New Delhi, 12 जुलाई . सावन का महीना शुरू होते ही जगह-जगह भगवा रंग की रौनक दिखने लगी है. सड़कों पर भगवा कपड़े पहने कांवड़िए नजर आ रहे हैं, जो कंधे पर कांवड़ उठाए, भोलेनाथ का नाम लेते हुए पैदल यात्रा पर निकल पड़े हैं. लेकिन कभी सोचा है कि कांवड़ियों को हमेशा भगवा कपड़ों में ही क्यों देखा जाता है? वे कोई दूसरे रंग के कपड़े क्यों नहीं पहनते? इसके पीछे बड़ा ही सुंदर और गहरा अर्थ है.
दरअसल, कांवड़ियों के लिए यह भगवा रंग सिर्फ एक कपड़ा नहीं होता, बल्कि भगवान शिव के प्रति भक्तों की सच्ची भक्ति, त्याग और संकल्प का प्रतीक होता है. यही रंग दिखाता है कि अब ये भक्त दुनिया की मोह-माया से ऊपर उठकर बस भोलेनाथ की भक्ति में लीन हो चुके हैं. कांवड़ यात्रा सावन महीने में की जाती है, जो भगवान शिव का सबसे प्रिय महीना है. माना जाता है कि इस महीने में भोलेनाथ धरती पर अपने भक्तों की पुकार जल्दी सुनते हैं और उनकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं.
भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए भक्त कई दिनों तक पैदल चलते हैं, रात भर जागते हैं, तप करते हैं और पूरे रास्ते भोलेनाथ का नाम जपते रहते हैं. इस दौरान कांवड़िए कई नियमों का पालन करते हैं. वे सिर्फ सात्विक खाना खाते हैं, झूठ नहीं बोलते और मन को शांत रखते हैं. यही वजह है कि कांवड़ यात्रा को तप और सेवा का रूप माना जाता है. इसमें भगवा रंग का खास महत्व होता है. यह ना सिर्फ साधुओं का, बल्कि त्याग और संयम का प्रतीक माना जाता है. भगवा वस्त्र पहनने का मतलब है कि कांवड़िया अब शिव की सेवा में है और उसने दुनियावी इच्छाओं से दूरी बना ली है.
भगवा रंग को पहनकर कांवड़ियों को एक अलग ही ऊर्जा मिलती है. उनका आत्मविश्वास बढ़ता है और हर मुश्किल में उनका हौसला मजबूत बना रहता है. यही वजह है कि हर साल लाखों भक्त इस यात्रा में शामिल होते हैं और भगवा कपड़े पहनकर भोलेनाथ का नाम लेते हुए आगे बढ़ते हैं.
सावन शिवरात्रि तक चलने वाली ये यात्रा सिर्फ एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि लोगों की आस्था, विश्वास और भक्ति का सटीक उदाहरण है.
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पीके/जीकेटी
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