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जस्टिस वर्मा मामले से क्या बदल जाएगा इतिहास? बड़ी लंबी और जटिल है प्रक्रिया

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लेखक: राजेश चौधरी

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ जांच करने वाली तीन सदस्यीय समिति की हाल में आई रिपोर्ट ने नकदी बरामदगी मामले में दी गई साजिश की थियरी को खारिज करते हुए सवाल उठाया कि उन्होंने इस संबंध में पुलिस में शिकायत क्यों नहीं दर्ज कराई। इस रिपोर्ट के आधार पर, भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ महाभियोग की सिफारिश की है। संसदीय पैनल की एक बैठक भी पिछले दिनों हुई है। वैसे महाभियोग के जरिये आज तक किसी जस्टिस को हटाया नहीं गया है।



सनसनीखेज मामला: एक मीडिया रिपोर्ट में नकदी बरामदगी की खबर सामने आने के बाद दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी. के. उपाध्याय ने प्रारंभिक जांच की थी। 14 मार्च की रात 11:35 बजे न्यायमूर्ति वर्मा के दिल्ली स्थित आवास पर लगी आग में कथित तौर पर नोटों के बंडल जले थे और बरामद किए गए थे।



जांच समिति बनी: इसके बाद जस्टिस वर्मा से न्यायिक कार्य वापस ले लिया गया और उन्हें उनके मूल उच्च न्यायालय इलाहाबाद स्थानांतरित कर दिया गया। तत्कालीन चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने 22 मार्च को तीन जजों की जांच समिति का गठन किया। फिर 28 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से कहा कि जस्टिस वर्मा को फिलहाल कोई न्यायिक कार्य न सौंपा जाए।



पुलिस की लापरवाही: अपनी रिपोर्ट में कमिटी ने दिल्ली पुलिस के रुख की आलोचना करते हुए कहा कि उसने सरकारी बंगले के स्टोररूम में आग बुझाने के दौरान मिले नोटों को जब्त नहीं किया। समिति ने यह भी कहा कि पुलिस और दमकल कर्मियों द्वारा मौके से बिना किसी पंचनामा या जब्ती मेमो के चले जाना ‘लापरवाहीपूर्ण’ था।



जस्टिस वर्मा का दावा: कमिटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि सबूतों से यह संकेत मिला कि वहां बड़ी मात्रा में नकदी मौजूद थी, जो न्यायमूर्ति वर्मा के इस दावे के विपरीत था कि उनके परिसर में कोई नकदी थी ही नहीं। समिति ने माना कि बरामद मुद्रा की सटीक मात्रा का पता न चल पाना कोई महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं है। न्यायमूर्ति वर्मा के रुख को खारिज करते हुए कमिटी ने पूछा कि उन्होंने इस संबंध में पुलिस में शिकायत क्यों नहीं दर्ज कराई।



संसदीय पैनल के सवाल: 24 जून को इस संदर्भ में संसदीय पैनल की बैठक में कई सांसदों ने यह सवाल उठाया कि कथित नोट बरामदगी के मामले में अब तक प्राथमिकी (FIR) क्यों दर्ज नहीं की गई है। सांसदों ने यह भी मांग की है कि जजों के लिए आचारसंहिता होनी चाहिए, और उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों को सेवानिवृत्ति के बाद कम से कम पांच वर्षों तक किसी सरकारी पद या नियुक्ति को स्वीकार नहीं करना चाहिए।



महाभियोग का रास्ता: संविधान के अनुच्छेद- 124 (4), 217 और 218 में संविधान के उल्लंघन और गलत व्यवहार और अक्षमता से संबंधित मामले में किसी जस्टिस को हटाने का प्रस्ताव लाने का प्रावधान है। प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन में आ सकता है। अगर लोकसभा में इसे पेश करना है तो इसके लिए कम से कम एक सौ सांसदों के दस्तखत होने जरूरी हैं। वहीं राज्यसभा में प्रस्ताव लाने के लिए कम से कम 50 सांसदों के दस्तखत होने चाहिए। महाभियोग के अंतिम चरण में प्रस्ताव को संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से पारित करना होता है।



सभापति के अधिकार: जिस सदन में प्रस्ताव लाया जाता है उसके सभापति इसे खारिज कर सकते हैं। ऐसा करने पर मामला वहीं खत्म हो जाता है। सभापति के प्रस्ताव स्वीकार करने की स्थिति में तीन मेंबरों की समिति बनाई जाती है। समिति में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस, हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और एक जाने-माने जूरिस्ट होते हैं। समिति देखती है कि जो अभियोग लगाया गया है, वह ठहरता है या नहीं। जिन पर अभियोग लगाया गया है उन्हें समिति के सामने अपना पक्ष रखने का मौका मिलता है। मामला बनता हो तो प्रस्ताव सदन के सामने भेज दिया जाता है।



क्या होगा आगे: भारतीय संसदीय इतिहास में आज तक किसी जस्टिस को महाभियोग के जरिये हटाया नहीं गया है। हालांकि महाभियोग की प्रक्रिया शुरू जरूर की गई है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रहे दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव नोटिस को तत्कालीन उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने खारिज कर दिया था। 1993 में जस्टिस वी. रामास्वामी के खिलाफ प्रस्ताव लाया गया, लेकिन वह लोकसभा में पास नहीं हो पाया था। जस्टिस पीडी दिनाकरण के मामले में पहल हुई तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। हाईकोर्ट के जस्टिस सौमित्र सेन के मामले में भी यही हुआ। प्रस्ताव आया लेकिन कार्यवाही पूरी होने से पहले ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया। जस्टिस यशवंत वर्मा के मामले में घटनाक्रम कैसा मोड़ लेता है इस पर पूरी कानूनी बिरादरी की नजर है।

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