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संस्कारविहीन शिक्षा आतंकवादी और भ्रष्टाचारी बनाती है : इंद्रेश कुमार

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भोपाल, 6 मई . राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार ने कहा कि संस्कारविहीन शिक्षा से आतंकवादी और उग्रवादी बनते हैं. मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के कुशाभाऊ ठाकरे कन्वेंशन सेंटर में मध्य प्रदेश के नीति आयोग की ‘नीति संवाद श्रृंखला’ में हिस्सा लेने आए इंद्रेश कुमार ने अपनी बात बेबाक तरीके से कही. इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री मोहन यादव भी मौजूद रहे.

आरएसएस नेता इंद्रेश कुमार ने कहा कि आतंकवाद विकारमुक्त हिंदुस्तान बन सके, इसके लिए प्रयास जरूरी हैं. जिस शिक्षा में संस्कार नहीं, वह आतंकवादी और उग्रवादी बना देती है. इसलिए शिक्षा में संस्कार जरूरी हैं. जो शिक्षित है, वह आदमी भ्रष्टाचारी या आतंकवादी नहीं बन सकता. वह क्रोधी, अहंकारी भी नहीं बन सकता. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसा ही भारत बना रहे हैं.

आरएसएस नेता इंद्रेश कुमार ने स्वयं का जिक्र करते हुए कहा कि मुझे इंजीनियर बनाया गया, इस पर खर्च हुआ, लेकिन मुझे अच्छा इंसान बनाने पर कुछ भी खर्च नहीं हुआ. यह सिर्फ सिस्टम से हो सकता है. हमें शिक्षित होने का मतलब समझना होगा.

उन्होंने कहा कि संस्कार का सबसे अच्छा उदाहरण राम-रावण हैं. एक को हर साल जलाया जाता है, एक को युगों-युगों से पूजा जा रहा है. भारत सरकार चाहती है कि भारत दुनिया का विश्वगुरु कहलाए. दंगा मुक्त हिंदुस्तान क्यों नहीं हो सकता? अतिथि देवो भव की सभ्यता अन्य किसी जगह नहीं है. 600-700 साल पहले सभी हिंदुस्तानी हिंदू थे. हम जैसा हिंदुस्तान चाहते हैं, अब वैसा नहीं है. रूसी, चीनी, ब्रिटिश कभी जातियों से नहीं जाने जाते. यह सब संवाद से ही संभव है.

इंद्रेश कुमार ने आगे कहा कि भारत ने समाज की रचना की थी, तो भारत का विज्ञान कल्चराइजेशन था. सभी की अलग-अलग पहचान होते हुए भी हम सब एक थे.

इस मौके पर मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा कि एक समय हमारा शैक्षणिक स्तर 100 प्रतिशत था. समय के साथ ये कम हो गया था. हम फिर अलग-अलग भाषाओं में पाठ्यक्रम लागू कर रहे हैं. पाठ्यक्रम में रानी दुर्गावती, झांसी की रानी को उचित स्थान तक नहीं मिला. अतीत के ऐसे कई उदाहरण हैं. हम पढ़ा रहे हैं, लेकिन पढ़ा क्या रहे हैं, यही नहीं मालूम. 10वीं-12वीं के बाद दुकान खोल देते थे. मुझे भी दुकान खुलवा दी थी. मैंने कहा सुबह से दुकान खोलूंगा, तो पढ़ने कब जाऊंगा. हमारी शिक्षा व्यवस्था ऐसी है, लेकिन मुझे सुबह-शाम ही बैठने की छूट मिल गई थी. पढ़ाई सिर्फ नौकरी के लिए नहीं करनी चाहिए. छोटे रोजगार से स्किल डेवलपमेंट भी हो जाता है. मेडिकल एजुकेशन और हॉस्पिटल पहले अलग-अलग थे. हमने कहा कि ये अलग-अलग कैसे हो सकते हैं? अब राज्य में एक कर दिए गए हैं.

एसएनपी/डीएससी

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