साल 2020 में उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगों के एक और मामले में कोर्ट ने दिल्ली पुलिस की 'थ्योरी' पर सवाल उठाते हुए 10 अभियुक्तों को सभी मामलों से बरी कर दिया है.
इन सभी अभियुक्तों पर आरोप लगाए गए थे कि दंगों के दौरान उन्होंने उत्तर पूर्वी दिल्ली के गोकुलपुरी थाने क्षेत्र के एक घर और दुकान पर हमला किया था.
इन अभियुक्तों पर आईपीसी की धाराओं 147/148/149/436/454/392/452/188/153-A/427/506 के तहत आरोप पत्र दाख़िल किए गए थे.
दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पुलस्त्या प्रमचाला ने कहा कि 'अभियुक्तों के ख़िलाफ़ लगे आरोप संदेह से परे साबित नहीं हुए.'
कोर्ट ने 11 सितम्बर को दिए अपने फ़ैसले में संदेह का लाभ देते हुए अभियुक्तों- मोहम्मद शाहनवाज़ उर्फ़ शानू, मोहम्मद शोएब उर्फ़ छुटवा, शाहरुख़, राशिद उर्फ़ राजा, आज़ाद, अशरफ़ अली, परवेज़, मोहम्मद फ़ैसल, राशिद उर्फ़ मोनू और मोहम्मद ताहिर को बरी कर दिया.
अदालतों ने पहले भी दिल्ली दंगों के कई मामलों में दिल्ली पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए सख़्त टिप्पणियां की हैं.
BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें- दिल्ली हाई कोर्ट ने लगाई फटकार, कहा- दंगों में पुलिस दोषियों को बचाने की कर रही है कोशिश
- दिल्ली दंगे झेल चुके एक मुसलमान के ख़ौफ़, हौसले और उम्मीद की कहानी
- दिल्ली दंगों के मामले में उमर ख़ालिद को फिर नहीं मिली ज़मानत
कोर्ट के फ़ैसले में दर्ज घटना के अनुसार, शिकायतकर्ता नरेंद्र कुमार की ओर से आरोप लगाया गया था कि दंगे के दौरान दंगाइयों ने सोने और चांदी की ज्वेलरी के साथ दो लाख रुपये नक़दी लूट ली.
शिव विहार तिराहे के पास चमन पार्क में रहने वाले नरेंद्र कुमार ने एक मार्च 2020 को लिखित शिकायत दर्ज कराई थी.
शिकायत के मुताबिक़, 24 फ़रवरी 2020 को दोपहर 2.30 बजे के क़रीब 1500 लोगों की भीड़ ने उनके घर पर हमला कर दिया.
ग्राउंड फ़्लोर पर स्थित पिज़्ज़ा डाइट दुकान में उन्होंने तोड़फोड़ की और इसके सवा घंटे बाद कुछ लोगों ने ऊपरी माले पर पहुंच कर परिवार को जान से मारने की धमकी दी और 15 तोला सोना, आधा किलो चांदी की ज्वेलरी और दो लाख नकद लूट लिए.
दंगाइयों ने किचन में मौजूद सिलेंडर के ज़रिए घर में आग लगा दी. हमले के समय नरेंद्र कुमार घर पर मौजूद थे और परिवार ने किसी तरह जान बचाकर अपने रिश्तेदार के यहां शरण ली.
मुकदमा चार मार्च 2020 को दर्ज किया गया. इसके क़रीब एक महीने बाद जांच अधिकारी ने ड्यूटी पर मौजूद कांस्टेबल विपिन (गवाह नंबर 6), हेड कांस्टेबल संजय (गवाह नंबर 9) और एएसआई हरि बाबू (गवाह नंबर 13) से पूछताछ की, जिन्होंने दावा किया कि वो घटना के प्रत्यक्षदर्शी थे.
एक और प्रत्यक्षदर्शी श्याम सुंदर (गवाह नंबर 3) का भी बयान लिया गया.
चार्जशीट के मुताबिक़, इन सभी गवाहों ने सभी 10 अभियुक्तों की पहचान की, जिसके बाद उन्हें गिरफ़्तार किया गया.
ये अभियुक्त पहले ही एफ़आईआर नंबर 39/2020, गोकुलपुरी थाने के तहत गिरफ़्तार किए गए थे. ये पाया गया कि यह जगह मौका-ए-वारदात के क़रीब थी.
- दिल्ली दंगों के चार साल: सैकड़ों एफ़आईआर और गिरफ़्तारियाँ, लेकिन कितनों को मिला इंसाफ़
- अमेरिका की सरकारी मानवाधिकार रिपोर्ट में भारत के बुलडोज़र की चर्चा
- शरजील इमाम को बरी करते हुए कोर्ट ने बताया ‘बलि का बकरा’
इस मुकदमे की सुनवाई 14 जुलाई 2020 को शुरू हुई, 28 अगस्त 2024 को सुनवाई पूरी होने पर फैसला सुरक्षित रख लिया गया और 11 सितम्बर को फैसला सुनाया गया.
इस मुकदमे में 17 गवाहों से अभियोजन पक्ष ने जिरह की. लेकिन आदालत ने पाया कि पहले गवाह नरेंद्र कुमार (गवाह नंबर 1), उनकी पत्नी पूनम जौहर (गवाह नंबर 2) और श्याम सुंदर (गवाह नंबर 3) ने अभियुक्तों की पहचान के समय अभियोजन पक्ष के दावे का समर्थन नहीं किया, इसलिए उन्हें प्रतिकूल गवाह घोषित कर दिया गया.
इसके अलावा घटना के चश्मदीद दो कांस्टेबल और एक हेड कांस्टेबल के बयानों पर भी अदालत ने सवाल उठाया और कहा कि उनके 'विरोधाभासी बयानों' के कारण उनके बयान की विश्वसनीयता पर संदेह पैदा होता है.
कोर्ट ने अपने फैसले में हेड कांस्टेबल संजय के बयान पर भी सवाल उठाए.
कोर्ट ने पाया कि ड्यूटी रोस्टर के अनुसार, कांस्टेबल विपिन और एएसआई हरि बाबू की ड्यूटी चमन पार्क में थी, जबकि संजय की ड्यूटी जौहरीपुर में थी. इसका कोई सबूत नहीं है कि संजय को उन दोनों पुलिसकर्मियों के साथ ड्यूटी का निर्देश दिया गया था.
कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा, “अभियोजन पक्ष के सबूत में यह विरोधाभासी अंतर, प्रत्यक्षदर्शियों के बयानों की विश्वसनीयता पर प्रतिकूल असर डालता है.”
तीसरे जांच अधिकारी इंस्पेक्टर मनोज के बयान पर सवाल उठाते हुए कोर्ट ने कहा कि ड्यूटी रोस्टर को बिना फ़ाइल में शामिल किए जांच अधिकारी ने पाया कि संजय, विपिन और हरि बाबू बृजपुरी इलाक़े में ड्यूटी पर थे.
अदालत ने कहा, “सवाल ये है कि उन्हें कैसे पता चला. इस तरह के दावे बनावटी प्रतीत होते हैं.”
छठे गवाह कांस्टेबल विपिन ने अभियुक्त राशिद उर्फ़ मोनू को और हेड कांस्टेबल संजय ने मोहम्मद फ़ैसल और अशरफ़ अली की पहचान की थी. लेकिन एएसआई हरी बाबू ने इनमें से किसी की पहचान नहीं की.
चश्मदीद विपिन और संजय के बयान लेने में देरी पर भी सवाल उठाए, इसके बावजूद कि जांच अधिकारी के साथ रोज़ाना की ब्रीफ़िंग में वो साथ रहते थे.
ये भी पाया गया कि प्रत्यक्षदर्शियों की ओर से कोई पीसीआर कॉल नहीं की गई, जिसका उन्होंने दावा किया था और अभियोजन पक्ष ने तीन पुलिसकर्मियों (विपिन, संजय और हरि बाबू) के बयानों पर भरोसा किया.
- दिल्ली दंगे 2020: पूर्व जजों की रिपोर्ट में पुलिस, सरकार और मीडिया पर गंभीर सवाल
- बीजेपी विधायक बोले, ‘समझाने गए थे पर दिल्ली पुलिस ने केस कर दिया कि हमने जिहादी मारे’
- दिल्ली दंगों में मारे गए हेड-कॉन्सटेबल रतन लाल का परिवार अब किस हाल में है?
बचाव पक्ष ने अपनी अपील में दावा किया कि विपिन, संजय और हरि बाबू अभियुक्तों के नाम और जानकारियां जानते थे, लेकिन इन सूचनाओं को 8 अप्रैल 2020 से पहले दर्ज नहीं किया.
बचाव पक्ष ने दावा किया कि इन तीनों पुलिसकर्मियों को 'प्लांट' किया गया था और जवाब रटाए गए थे, इसलिए उनके बयान लेने में देरी हुई.
हालांकि जज ने कहा, “2019-कोविड महामारी की वजह से जांच को आगे बढ़ाने में देरी हो सकती है. हालांकि बनावटी दावा अलग मामला है, जो जांच अधिकारी और चश्मदीद पुलिसकर्मियों के दावे की वास्तविकता पर संदेह पैदा करता है.”
बचाव पक्ष ने अभियोजन के 13 नंबर के गवाह के बयान को भी चुनौती दी, जिसने शाहरुख़, परवेज़ और आज़ाद की पहचान के बारे में विरोधाभासी बयान दिए थे और उसकी मानसिक स्थिति पर सवाल खड़ा किया.
अदालत ने अपने फैसले में कहा, “गवाहों- छह, नौ और 13 के सबूतों पर भरोसा करना मुझे असुरक्षित लगता है कि सभी अभियुक्त भीड़ का हिस्सा थे, जिन्होंने शिकायतकर्ता (नरेंद्र कुमार) की संपत्ति पर हमला किया था.”
और कोर्ट ने तीनों पुलिसकर्मियों के ‘बनावटी’ बयानों को भरोसेमंद न मानते हुए सभी 10 अभियुक्तों को बरी कर दिया.
- जहांगीरपुरी का वो 'डर' जिसके चलते इलाका छोड़ रहे हैं मुसलमान
- जहांगीरपुरी हिंसा: बुलडोज़र ने जिनके दुकान-घर तोड़े, उनका क्या हाल है?
- भारत में क्या सांप्रदायिक दंगे बढ़ रहे हैं, आंकड़े क्या कहते हैं?
इससे पहले 2020 दंगों के कई मामलों में भी अलग-अलग अदालतें दिल्ली पुलिस की कार्यशैली की कड़ी आलोचना कर चुकी हैं.
दिल्ली दंगों से जुड़े कई मामलों में कोर्ट ने दिल्ली पुलिस की कार्यशैली पर तीखी टिप्पणियां की हैं और फटकार लगाई.
सुनवाइयों के दौरान कई मौके आए जब कोर्ट ने दिल्ली पुलिस के जांच के स्तर को ‘ख़राब’ बताया.
जुलाई 2024 में दिल्ली हाईकोर्ट ने दंगों के दौरान पुलिस की पिटाई के बाद 23 साल के फ़ैज़ान की मौत के मामले को सीबीआई को सौंप दिया था.
अदालत ने कहा कि पुलिसकर्मियों द्वारा पाँच लड़कों को पीटना “धार्मिक कट्टरता से प्रेरित था और इसलिए ये एक ‘हेट क्राइम’ माना जाएगा.”
कोर्ट ने पुलिस के इस बयान पर गंभीर सवाल उठाया कि फ़ैज़ान अपनी मर्ज़ी से एक रात थाने में रुके थे.
सितंबर 2021 में कड़कड़डूमा कोर्ट में जज विनोद यादव ने तीन अभियुक्तों को बरी करते हुए कहा था, ''आज़ादी के बाद हुए दिल्ली के सबसे भीषण सांप्रदायिक दंगे को इतिहास देखेगा, तो इसमें जाँच एजेंसियों की नाकामी पर लोकतंत्र समर्थकों का ध्यान जाएगा कि किस तरह से जाँच एजेंसियां वैज्ञानिक तौर तरीक़े का इस्तेमाल नहीं कर पाईं.''
इसी मामले में 2023 में कड़कड़डूमा कोर्ट में जज पुलस्त्या प्रमचाला ने कहा था, “चार्जशीट पूर्वाग्रहपूर्ण और ग़लत तरीक़े से दायर की गई थी ताकि शुरू में हुई ग़लतियों को छिपाया जा सके.”
इससे पहले 2022 में चार पूर्व जजों और भारत के एक पूर्व गृह सचिव ने दिल्ली दंगों पर फ़ैक्ट फ़ाइडिंग रिपोर्ट जारी की थी.
रिपोर्ट ने दिल्ली पुलिस की जाँच पर गंभीर सवाल उठाए थे. साथ ही केंद्रीय गृह मंत्रालय, दिल्ली सरकार और मीडिया की भूमिका पर भी सख़्त टिप्पणियाँ की गई थीं.
- बीजेपी ने मुसलमानों के ख़िलाफ़ युद्ध की घोषणा की है: ओवैसी
- जहांगीरपुरी में चले बुलडोज़र पर अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने क्या कहा
- जहांगीरपुरी में बुलडोज़र चलने के बाद की कहानी, पीड़ितों की जुबानी
साल 2020 में 23 से 26 फ़रवरी के बीच हुए सांप्रदायिक दंगों में 53 लोगों की जान गई थी.
चार दिनों तक चले दंगों में जान-माल का भारी नुक़सान हुआ था. कई लोगों के घर और दुकानों में आग लगा दी गई थी.
दिल्ली पुलिस के आँकड़े बताते हैं कि मरने वालों में 40 मुसलमान और 13 हिंदू थे.
बीबीसी को दिल्ली पुलिस में सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक़, पुलिस ने दंगों से जुड़ी कुल 758 एफ़आईआर दर्ज की हैं.
इनमें अब तक कुल 2619 लोगों की गिरफ़्तारी हुई थी, इनमें से 2094 लोग ज़मानत पर बाहर हैं.
अदालत ने अब तक सिर्फ़ 47 लोगों को दोषी पाया है और 183 लोगों को बरी कर दिया.
वहीं 75 लोगों के ख़िलाफ़ पर्याप्त सबूत ना होने के कारण कोर्ट ने उनका मामला रद्द कर दिया है.
न्यूज़ वेबसाइट 'द प्रिंट' में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक़ दिल्ली दंगों में मारे गये 53 लोगों की मौत से जुड़े मामलों में से 14 मामलों में अब तक जांच जारी है.
दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल और क्राइम ब्रांच का कहना है कि दिल्ली दंगों के पीछे एक गहरी साज़िश थी, जिसकी नींव 2019 में सीएए और एनआरसी के प्रदर्शनों के दौरान पड़ी.
इस साज़िश का ज़िक्र एफ़आईआर नंबर 59/2020 में किया गया है, जिसकी तहक़ीक़ात क्राइम ब्रांच की स्पेशल सेल कर रही है.
दिल्ली पुलिस जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर ख़ालिद को दिल्ली दंगों का मास्टरमाइंड मानती है. उमर ख़ालिद सितंबर 2020 से जेल में हैं और अभी तक उनकी ज़मानत नहीं हो पाई है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, एक्स, इंस्टाग्राम, और व्हॉट्सऐप पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)
- भीमा कोरेगांव: छह साल बाद किन-किन अभियुक्तों को मिली ज़मानत
- भीमा कोरेगांव मामला: क्या पुलिस ने ही अभियुक्तों के सिस्टम को हैक कर उनमें सबूत प्लांट किए?
- 2023 में उमर ख़ालिद की ज़मानत पर एक दिन भी नहीं हुई सुनवाई, कितने गंभीर हैं उन पर लगे आरोप?
- दिल्ली दंगा- एक साल बाद, चार्जशीट, क्रोनोलॉजी, साज़िश, गिरफ़्तार छात्र नेता और कार्यकर्ता
- जोधपुर में सांप्रदायिक हिंसा, यहां बार-बार क्यों होते हैं हिंदू-मुसलमान दंगे?
- पाकिस्तान में 30 एकड़ ज़मीन को लेकर सांप्रदायिक हिंसा, 43 लोगों की मौत
You may also like
UP News: शाहजहांपुर में मजार की दीवार तोड़ने को लेकर जबरदस्त हंगामा, तनाव के बाद पुलिस और पीएसी तैनात
इस brewery stock ने एक महीने में दिया 30% का रिटर्न, जारी है बढ़त, एक्स्पर्ट ने दी ये राय
लैंड फॉर जॉब घोटालाः सीबीआई मामले में लालू यादव के खिलाफ मुकदमा चलाने को मंजूरी
अदालतों की न्यायिक कार्यवाही के संचालन में जजों और न्यायिक अधिकारियों के लिए दिशा-निर्देश बनाएंगेः सुप्रीम कोर्ट