सऊदी अरब और कुवैत में दो भारतीय मज़दूरों की मौत के बाद झारखंड के उनके गाँव में शवों का इंतज़ार किया जा रहा है.
इनमें से एक मज़दूर की मौत हुए 40 दिन हो चुके हैं जबकि दूसरे की मौत भी क़रीब 20 दिन पहले हुई थी. इनका शव आज तक परिवार वालों तक नहीं पहुँचा है.
यह मामला हज़ारीबाग ज़िले के बिष्णुगढ़ प्रखंड स्थित जोबर पंचायत के बनखार्रो गाँव का है.
यहाँ के एक प्रवासी मज़दूर धनंजय महतो की मौत सऊदी अरब में 24 मई 2025 को हो गई थी. वहीं 15 जून को दूसरे प्रवासी रामेश्वर महतो ने कुवैत के एक अस्पताल में आख़िरी सांस ली थी.
दोनों ही मज़दूरों के परिजन शव वापस लाने के लिए सरकार से गुहार लगा रहे हैं.
मामला सुर्खियों में आने के बाद झारखंड सरकार का श्रम विभाग विदेश मंत्रालय के अधीन आने वाले लेबर सेल प्रोटेक्टर ऑफ़ इमिग्रेंट के संपर्क में है. इसके साथ ही राज्य का श्रम विभाग सऊदी अरब और कुवैत स्थित भारतीय दूतावास से भी संपर्क में है.
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झारखंड सरकार के संयुक्त श्रम आयुक्त प्रदीप लकड़ा कहते हैं कि "मामला दो देशों के बीच का है, इसलिए कागज़ी कार्रवाई के अलावा मुआवज़े की राशि पर परिवार की सहमति के लिए एनओसी मिलने में देरी हो रही है."
प्रदीप लकड़ा के अनुसार, दोनों मामलों में झारखंड सरकार के लेबर सेल की टीम हेड शिखा लकड़ा विदेश मंत्रालय के अधीन प्रोटेक्टर ऑफ़ इमिग्रेंट के साथ सऊदी अरब और कुवैत स्थित भारतीय दूतावास के साथ लगातार संपर्क में हैं.
शिखा लकड़ा के अनुसार, प्रक्रिया अंतिम चरण में है. जल्द ही शव मृतकों के पैतृक गांव बनखार्रो पहुंचने की उम्मीद है.
लेकिन मृतक धनंजय महतो की माँ पनवा देवी सवाल करती हैं, "पिछले 37 दिनों से केवल उम्मीद ही मिल रही है. कोई ये पता नहीं लगा कर बता रहा है कि मेरे बेटे की मौत कैसे हुई?"
कैसे हुई धनंजय महतो की मौत?धनंजय के परिवार ने बताया कि पिछले एक साल से लार्सन एंड टूब्रो कंपनी में कार्यरत धनंजय महतो सऊदी अरब की निर्माणाधीन परियोजना नियोम मेगा सिटी में ट्रांसमिशन लाइन के लिए टावर लगाने का काम कर रहे थे. इसके लिए उन्हें चालीस हज़ार रुपए वेतन मिलता था.
यहाँ साइट से कुछ दूरी पर मज़दूरों के रहने के लिए कंटेनर से बनी अस्थायी रिहायशी डॉर्मेटरी है. धनंजय यहां दूसरी मंज़िल पर झारखंड के अन्य मज़दूरों के साथ रहते थे.
धनंजय महतो हमेशा साइट पर जाने से पहले अपनी पत्नी से सऊदी अरब के समय अनुसार सुबह के क़रीब पौने पांच बजे बात किया करते थे.
उनकी पत्नी गीतांजलि देवी के अनुसार 24 मई को वह हमेशा की तरह वीडियो कॉल पर बातें कर रहे थे.
वह कहती हैं कि "अचानक उनका मोबाइल गिर कर बंद हो गया. दोबारा कॉल लगाने पर उनका मोबाइल स्विच ऑफ़ मिला."
वह आगे कहती हैं, "कुछ देर के बाद उनके साथी मुकेश महतो (बदला हुआ नाम) ने कॉल करते हुए बताया कि पति धनंजय नीचे गिर गए हैं."
बीबीसी ने मुकेश महतो से फ़ोन पर बात की तो उन्होंने इस घटना के बारे में जानकारी दी.
मुकेश महतो के अनुसार, "24 मई को धनंजय महतो अपने कमरे से बाहर निकल कर सीढ़ियों पर बैठ कर जूता पहनने लगे. अन्य साथियों के साथ मुकेश साइट पर जाने के लिए बस में बैठ कर धनंजय का इंतज़ार करने लगे. तभी अचानक बाहर हल्ला हुआ कि धनंजय महतो नीचे गिर गए हैं. ये सुनकर सभी धनंजय के नज़दीक पहुंचे."
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मुकेश महतो ने कहा कि ज़मीन पर पड़े धनंजय महतो के मुंह से सिर्फ 'मां बचाओ' जैसी आवाज़ निकल रही थी.
मुकेश ने दावा किया कि 40 मिनट बाद ज़मीन पर तड़पते धनंजय को लेने के लिए एक एम्बुलेंस पहुंची, जिससे वह स्थानीय कैम्प अस्पताल भेजे गए.
धनंजय की हालत देख कर मुकेश और अन्य साथियों ने डॉक्टर से मिन्नतें कीं कि उन्हें किसी बड़े अस्पताल रेफर कीजिए.
इसके बाद लगभग सवा नौ बजे एयर एम्बुलेंस से उन्हें इलाज के लिए बाहर ले जाने की तैयारी शुरू हुई.
मुकेश कहते हैं, "लेकिन साढ़े नौ बजे धनंजय की सांसें पूरी तरह थम चुकी थीं"
गीतांजलि के अनुसार मुकेश महतो ने साढ़े नौ बजे धनंजय की मृत्यु की सूचना परिवार को दी.
धनंजय महतो की मौत कैसे हुई, उनके शव पहुँचने में हो रही देरी एवं मुआवज़े को लेकर बीबीसी ने लार्सन एंड टूब्रो कम्पनी के एच आर एडमिन आदित्य कुमार से बातचीत की. लेकिन उन्होंने किसी भी बिंदु पर बात करने से इंकार करते हुए कहा कि, "कम्पनी ने झारखंड के लेबर सेल को सूचित कर दिया है. आप उन्हीं से जानकारी लीजिए."
क़रीब 40 दिनों से घर में नहीं जला चूल्हा
गीतांजलि देवी के घर क़रीब चालीस दिनों से चूल्हा नहीं जला है. घरवालों के लिए रिश्तेदारों के घर से दिन में एक समय का भोजन आता है.
गीतांजलि कहती हैं, "रिश्तेदारों के भोजन पर कब तक निर्भर रहेंगे. बात सिर्फ मेरी नहीं बल्कि सवाल पूरे परिवार का है जो मेरे पति की कमाई पर निर्भर था."
धनंजय महतो के परिवार में उनकी पत्नी, डेढ़ साल और 5 साल के दो बेटे, और धनंजय के माता-पिता हैं.
वे घर के जिस एक कमरे में रहते थे उसकी खपरैल की छत हाल में हुई बारिश से गिर गई. ऐसे में धनंजय के बड़े भाई खिरोधर महतो ने हालात को देख कर हफ़्ते भर पहले अपना एक छोटा सा कमरा उन्हें रहने के लिए दे दिया.
घर की चिंता में गीतांजलि देवी कहती हैं, "आज नहीं तो कल इस कमरे को खाली करना पड़ेगा. अब तो पति भी नहीं हैं कि घर का बन सके."
धनंजय के घर में न तो शौचालय है और न ही पीने के पानी की कोई सुविधा. उनके माता-पिता को वृद्धा पेंशन भी नहीं मिलती.
इन समस्याओं को लेकर झारखंड सरकार के लेबर सेल की टीम प्रमुख शिखा लकड़ा कहती हैं कि "कागज़ी कर्रावाई के बाद शव के आते ही परिवार की प्रोफाइल बनेगी जिसके तहत धनंजय के परिवार को नियमानुसार हर संभव सुविधा दी जाएगी."
वह आगे कहती हैं, "जो प्रक्रिया धनंजय के परिवार के लिए है वही प्रक्रिया रामेश्वर महतो के लिए है."
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इसी बनखार्रो गांव में धनंजय महतो के घर से पांच सौ मीटर दूर रामेश्वर महतो का पक्का घर है जिसे उन्होंने कर्ज़ लेकर बनवाया था.
इस घर में मोबाइल बजते ही उनके मां-पिता, पत्नी, दोनों बेटे और बहू फ़ोन की तरफ देखने लगते हैं कि शायद रामेश्वर महतो के शव के आने की सूचना आई है.
वो कुवैत की एक कंपनी में 12 साल से नौकरी कर रहे थे. फ़िलहाल उनकी सैलरी 36 हज़ार रुपये थी.रामेश्वर महतो की मौत 15 जून को कुवैत के अदान अस्पताल में हुई. वह 6 जून से अस्पताल में भर्ती थे. जहां उनके क़रीब सहकर्मी रामकिशुन महतो ने अंत तक उनकी देखभाल की.
रामकिशुन ने फ़ोन पर बीबीसी को बताया," कुवैत के मबूला शहर के एक फ्लैट की छठी मंज़िल पर बनी डॉर्मेटोरी में साथ रहने वाले रामेश्वर महतो 6 जून को हमेशा की तरह स्वस्थ थे. दोपहर में उन्होंने ही सभी के लिए चिकन पकाया. साथ मिलकर जब खाने बैठे तो अचानक उनका बांया हाथ और पैर निष्क्रिय होने लगे. रात बारह बजे तक तबीयत में सुधार नहीं होने पर साथियों ने उन्हें चार किलोमीटर दूर अदान अस्पताल में भर्ती कराया."
रामकिशुन ने रामेश्वर के गिरते स्वास्थ्य की सूचना कंपनी के सुपरवाइज़र और उनके परिवार को दी.
रामकिशुन महतो समय-समय पर प्रमिला देवी को वीडियो कॉल से रामेश्वर महतो की झलक दिखा देते.
वह कहती हैं, "पति लकवाग्रस्त हो चुके थे, अचेत अवस्था में उनको ऑक्सीजन लगी थी. हम असहाय इतनी दूर से सिर्फ प्रार्थना ही कर सकते थे. लेकिन अब वह जीवित नहीं रहे."
प्रमिला आगे कहती हैं कि दो हफ्ते गुज़रने के बावजूद कुवैत से शव नहीं आया.
प्रमिला देवी के घर पर मौजूद प्रवासी मज़दूर एक्टिविस्ट सिकंदर अली के अनुसार बिष्णुगढ़, बगोदर और डुमरी प्रखंड से लगभग दस हज़ार मज़दूर भारत के बाहर काम कर रहे हैं. वह कहते हैं कि "विदेश में लेबर की मौत की सूचना अक्सर मिलती है. लेकिन उनके शव आने से लेकर मुआवज़ा मिलने तक के काम में बहुत देर हो जाती है."
रामेश्वर महतो के बहनोई टेकलाल महतो कहते हैं कि "शव के लिए मैंने बीडीओ से लेकर ज़िला उपायुक्त से मिल चुका हूं, लेकिन अभी तक कोई प्रोग्रेस नहीं दिखाई दिया."
क्या कहते हैं अधिकारी
हज़ारीबाग जिला उपायुक्त (ज़िलाधिकारी) शशि प्रकाश सिंह कहते हैं, "देरी को देख कर मैंने भारतीय दूतावास से दोनों परिवारों का सम्पर्क भारतीय दूतावास के अधिकारी से ख़ुद करवाया. अब एनओसी के लिए आवश्यक दस्तावेज़ भेजने की प्रक्रिया आरम्भ हो चुकी है. जैसे ही भारतीय दूतावास को एनओसी से सम्बंधित दस्तावेज़ उपलब्ध होंगे वैसे ही दोनों शव पैतृक गांव पहुंच सकेंगे."
मुआवज़े के संबंध में उपायुक्त ने बताया कि रामेश्वर महतो के मामले में डेथ क्लेम कुवैत की कोर्ट से तय होगा. जिसके लिए मृतक के परिवार को भारतीय दूतावास के माध्यम से दस्तावेज़ उपलब्ध करवाने थे.
वो कहते हैं कि, "ये प्रक्रिया जैसे ही एक से दो दिनों में हो जाएगी वैसे ही परिवार को शव भी प्राप्त हो जाएंगे. साथ ही मुआवज़े के लिए भारतीय दूतावास के सहयोग से परिवार को लाभान्वित करवाने की कोशिश करेंगे."
विदेश मंत्रालय के अधीन आने वाले प्रोटेक्टर ऑफ़ इमिग्रेन्ट्स के पदाधिकारी सुशील कुमार ने बीबीसी को बताया कि रामेश्वर महतो की मौत नेचुरल है.
उनका कहना है कि ऐसे में उनके परिवार को चार लाख बयालिस हज़ार नौ सौ चालीस रुपए कम्पनी की तरफ से बतौर मुआवज़ा मिलेगा, लेकिन इस रकम पर उनका परिवार सहमत नहीं हो रहा है.
सुशील कुमार का कहना है कि जब कोई प्रवासी भारत से विदेश जाते हैं तो उनका बीमा किया जाता है, जिसका क्लेम दस लाख रुपए बनता है. लेकिन इसका रिन्यूअल प्रवासी के एजेंट को हर सफ़र में करवाया जाना चाहिए.
रामेश्वर के मामले में क्लियर नहीं है कि उनके बीमा का रिन्यूअल हुआ है या नहीं.
वह आगे कहते हैं, "धनंजय महतो की मौत हादसे में हुई है. ऐसे में उनको परिवार की तरफ से जब तक एनओसी दस्तावेज़ नहीं मिलेंगे तब तक मुआवज़ा क्लियर नहीं हो पाएगा. लेकिन मुआवज़ा कम्पनी में किए गए जॉब के आधार पर तय होगा."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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