पटना: बिहार में वोटर लिस्ट का विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) 25 जुलाई की समय सीमा तक पहुंच गया। इसमें 99.8% मतदाताओं को कवर कर लिया गया। लेकिन लगभग 60.5 लाख मतदाताओं के नाम विभिन्न कारणों से हटाए जाने हैं। चुनाव आयोग अब एसआईआर के दूसरे फेज की ओर बढ़ रहा है, लेकिन इस प्रक्रिया को लेकर कई सवाल भी उठ रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में इसकी वैधता को चुनौती दी गई है और राजनीतिक विरोध भी जारी है। इसके अतिरिक्त, मतदाता सूची से बड़ी संख्या में नाम हटाए जाने और दस्तावेज जमा करने की प्रक्रिया को लेकर भी चिंता है।
सुप्रीम कोर्ट में अभी होनी है सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट 28 जुलाई को बिहार में वोटर लिस्ट एसआईआर पर सुनवाई करेगा, जबकि चुनाव आयोग ने अपना हलफनामा दाखिल कर दिया है। आयोग ने 'गहन' सत्यापन के दौरान मतदाता की नागरिकता का पता लगाने के अपने अधिकार का बचाव किया है। आयोग ने 2003 में बिहार में दिए गए समान समय और आधार, राशन कार्ड और ईपीआईसी को 11 दस्तावेजों में शामिल करने में आने वाली कठिनाइयों का भी उल्लेख किया है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिकी निगाहें
सुप्रीम कोर्ट का फैसला महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि यह चुनाव आयोग के राष्ट्रीय एसआईआर मिशन को प्रभावित कर सकता है। राजनीतिक विरोध भी मजबूत है, क्योंकि मतदाताओं को कथित रूप से मताधिकार से वंचित करने का आरोप लगाया जा रहा है। लगभग 60 लाख मतदाताओं के नाम बिहार की मतदाता सूची से हटाए जाएंगे। चुनाव आयोग के अनुसार, लगभग एक लाख लोग मिले ही नहीं, 1.2 लाख लोगों के फॉर्म जमा नहीं किए गए हैं, 22 लाख मतदाता मृत हैं, 35 लाख या तो स्थायी रूप से पलायन कर गए हैं और 7 लाख मतदाता एक से ज्यादा निर्वाचन क्षेत्रों में पंजीकृत पाए गए हैं। यदि वे अपनी पात्रता साबित नहीं करते हैं, तो उनके नाम 30 सितंबर की अंतिम मतदाता सूची में शामिल नहीं किया जाएंगे।
BLO के दौरों से पता चली बड़ी बात
चुनाव आयोग के सूत्रों ने पहले कहा था कि बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) के दौरों से पता चला है कि मतदाता सूची में 'बड़ी संख्या' में बांग्लादेशी, नेपाली और म्यांमार के नागरिक हैं। ऐसे सभी मामलों को सक्षम अधिकारियों को भेजा जाएगा, यदि इसकी पुष्टि हो जाती है। मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण सवाल उठाया। उन्होंने पूछा कि क्या कोई फर्जी मतदाताओं और विदेशियों के साथ भारत की मतदाता सूची में सहज हो सकता है। यह सवाल महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह मतदाता सूची की शुद्धता और विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है।
60 लाख मतदाता कौन?
यह भी सवाल है कि वो 60 लाख मतदाता कौन हैं, जिनका नाम लिस्ट से हटाया जाना है। आशंका है कि ये वोटर बिहार के सीमांचल जिले, जो बांग्लादेश और नेपाल से लगते हैं, ऐसे क्षेत्रों के हो सकते हैं, लेकिन यह 1 अगस्त के बाद ही पता चलेगा। निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी (ईआरओ) को 'स्वयं मोटो जांच' शुरू करने का भी अधिकार है, अगर उसे किसी मतदाता का मामला संदिग्ध लगता है। इसके लिए नोटिस 1 अगस्त के बाद जारी किए जाएंगे।
45 दिन मिलेंगे अपील के लिए
ईआरओ 'क्षेत्रीय जांच, दस्तावेजीकरण या अन्यथा' पर भरोसा करेगा और 'स्पीकिंग ऑर्डर' पारित करेगा। यह एक ऐसा आदेश होगा जिसमें स्पष्ट औचित्य का विवरण होगा।
ऐसे सभी मामलों को ईआरओ द्वारा नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत 'सक्षम प्राधिकारी' को भी भेजा जाएगा, लेकिन उनके पास 45 दिनों की अवधि में दो अपील करने का अधिकार भी होगा।
सबसे बड़ी चिंता दस्तावेज जमा करने की
चौथी चिंता दस्तावेज जमा करने के बड़े मुद्दे पर है। चुनाव आयोग 25 जुलाई तक विधिवत भरे हुए प्रगणन फॉर्म जमा करने पर जोर दे रहा है, लेकिन उसने 1987/2004 नागरिकता अधिनियम वर्गीकरण के अनुसार जन्म प्रमाण पत्र (स्वयं और माता-पिता दोनों के लिए) की आवश्यकता को खत्म नहीं किया है। चुनाव आयोग ने अभी तक दस्तावेज जमा करने पर डेटा साझा नहीं किया है, लेकिन यह उम्मीद की जा सकती है कि चुनाव आयोग के पास मौजूद 99.8% फॉर्म में से बड़ी संख्या में अभी तक दस्तावेजी प्रमाण नहीं होंगे।
सुप्रीम कोर्ट में अभी होनी है सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट 28 जुलाई को बिहार में वोटर लिस्ट एसआईआर पर सुनवाई करेगा, जबकि चुनाव आयोग ने अपना हलफनामा दाखिल कर दिया है। आयोग ने 'गहन' सत्यापन के दौरान मतदाता की नागरिकता का पता लगाने के अपने अधिकार का बचाव किया है। आयोग ने 2003 में बिहार में दिए गए समान समय और आधार, राशन कार्ड और ईपीआईसी को 11 दस्तावेजों में शामिल करने में आने वाली कठिनाइयों का भी उल्लेख किया है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिकी निगाहें
सुप्रीम कोर्ट का फैसला महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि यह चुनाव आयोग के राष्ट्रीय एसआईआर मिशन को प्रभावित कर सकता है। राजनीतिक विरोध भी मजबूत है, क्योंकि मतदाताओं को कथित रूप से मताधिकार से वंचित करने का आरोप लगाया जा रहा है। लगभग 60 लाख मतदाताओं के नाम बिहार की मतदाता सूची से हटाए जाएंगे। चुनाव आयोग के अनुसार, लगभग एक लाख लोग मिले ही नहीं, 1.2 लाख लोगों के फॉर्म जमा नहीं किए गए हैं, 22 लाख मतदाता मृत हैं, 35 लाख या तो स्थायी रूप से पलायन कर गए हैं और 7 लाख मतदाता एक से ज्यादा निर्वाचन क्षेत्रों में पंजीकृत पाए गए हैं। यदि वे अपनी पात्रता साबित नहीं करते हैं, तो उनके नाम 30 सितंबर की अंतिम मतदाता सूची में शामिल नहीं किया जाएंगे।
BLO के दौरों से पता चली बड़ी बात
चुनाव आयोग के सूत्रों ने पहले कहा था कि बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) के दौरों से पता चला है कि मतदाता सूची में 'बड़ी संख्या' में बांग्लादेशी, नेपाली और म्यांमार के नागरिक हैं। ऐसे सभी मामलों को सक्षम अधिकारियों को भेजा जाएगा, यदि इसकी पुष्टि हो जाती है। मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण सवाल उठाया। उन्होंने पूछा कि क्या कोई फर्जी मतदाताओं और विदेशियों के साथ भारत की मतदाता सूची में सहज हो सकता है। यह सवाल महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह मतदाता सूची की शुद्धता और विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है।
60 लाख मतदाता कौन?
यह भी सवाल है कि वो 60 लाख मतदाता कौन हैं, जिनका नाम लिस्ट से हटाया जाना है। आशंका है कि ये वोटर बिहार के सीमांचल जिले, जो बांग्लादेश और नेपाल से लगते हैं, ऐसे क्षेत्रों के हो सकते हैं, लेकिन यह 1 अगस्त के बाद ही पता चलेगा। निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी (ईआरओ) को 'स्वयं मोटो जांच' शुरू करने का भी अधिकार है, अगर उसे किसी मतदाता का मामला संदिग्ध लगता है। इसके लिए नोटिस 1 अगस्त के बाद जारी किए जाएंगे।
45 दिन मिलेंगे अपील के लिए
ईआरओ 'क्षेत्रीय जांच, दस्तावेजीकरण या अन्यथा' पर भरोसा करेगा और 'स्पीकिंग ऑर्डर' पारित करेगा। यह एक ऐसा आदेश होगा जिसमें स्पष्ट औचित्य का विवरण होगा।
ऐसे सभी मामलों को ईआरओ द्वारा नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत 'सक्षम प्राधिकारी' को भी भेजा जाएगा, लेकिन उनके पास 45 दिनों की अवधि में दो अपील करने का अधिकार भी होगा।
सबसे बड़ी चिंता दस्तावेज जमा करने की
चौथी चिंता दस्तावेज जमा करने के बड़े मुद्दे पर है। चुनाव आयोग 25 जुलाई तक विधिवत भरे हुए प्रगणन फॉर्म जमा करने पर जोर दे रहा है, लेकिन उसने 1987/2004 नागरिकता अधिनियम वर्गीकरण के अनुसार जन्म प्रमाण पत्र (स्वयं और माता-पिता दोनों के लिए) की आवश्यकता को खत्म नहीं किया है। चुनाव आयोग ने अभी तक दस्तावेज जमा करने पर डेटा साझा नहीं किया है, लेकिन यह उम्मीद की जा सकती है कि चुनाव आयोग के पास मौजूद 99.8% फॉर्म में से बड़ी संख्या में अभी तक दस्तावेजी प्रमाण नहीं होंगे।
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