यह दौर ऐसा बन चुका है जहाँ सुबह की शुरुआत मोबाइल के अलार्म से होती है और दिन का अंत इंस्टाग्राम या यूट्यूब स्क्रॉल करते हुए होता है। यह दिनचर्या अब केवल वयस्कों की नहीं रह गई है—हमारे बच्चे और किशोर भी इसी डिजिटल चक्र में उलझते जा रहे हैं। मोबाइल, टैबलेट और गैजेट्स अब सिर्फ पढ़ाई के उपकरण नहीं हैं, बल्कि ये मनोरंजन, सोशल कनेक्टिविटी और खुद को साबित करने का एक बड़ा माध्यम बन गए हैं। लेकिन यही स्क्रीन, जो कभी ज्ञान का स्रोत मानी जाती थी, अब धीरे-धीरे हमारे टीनएजर्स की मानसिक और शारीरिक सेहत को खोखला कर रही है।
स्क्रीन टाइम और उससे जुड़ी परेशानियां
डॉक्टर्स और हेल्थ एक्सपर्ट्स बताते हैं कि बच्चों में स्क्रीन टाइम का अत्यधिक उपयोग कई गंभीर दिक्कतें पैदा कर रहा है। मोबाइल, टैबलेट और लैपटॉप की नीली रोशनी आंखों को नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ नींद की गुणवत्ता को भी बिगाड़ देती है। इसके अलावा लगातार मिलने वाला डिजिटल कंटेंट दिमाग को हमेशा एक्टिव रखता है, जिससे शरीर और मस्तिष्क को आराम नहीं मिल पाता।
जब नींद बन जाए सबसे बड़ी कमी
अगर एक किशोर प्रतिदिन 5-6 घंटे स्क्रीन के सामने बिता रहा है, तो उसकी नींद का पूरा चक्र गड़बड़ा जाता है। इससे थकान, चिड़चिड़ापन, एकाग्रता की कमी और लंबे समय में डिप्रेशन जैसे लक्षण भी सामने आ सकते हैं। नींद का पूरा न होना किशोरों के विकास और मानसिक संतुलन को गहरी चोट पहुंचाता है।
सोशल मीडिया का दबाव और तनाव
इंटरनेट की दुनिया में हर किसी की जिंदगी परफेक्ट दिखती है—फिल्टर्ड तस्वीरें, ग्लैमरस लाइफस्टाइल, बिना किसी परेशानी के खुशहाल जीवन। लेकिन इन फेक रियलिटीज को देखकर किशोर खुद को कमतर समझने लगते हैं। वे बार-बार खुद की तुलना दूसरों से करते हैं और इस तुलना में ही खो बैठते हैं आत्मविश्वास। यही चीज उन्हें भावनात्मक रूप से अस्थिर करती है और तनाव, चिंता और डिप्रेशन को जन्म देती है।
शारीरिक स्वास्थ्य पर असर भी कम नहीं
लगातार स्क्रीन देखने से आंखों में जलन और थकावट
माइग्रेन और सिर दर्द की शिकायत
लंबे समय तक गलत पोजीशन में बैठने से गर्दन और पीठ का दर्द
फिजिकल एक्टिविटी की कमी से वजन बढ़ना और मोटापा
समाधान क्या हो सकता है?
स्क्रीन टाइम को सीमित करें – बच्चों को रोज़ाना 2 घंटे से अधिक स्क्रीन टाइम न दें।
डिजिटल डिटॉक्स डे – हफ्ते में एक दिन ऐसा रखें जहां कोई भी डिजिटल डिवाइस न इस्तेमाल हो।
फिजिकल एक्टिविटी को बढ़ावा दें – आउटडोर गेम्स, स्पोर्ट्स, योग जैसे विकल्प दें।
सोशल मीडिया पर खुलकर बात करें – बच्चों से बातचीत करें कि जो वे ऑनलाइन देखते हैं, वह पूरी सच्चाई नहीं होती।
स्क्रीन-फ्री स्लीप रूटीन अपनाएं – सोने से कम से कम एक घंटा पहले स्क्रीन से दूरी बनाएं।
डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है। किसी भी सुझाव को अपनाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लेना जरूरी है।
You may also like
1 साल के बच्चे ने सांप को चबाकर मार डाला, खुद हुआ बेहोश, जानिए क्या है मामला
Amarnath Yatra : सीआरपीएफ की इस महिला टीम ने जीता अमरनाथ तीर्थयात्रियों का दिल
थाइलैंड-कंबोडिया संघर्ष में सीजफायर कराने के लिए हुई डोनाल्ड ट्रंप की एंट्री
प्रधानमंत्री मोदी देशभर के करोड़ों युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत : राममोहन नायडू
भारत ने आतंकवाद के खिलाफ दुनिया भर में जीरो टॉलरेंस का दिया बड़ा संदेश: अमित शाह (लीड-1)