लेखिका: पूनम पाण्डे
BJP में सांगठनिक चुनाव हो रहे हैं। हर दिन किसी न किसी प्रदेश में अध्यक्ष के नाम का एलान हो रहा है। जल्द ही उसे नया राष्ट्रीय अध्यक्ष भी मिलेगा। लोकसभा चुनाव से लेकर अब तक BJP और उसके वैचारिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बीच रिश्तों में दिलचस्प उतार-चढ़ाव दिखे हैं। दोनों का रिश्ता कई मामलों में जटिल भी है। हालांकि अब सांगठनिक चुनाव में संघ की पूरी पकड़ साफ दिख रही है। BJP के प्रदेश अध्यक्ष पद पर उन लोगों को तरजीह मिल रही है जिनकी संघ की पृष्ठभूमि है। ज्यादातर ऐसे नेताओं को प्रदेश अध्यक्ष चुना गया है जो संघ के छात्र संगठन ABVP से जुड़े रहे हैं, या फिर संघ के सिस्टम से निकल कर राजनीति में आए हैं।
मुलाकात का असरलोकसभा चुनाव के वक्त और उसके नतीजों के बाद जहां BJP और संघ में दूरी दिख रही थी, वहीं अब लग रहा है कि करीबी बढ़ी है। सांगठनिक चुनाव में इसकी झलक दिख रही है। साफ लग रहा है कि BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन में भी संघ की भूमिका रहेगी। BJP और संघ के बीच एक नाम पर सहमति बनाने की कोशिश हो रही है। माना जा रहा है कि इसी वजह से राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव में देरी भी हुई है। दूरी मिटाकर संघ के साथ संबंधों को सामान्य बनाने की कोशिश BJP की तरफ से भी दिखी है। इसी साल 30 मार्च को पहली बार (पीएम बनने के बाद) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संघ हेडक्वॉर्टर नागपुर गए और संघ के संस्थापकों को श्रद्धांजलि दी। मोदी और भागवत की अलग से बात भी हुई। उससे पहले के कुछ महीनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अलग-अलग इंटरव्यू में कई बार संघ का जिक्र किया, उसके काम की तारीफ की और उन पर संघ के प्रभाव के बारे में भी खुलकर बात की।
संबंधों में खटास पहली बार तब रेखांकित हुई जब 2024 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का संघ को लेकर एक सख्त बयान आया। उन्होंने कहा कि ‘BJP अब स्वतंत्र और सक्षम हो गई है और उसे संघ की मदद की जरूरत नहीं है।’ इस बयान से काफी हलचल हुई। कुछ एक्सपर्ट्स ने इसे BJP की ओर से अपनी स्वायत्तता जताने की कोशिश के रूप में देखा। जबकि कुछ ने इसे संघ के साथ तनाव का संकेत माना। नड्डा के इस बयान को लेकर संघ में भी बेचैनी दिखी। संघ के कई स्वयंसेवकों ने इस पर नाराजगी जताई। और फिर कहा गया कि लोकसभा चुनाव के दौरान संघ के स्वयंसेवकों ने प्रचार से अपने पांव पीछे खींच लिए जिसका BJP को नुकसान हुआ। 2024 के लोकसभा चुनाव में BJP ने 400 पार का नारा दिया था, लेकिन 240 सीटें मिलीं। हालांकि NDA के सहयोगियों के साथ मिलकर उसने सरकार बना ली।
संघ और BJP के बीच ‘सब ठीक न होने’ की चर्चा ने तब और जोर पकड़ा जब लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद संघ प्रचारकों के कई तीखे बयान आए। संघ के सीनियर प्रचारक इंद्रेश कुमार ने एक कार्यक्रम में कहा कि ‘रामराज्य का विधान देखिए, जिन्होंने राम की भक्ति की, धीरे-धीरे अहंकार से ग्रस्त हो गए। इसलिए उस पार्टी को सबसे बड़ी पार्टी घोषित कर दिया गया फिर भी उसको जो पूरा मत मिलना चाहिए, जो शक्ति मिलनी चाहिए, वो भगवान ने अहंकार के कारण रोक ली। जिन्होंने राम का विरोध किया उनमें से किसी को भी शक्ति नहीं दी, सब मिलकर भी नंबर एक नहीं बने, नंबर दो पर खड़े कर दिए। इसलिए प्रभु का न्याय विचित्र नहीं है, सत्य है बड़ा आनंददायक है।’ बाद में संघ की ओर से कहा गया कि यह संघ का आधिकारिक बयान नहीं है बल्कि इंद्रेश कुमार का निजी बयान है। लेकिन सच तो यह है कि खुद संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी इस दौरान कई बार तीखी टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि एक सच्चा सेवक मर्यादा बनाए रखता है। उसमें यह अहंकार नहीं होता कि वह कहे कि मैंने यह काम किया। केवल वही व्यक्ति सच्चा सेवक कहलाता है। दिलचस्प है कि इसके बाद एक बार फिर संघ की ओर से स्पष्टीकरण दिया गया कि संघ प्रमुख का बयान सरकार पर केंद्रित नहीं था।
फिर बना तालमेलचुनाव नतीजों के बाद समीक्षा में संघ ने पाया कि पार्टी का संगठन कई राज्यों में काफी कमजोर हुआ है। इसके बाद तय किया गया कि संघ की तरफ से अब ढील नहीं दी जाएगी। इसके बाद हुए हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में संघ ने BJP का साथ दिया। हरियाणा और महाराष्ट्र दोनों जगह विधानसभा चुनाव के दौरान संघ के अलग-अलग संगठनों ने कई छोटी-छोटी मीटिंगें कीं और BJP के पक्ष में माहौल बनाया। इसके बाद लगने लगा कि अब फिर संघ और BJP की दूरी कम हुई है। इसी साल विजयादशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के 100 साल पूरे हो जाएंगे। संघ ने लक्ष्य रखा है कि तब तक उसे देश भर में अपनी शाखाओं की संख्या बढ़ाकर 1 लाख करनी है। संघ तब कई बड़े आयोजन भी करेगा, जिसका राजनीतिक परिदृश्य में भी असर दिखेगा।
BJP में सांगठनिक चुनाव हो रहे हैं। हर दिन किसी न किसी प्रदेश में अध्यक्ष के नाम का एलान हो रहा है। जल्द ही उसे नया राष्ट्रीय अध्यक्ष भी मिलेगा। लोकसभा चुनाव से लेकर अब तक BJP और उसके वैचारिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बीच रिश्तों में दिलचस्प उतार-चढ़ाव दिखे हैं। दोनों का रिश्ता कई मामलों में जटिल भी है। हालांकि अब सांगठनिक चुनाव में संघ की पूरी पकड़ साफ दिख रही है। BJP के प्रदेश अध्यक्ष पद पर उन लोगों को तरजीह मिल रही है जिनकी संघ की पृष्ठभूमि है। ज्यादातर ऐसे नेताओं को प्रदेश अध्यक्ष चुना गया है जो संघ के छात्र संगठन ABVP से जुड़े रहे हैं, या फिर संघ के सिस्टम से निकल कर राजनीति में आए हैं।
मुलाकात का असरलोकसभा चुनाव के वक्त और उसके नतीजों के बाद जहां BJP और संघ में दूरी दिख रही थी, वहीं अब लग रहा है कि करीबी बढ़ी है। सांगठनिक चुनाव में इसकी झलक दिख रही है। साफ लग रहा है कि BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन में भी संघ की भूमिका रहेगी। BJP और संघ के बीच एक नाम पर सहमति बनाने की कोशिश हो रही है। माना जा रहा है कि इसी वजह से राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव में देरी भी हुई है। दूरी मिटाकर संघ के साथ संबंधों को सामान्य बनाने की कोशिश BJP की तरफ से भी दिखी है। इसी साल 30 मार्च को पहली बार (पीएम बनने के बाद) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संघ हेडक्वॉर्टर नागपुर गए और संघ के संस्थापकों को श्रद्धांजलि दी। मोदी और भागवत की अलग से बात भी हुई। उससे पहले के कुछ महीनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अलग-अलग इंटरव्यू में कई बार संघ का जिक्र किया, उसके काम की तारीफ की और उन पर संघ के प्रभाव के बारे में भी खुलकर बात की।
संबंधों में खटास पहली बार तब रेखांकित हुई जब 2024 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का संघ को लेकर एक सख्त बयान आया। उन्होंने कहा कि ‘BJP अब स्वतंत्र और सक्षम हो गई है और उसे संघ की मदद की जरूरत नहीं है।’ इस बयान से काफी हलचल हुई। कुछ एक्सपर्ट्स ने इसे BJP की ओर से अपनी स्वायत्तता जताने की कोशिश के रूप में देखा। जबकि कुछ ने इसे संघ के साथ तनाव का संकेत माना। नड्डा के इस बयान को लेकर संघ में भी बेचैनी दिखी। संघ के कई स्वयंसेवकों ने इस पर नाराजगी जताई। और फिर कहा गया कि लोकसभा चुनाव के दौरान संघ के स्वयंसेवकों ने प्रचार से अपने पांव पीछे खींच लिए जिसका BJP को नुकसान हुआ। 2024 के लोकसभा चुनाव में BJP ने 400 पार का नारा दिया था, लेकिन 240 सीटें मिलीं। हालांकि NDA के सहयोगियों के साथ मिलकर उसने सरकार बना ली।
संघ और BJP के बीच ‘सब ठीक न होने’ की चर्चा ने तब और जोर पकड़ा जब लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद संघ प्रचारकों के कई तीखे बयान आए। संघ के सीनियर प्रचारक इंद्रेश कुमार ने एक कार्यक्रम में कहा कि ‘रामराज्य का विधान देखिए, जिन्होंने राम की भक्ति की, धीरे-धीरे अहंकार से ग्रस्त हो गए। इसलिए उस पार्टी को सबसे बड़ी पार्टी घोषित कर दिया गया फिर भी उसको जो पूरा मत मिलना चाहिए, जो शक्ति मिलनी चाहिए, वो भगवान ने अहंकार के कारण रोक ली। जिन्होंने राम का विरोध किया उनमें से किसी को भी शक्ति नहीं दी, सब मिलकर भी नंबर एक नहीं बने, नंबर दो पर खड़े कर दिए। इसलिए प्रभु का न्याय विचित्र नहीं है, सत्य है बड़ा आनंददायक है।’ बाद में संघ की ओर से कहा गया कि यह संघ का आधिकारिक बयान नहीं है बल्कि इंद्रेश कुमार का निजी बयान है। लेकिन सच तो यह है कि खुद संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी इस दौरान कई बार तीखी टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि एक सच्चा सेवक मर्यादा बनाए रखता है। उसमें यह अहंकार नहीं होता कि वह कहे कि मैंने यह काम किया। केवल वही व्यक्ति सच्चा सेवक कहलाता है। दिलचस्प है कि इसके बाद एक बार फिर संघ की ओर से स्पष्टीकरण दिया गया कि संघ प्रमुख का बयान सरकार पर केंद्रित नहीं था।
फिर बना तालमेलचुनाव नतीजों के बाद समीक्षा में संघ ने पाया कि पार्टी का संगठन कई राज्यों में काफी कमजोर हुआ है। इसके बाद तय किया गया कि संघ की तरफ से अब ढील नहीं दी जाएगी। इसके बाद हुए हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में संघ ने BJP का साथ दिया। हरियाणा और महाराष्ट्र दोनों जगह विधानसभा चुनाव के दौरान संघ के अलग-अलग संगठनों ने कई छोटी-छोटी मीटिंगें कीं और BJP के पक्ष में माहौल बनाया। इसके बाद लगने लगा कि अब फिर संघ और BJP की दूरी कम हुई है। इसी साल विजयादशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के 100 साल पूरे हो जाएंगे। संघ ने लक्ष्य रखा है कि तब तक उसे देश भर में अपनी शाखाओं की संख्या बढ़ाकर 1 लाख करनी है। संघ तब कई बड़े आयोजन भी करेगा, जिसका राजनीतिक परिदृश्य में भी असर दिखेगा।
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