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पाकिस्तानी सेना से अरब सागर में बेगारी कराएगा अमेरिका, डोनाल्ड ट्रंप के 'मिशन मुनीर' को लेकर बड़ा खुलासा

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वॉशिंगटन : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पाकिस्तान प्रेम से पूरी दुनिया हैरान है। बड़ी बात यह है कि ट्रंप पाकिस्तान की नागरिक सरकार की जगह वहां की कुख्यात सेना के साथ संबंधों को मजबूत कर रहे हैं। कुछ महीने पहले ही उन्होंने पाकिस्तान के सेना प्रमुख फील्ड मार्शल असीम मुनीर के साथ व्हाइट हाउस में लंच किया था। यह किसी भी देश के सेना प्रमुख के लिए एक बड़े सम्मान की बात थी। इस मुलाकात के कुछ दिनों बाद ही ट्रंप ने ऐलान किया था कि उन्होंने पाकिस्तान के साथ एक ट्रेड डील फाइनल की है। इसके अलावा उन्होंने पाकिस्तान में तेल के क्षेत्र में सहयोग को लेकर भी बड़ी घोषणा की थी। लेकिन, विशेषज्ञों को इस बात का अंदेशा था कि ट्रंप एक महत्वाकांक्षी और लोभी राजनेता हैं। ऐसे में वह पाकिस्तान से कुछ ऐसा चाहते हैं, जिसमें सिर्फ अमेरिका का हित हो। अब उस बात का खुलासा हो गया है।



अमेरिकी सैनिकों की जगह पाकिस्तानी सैनिकों की होगी तैनाती?

अमेरिका ने अपने हितों को साधने के लिए मध्य पूर्व में बड़े पैमाने पर सैनिकों और जंगी जहाजों को तैनात किया हुआ है। इस क्षेत्र में अमेरिकी नौसेना का छठा बेड़ा भी तैनात है। अमेरिका की कोशिश अपने सहयोगियों की सुरक्षा के साथ वैश्विक ऊर्जा प्रवाह पर भी अपनी पकड़ को बनाए रखने की है। इस क्षेत्र से ही पूरी दुनिया का लगभग 80 फीसदी ऊर्जा का परिवहन होता है। अपने पहले कार्यकाल से ही, ट्रंप चाहते रहे हैं कि स्थानीय देश इस क्षेत्र में अपनी सेनाओं को तैनात करें, ताकि अमेरिकी सैनिकों को तैनात करने की जरूरत न पड़े।



खाड़ी में पाकिस्तानी नौसेना की तैनाती चाहते हैं ट्रंप

ट्रंप का मानना है कि अमेरिकी सैनिकों को खाड़ी और दूसरे इलाकों में तैनाती जैसे मिशनों से दूर रहना चाहिए। उनके सलाहकारों का भी कहना है कि अमेरिकी सैनिकों को भविष्य के महाशक्ति संघर्षों की तैयारी पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। ऐसे में ट्रंप चाहते हैं कि पाकिस्तान अपनी नौसेना को अरब सागर के उन इलाकों में तैनात करे, जहां अमेरिकी सेना की मौजूदगी से संघर्ष का खतरा ज्यादा है। इनमें ईरान के करीब के इलाके शामिल हैं। इसके अलावा हूतियों के हमलों से प्रभावित लाल सागर क्षेत्र में भी ट्रंप चाहते हैं कि पाकिस्तानी सेना मौजूद रहे। इसके लिए वह पाकिस्तान को सैन्य सहायता देने की भी तैयारी कर रहे हैं।



अमेरिका-पाकिस्तान सैन्य सहयोग की कहानी

अमेरिका और पाकिस्तान ने 1954 में एक पारस्परिक रक्षा सहायता समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिससे दोनों देशों के बीच सैन्य सहायता के द्वार खुल गए। इससे पाकिस्तान दक्षिण पूर्व एशिया संधि संगठन (SEATO) का भी हिस्सा बन गया, जिसमें अमेरिका, फ्रांस, ग्रेट ब्रिटेन, न्यूज़ीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, फिलीपींस और थाईलैंड शामिल थे। इसका उद्देश्य यूरोप में उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) के मॉडल पर कार्य करना था। हालांकि, इस समूह के अधिकतर देशों के कमांडरों ने पाकिस्तान के शामिल करने का विरोध किया और उसे फिजूल बताया। इसके बावजूद अमेरिका अपनी जिद पर अड़ा रहा। इसके बाद कई कारणों से अमेरिका ने पाकिस्तान के साथ सैन्य सहयोग बढ़ाया और यह ओबामा प्रशासन के पहले तक जारी रहा।

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