Returning Education to Our States Act: अमेरिका के एजुकेशन डिपार्टमेंट (शिक्षा मंत्रालय) में बड़े बदलाव होने वाले हैं। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी के कुछ नेता एक नया बिल लेकर आए हैं। वे चाहते हैं कि शिक्षा से जुड़े कई काम दूसरे सरकारी विभागों को सौंप दिए जाएं। सांसद माइक राउंड्स ने एक बिल पेश किया। इसका नाम 'रिटर्निंग एजुकेशन टू आवर स्टेट्स एक्ट' है। सीनेटर जिम बैंक्स और टिम शीही भी इसमें शामिल हैं। वे शिक्षा में सरकार की भूमिका को कम करना चाहते हैं। अगर यह बिल पास हो जाता है, तो शिक्षा से जुड़े कई अहम काम केंद्र सरकार से लेकर दूसरे विभागों को दे दिए जाएंगे। शिक्षा मंत्रालय के काम स्वास्थ्य और मानव सेवा मंत्रालय, श्रम मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय और गृह मंत्रालय को सौंपा जा सकता है। इस बिल का मकसद है कि केंद्र सरकार के कई नियमों को खत्म कर दिया जाए। जैसे कि स्टैंडर्ड टेस्ट, टीचरों को मिलने वाली सरकारी मदद और 'कॉम्प्रिहेंसिव सपोर्ट एंड इप्रूवमेंट' (CSI) और 'टारगेटेड सपोर्ट एंड इप्रूवमेंट' (TSI) जैसे प्रोग्राम। बिल में क्या प्रावधान है?इस बिल के पास होने के बाद राज्यों को कई चीजों पर पूरा अधिकार मिल जाएगा। जैसे कि पाठ्यक्रम बनाना, बच्चों का मूल्यांकन करना और टीचरों को ट्रेनिंग देना। शिक्षा मंत्रालय ने यह भी कहा है कि वे अपने कर्मचारियों की संख्या लगभग 50% तक कम करेगा। शिक्षा मंत्री लिंडा मैकमोहन का कहना है कि इससे काम में कुशलता, जवाबदेही और छात्रों और शिक्षकों के लिए संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल होगा।सीनेटर बैंक्स ने बताया कि यह बिल इसलिए लाया गया है क्योंकि लोग केंद्र सरकार के शिक्षा सिस्टम से परेशान हैं। उनका कहना है कि इसमें बहुत ज्यादा कागजी काम होता है। सीनेटर शीही ने तो यहां तक कह दिया कि शिक्षा मंत्रालय एक बड़ी सरकारी मशीन है, जो कुछ खास नतीजे नहीं दे पाया है। इस बिल का कई लोग विरोध भी कर रहे हैं। शिक्षा के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता और डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता इसके खिलाफ हैं। एलिजाबेथ वॉरेन समेत 11 डेमोक्रेटिक सांसदों ने शिक्षा मंत्रालय के एक्टिंग इंस्पेक्टर जनरल रेन रोक को एक चिट्ठी लिखी है। उन्होंने मांग की है कि कर्मचारियों की छंटनी और मंत्रालय को खत्म करने के प्रस्ताव के क्या नतीजे होंगे, इसकी जांच की जाए। वॉरेन 'सेव अवर स्कूल्स' नाम से एक अभियान चला रही हैं। उनका कहना है कि इस बदलाव से पूरे देश में छात्रों और परिवारों के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।
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