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निर्जला एकादशी 2025: व्रत, परंपरा और सावधानियां — क्यों माना जाता है इतना खास

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हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है, लेकिन निर्जला एकादशी उन सभी में सर्वाधिक पुण्यदायिनी मानी जाती है। यह एकादशी हर वर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में आती है। 2025 में यह पावन तिथि 23 मई को मनाई जा रही है। इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है, जिसका उल्लेख पुराणों में मिलता है।

यह एकमात्र ऐसी एकादशी है, जिसमें व्रती पूरे दिन अन्न और जल दोनों का त्याग करता है — इसलिए इसे “निर्जला” कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत रखने से पूरे वर्ष की सभी 24 एकादशियों का पुण्य प्राप्त होता है।


निर्जला एकादशी का धार्मिक महत्व

पौराणिक कथाओं के अनुसार, भीमसेन (महाभारत के पांडव) को उपवास करना कठिन लगता था, इसलिए उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से मार्ग पूछा जिससे एक ही दिन व्रत रखकर उन्हें साल भर की एकादशियों का फल मिल सके। तब श्रीकृष्ण ने उन्हें निर्जला एकादशी का उपदेश दिया। तभी से इसे "भीमसेनी एकादशी" भी कहा जाने लगा।


इस दिन व्रती भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की विधिपूर्वक पूजा करता है, व्रत रखता है, और रात्रि जागरण तथा कीर्तन करता है।

इस दिन क्या नहीं करना चाहिए

हिंदू शास्त्रों में निर्जला एकादशी पर कुछ विशेष नियमों का पालन करने की सलाह दी गई है:

1. चावल का सेवन वर्जित है

धर्मशास्त्रों के अनुसार, एकादशी के दिन चावल खाना पाप तुल्य होता है। मान्यता है कि चावल खाने वाला अगले जन्म में निम्न योनि में जन्म ले सकता है।

2. नमक का सेवन न करें

यह माना जाता है कि नमक खाने से व्रत का प्रभाव कम हो जाता है और गुरु ग्रह तथा एकादशी का पुण्य फल नष्ट हो सकता है।

3. तुलसी को न छूएं या जल अर्पित न करें

इस दिन तुलसी माता स्वयं उपवासी रहती हैं। उन्हें छूना या जल देना अशुभ माना जाता है। ध्यान दें कि तुलसी को लक्ष्मी जी का रूप माना गया है।

4. क्रोध और अपशब्दों से बचें

यह दिन संयम का प्रतीक है। गाली-गलौज, कटु वचन, या विवाद करने से व्रत की शुद्धता भंग होती है।

5. बाल और नाखून न काटें

यह दिन शारीरिक शुद्धि नहीं बल्कि आत्मिक साधना के लिए होता है। बाल या नाखून काटना अपवित्रता माना जाता है।

क्या करें इस दिन

1. भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की आराधना करें ध्यान, जप, पाठ, और पूजा द्वारा दिन भर ईश्वर का स्मरण करें।

2. तुलसी दल के साथ भगवान को भोग अर्पण करें

तुलसी के पत्ते के बिना भगवान विष्णु की पूजा अधूरी मानी जाती है।

3. आरती और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें

श्री हरि की महिमा का गुणगान करें और रात्रि में भजन-कीर्तन करें।

4. दान-दक्षिणा दें और जरूरतमंदों की सेवा करें

निर्जला एकादशी के दिन जल, अन्न, वस्त्र, छाता, पंखा आदि का दान विशेष फलदायी होता है।

व्रत का उद्देश्य: आत्मशुद्धि और सेवा

निर्जला एकादशी का उद्देश्य सिर्फ उपवास नहीं है, बल्कि यह आत्मशुद्धि, अनुशासन, और ईश्वर भक्ति का एक माध्यम है। यह व्रत शरीर को तपाकर आत्मा को ऊर्जावान बनाता है, और जीवन में संयम, दया और सेवा की भावना को जाग्रत करता है।

निर्जला एकादशी न केवल व्रत का पर्व है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक यात्रा है, जो भक्त को भगवान विष्णु के चरणों की ओर अग्रसर करती है। इस व्रत को पूरी श्रद्धा, नियम और संयम के साथ करने पर न केवल सांसारिक सुख की प्राप्ति होती है, बल्कि मोक्ष का द्वार भी खुलता है।

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