राजस्थान के रणकपुर जिले में 600 साल से जैन मंदिर स्थित है। विश्व प्रसिद्ध जैन मंदिर की वास्तुकला और कलात्मक सुंदरता को देखने के लिए लाखों पर्यटक रणकपुर आते हैं। जैन धर्म के पांच प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक रणकपुर जैन मंदिर दुनिया के प्राचीन मंदिरों में शामिल है।
मंदिर का इतिहास
यह मंदिर 15वीं शताब्दी में पाली जिले की अरावली पर्वत श्रृंखला की गोद में बना था। इसका निर्माण विक्रम संवत 1446 में शुरू हुआ था और इसे पूरा होने में 50 साल लगे थे। खास बात यह है कि मंदिर 1444 खंभों पर बना है। यहां हर खंभा अनूठी नक्काशी से सजा हुआ है। आपको यहां चौमुखा मंदिर देखने को मिलेगा जो प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित है।
कैसे हुआ था निर्माण?
ऐसा माना जाता है कि रणकपुर जैन मंदिर का निर्माण चार भक्तों ने मिलकर किया था। जिसमें आचार्य श्यामसुंदरजी, धन्ना शाह, राणा कुंभा और देपा शामिल हैं। किवदंती के अनुसार धन्ना शाह को सपने में एक विशाल वाहन दिखाई दिया था, जिसके बाद इस मंदिर का निर्माण शुरू किया गया था। इस मंदिर का डिज़ाइन तैयार करने के लिए कई वास्तुकारों को बुलाया गया था, लेकिन अंत में यह काम मुंडारा के वास्तुकार दीपक को सौंपा गया। मंदिर में भगवान आदिनाथ की एक विशाल, चतुर्मुखी मूर्ति स्थापित है जो 72 इंच ऊँची है। इसके साथ ही जैन तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ और भगवान पार्श्वनाथ के दो अन्य मंदिर भी स्थित हैं। रणकपुर जैन मंदिर अपनी आकर्षक विशेषताओं और जटिल संगमरमर की नक्काशी के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है।
मंदिर से जुड़ी मान्यता
रणकपुर का प्राचीन जैन मंदिर जैन धर्म की अटूट आस्था और गहरी भक्ति का प्रतीक माना जाता है। कहा जाता है कि अगर कोई व्यक्ति यहाँ आकर दर्शन करता है, तो वह व्यक्ति 84 लाख योनियों से मुक्त होकर मोक्ष की ओर चला जाता है।
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