अमेरिका ने हाल ही में भारत पर आर्थिक प्रतिबंधों और टैरिफ की घोषणा कर दी है। व्हाइट हाउस की प्रेस सेक्रेटरी कैरोलीन लीविट ने मंगलवार को ऐलान किया कि रूस पर दबाव डालने के लिए भारत पर 50 नए टैरिफ लगाए जाएंगे। इनमें 25% रेसीप्रोकल टैरिफ और रूस से तेल खरीदने पर 25% पेनल्टी शामिल है। रेसीप्रोकल टैरिफ 7 अगस्त से लागू हो चुका है जबकि पेनल्टी 27 अगस्त से लागू होगी। लीविट के अनुसार इस कदम का मकसद रूस पर “सेकेंडरी प्रेशर” बनाना है, ताकि वह यूक्रेन युद्ध खत्म करने पर मजबूर हो। पर सच यह है कि भारत असल में अमेरिका की “पॉलिसी हिट-लिस्ट” पर है।
टैरिफ का बहाना और वास्तविक लक्ष्य
अमेरिका का तर्क है कि रूस से तेल खरीदना युद्ध को वित्तीय मदद देना है। पर यह तर्क तब बेमानी लगता है जब यूरोप के देश अभी भी रूस से ऊर्जा आयात कर रहे हैं। जर्मनी और फ्रांस तक ने रूस से गैस सप्लाई को लेना लगातार जारी रखा है। तुर्की और जापान जैसे देश भी रूस से तेल खरीद रहे हैं। तब फिर सिर्फ भारत पर टैरिफ़ और पेनल्टी क्यों? इसका सीधा अर्थ है कि अमेरिका भारत की स्वतंत्र नीति से परेशान है और उसे नियंत्रित करना चाहता है।
स्वतंत्र विदेश नीति और अमेरिकी बेचैनी!
भारत ने बीते एक दशक में विदेश नीति का नया संतुलन बनाया है। एक तरफ अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ सामरिक साझेदारी, दूसरी तरफ रूस और खाड़ी देशों के साथ ऊर्जा सहयोग। यही नहीं, अफ्रीकी देशों और एशिया-प्रशांत क्षेत्र के साथ भी भारत ने अपने रिश्ते गहरे किए हैं। रूस से सस्ता तेल लेकर भारत ने ऊर्जा लागत घटाई और महंगाई को काबू में रखा। यही कदम भारत की अर्थव्यवस्था को स्थिर रखने में मददगार साबित हुआ। अमेरिका को यह स्वतंत्र नीति “खटक” रही है, क्योंकि उसका मकसद भारत को पश्चिम पर निर्भर बनाए रखना है।
व्हाइट हाउस का दावा ये भी है- व्यापार बना हथियार
व्हाइट हाउस की प्रेस सेक्रेटरी लीविट ने दावा किया कि ट्रम्प ने पहले भी व्यापार को हथियार बनाकर कई संघर्ष खत्म कराए। उदाहरण के तौर पर उन्होंने कहा कि “ऑपरेशन सिंदूर” के बाद भारत-पाक संघर्ष को ट्रम्प ने रोका था। इसी तरह अजरबैजान-आर्मेनिया और रवांडा-कॉन्गो विवाद में भी दख़ल दिया गया। लेकिन इन दावों के पीछे असल मंशा अलग थी। अमेरिका अक्सर संघर्षों का इस्तेमाल अपनी रणनीतिक पकड़ मजबूत करने के लिए करता है। भारत-पाक झगड़े का श्रेय लेना भी इसी राजनीति का हिस्सा है। जबकि भारत की ओर से यह कई राष्ट्रीय एवं अतंरराष्ट्रीय मंचों पर साफ किया जा चुका है कि “ऑपरेशन सिंदूर” के तहत जो एक्शन भारत ले रहा था, वह किसी बाहरी दबाव के चलते नहीं रोका गया है, पाकिस्तान पर “ऑपरेशन सिंदूर” अभी भी चालू है, उसने हरकत की और तुरंत उसे जवाब दिया जाएगा। इससे साफ है कि व्हाइट हाउस की प्रेस सेक्रेटरी लीविट का किया जा रहा, ये दावा एकदम जूठा है और इस तरह से अमेरिका दुनिया को बार-बार गुमराह करने का ही काम कर रहा है।
भारत की बढ़ती ताकत से उपजी असुरक्षा
दरअसल, भारत आज दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था है। अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) और विश्व बैंक तक मान चुके हैं कि आने वाले वर्षों में भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था की धुरी बनेगा। क्योंकि अभी भारत ने रूस से सस्ता तेल खरीदकर महंगाई को नियंत्रित किया। विदेशी मुद्रा भंडार लगातार मजबूत हो रहा है। ग्लोबल कंपनियाँ चीन से हटकर भारत में निवेश बढ़ा रही हैं। अमेरिका को यही डर है कि भारत की यह प्रगति उसे न केवल एशिया-प्रशांत क्षेत्र में बल्कि वैश्विक मंच पर भी बराबरी की स्थिति में खड़ा कर देगी। यही असुरक्षा अमेरिकी दबाव की असली वजह है।
जूठ और पाखंड का पर्दाफाश
यह सवाल बार-बार उठना लाजमी है कि अगर रूस से तेल खरीदना युद्ध को फंड करना है तो यूरोप के लिए छूट क्यों? यूरोपीय देशों की ऊर्जा ज़रूरतें समझी जाती हैं, लेकिन भारत की नहीं। यही अमेरिका की “दोहरी नीति” है। इस पाखंड का मकसद भारत की स्वतंत्रता को सीमित करना है। अमेरिका नैतिकता का मुखौटा पहनकर असल में आर्थिक हित साध रहा है। यह खुला झूठ है कि भारत पर दबाव डालकर रूस को रोका जा सकता है। असल में निशाना भारत की तेज़ी से बढ़ती ताक़त है।
रूस-यूक्रेन और इजराइल-हमास के बीच भारत पर दुनिया को दे रहा अमेरिका संदेश
ट्रम्प ने हाल ही में यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की से मुलाकात की, पुतिन से फोन पर बातचीत की और यूरोपीय नेताओं के साथ मीटिंग की। इस दौरान कोई ठोस समझौता नहीं हुआ। लेकिन भारत को दबाव के प्रतीक के तौर पर इस्तेमाल किया गया। अमेरिका यह संदेश देना चाहता है कि अगर वह भारत जैसे उभरते देश को भी नियंत्रित कर सकता है तो रूस और चीन को डरना चाहिए। यानी असली खेल “प्रदर्शन की राजनीति” है। ट्रम्प प्रशासन का व्यवहार बताता है कि अमेरिका भारत को बराबरी का भागीदार मानने के बजाय “कंट्रोल करने योग्य देश” समझता है।
जब तक भारत अमेरिकी नीतियों के हिसाब से चलता है, सब ठीक है। लेकिन जैसे ही भारत स्वतंत्र रास्ता चुनता है, टैरिफ, पेनल्टी और प्रतिबंध की झड़ी लगा दी जाती है।
भारत के लिए अब यही रास्ता है, आत्मनिर्भर नीति
अमेरिका बार-बार दावा करता है कि वह लोकतांत्रिक साझेदार है। लेकिन जब भारत अपने हित में निर्णय लेता है तो उसे दंडित किया जाता है। यह अमेरिका का सबसे बड़ा झूठ और पाखंड है। भारत पर टैरिफ़ और पेनल्टी इस बात का सबूत हैं कि अमेरिका भारत की बढ़ती ताक़त से घबराया हुआ है। नियम सबके लिए नहीं, बल्कि सिर्फ भारत के लिए बनाए जाते हैं। असल में यह संघर्ष रूस से तेल या यूक्रेन युद्ध का नहीं है। यह संघर्ष भारत की स्वतंत्र नीति और उसकी आर्थिक प्रगति के खिलाफ अमेरिका की असुरक्षा का प्रतीक है। भारत को चाहिए कि वह आत्मविश्वास के साथ अपनी राह पर आगे बढ़े और अमेरिका को यह संदेश दे कि 21वीं सदी का भारत किसी भी दबाव के आगे झुकने वाला नहीं है। भारत को चाहिए कि अमेरिकी दबाव के बावजूद अपनी स्वतंत्र विदेश नीति पर कायम रहे। ऊर्जा स्रोतों का विविधीकरण जारी रखे । घरेलू उत्पादन और विनिर्माण को मजबूत करने पर जोर देता रहे। वैकल्पिक वैश्विक गठजोड़ (जैसे ब्रिक्स, SCO, ग्लोबल साउथ) में अपनी भूमिका बढ़ाने के लिए सतत प्रयास करता रहे ।
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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी
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