार और दिनचर्या को संयमित रखेगा, तभी एक स्वस्थ समाज और सशक्त राष्ट्र की रचना होगी।

सेवा और सम्मान

कार्यक्रम का भावनात्मक क्षण तब आया जब धन्वंतरि सेवा सम्मान से अजय रघुवंशी को सम्मानित किया गया। कैंसर जैसे रोगियों की नि:शुल्क सेवा न केवल चिकित्सा की मानवता से जुड़ी जिम्मेदारी है, बल्कि यह बताती है कि सच्चा स्वास्थ्य तभी संभव है जब समाज के कमजोर वर्ग तक सेवा पहुँचे।

“My Health is My Responsibility” : सामूहिक संकल्प

कार्यक्रम के समापन पर जब पूरे सभागार ने एक स्वर में यह संकल्प लिया कि “My Health is My Responsibility” तो यह केवल नारा नहीं, बल्कि जीवन जीने का संकल्प प्रतीत हुआ। यह भाव हमें यह याद दिलाता है कि चिकित्सक और औषधियाँ सहायक हैं, परंतु वास्तविक स्वास्थ्य हमारी अपनी जिम्मेदारी है। कार्यक्रम का संचालन मिहिर कुमार ने किया तथा आभार प्रदर्शन मध्य भारत प्रांत अध्यक्ष डॉ. राजेश शर्मा ने किया।

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(Udaipur Kiran) / डॉ. मयंक चतुर्वेदी

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