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शहबाज़ शरीफ़ के कश्मीर की तुलना फ़लस्तीन से करने पर भारत ने ऐसे दिया जवाब

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image Getty Images शहबाज़ शरीफ़ (फ़ाइल फ़ोटो)

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने जम्मू-कश्मीर की तुलना फ़लस्तीन से की है.

उन्होंने कहा है कि अगर कश्मीर में स्थायी शांति चाहिए तो भारत को यहां अनुच्छेद 370 को हटाने के अपने फैसले को वापस ले लेना चाहिए.

हालांकि भारत ने शरीफ़ के इस बयान को 'दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र पर हमले का दुस्साहस' करार दिया है.

शरीफ़ ने कहा कि भारत को जम्मू-कश्मीर मुद्दे के शांतिपूर्ण हल के लिए बातचीत का रास्ता अपनाना चाहिए.

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संयुक्त राष्ट्र महासभा के 79वें सत्र की आम बहस में हिस्सा लेते हुए शरीफ़ ने अपने भाषण में जम्मू-कश्मीर,अनुच्छेद 370 और हिज़बुल कमांडर बुरहान वानी का ज़िक्र किया था.

शरीफ़ ने कहा, ''फ़लस्तीन के लोगों की तरह ही जम्मू-कश्मीर के लोगों ने अपनी आज़ादी और आत्मनिर्णय के अधिकार के लिए सदियों से संघर्ष किया है.''

भारत का जवाब image ANI संयुक्त राष्ट्र में भारत की फ़र्स्ट सेक्रेटरी भाविका मंगलानंदन शहबाज़ शरीफ़ के भाषण का जवाब देते हुए

भारत ने 'राइट टू रिप्लाई' का इस्तेमाल करते हुए संयुक्त राष्ट्र मे शरीफ़ के इस भाषण का विरोध किया है.

भारत की फ़र्स्ट सेक्रेटरी भाविका मंगलानंदन ने कहा, ''दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र पर हमला करने का दुस्साहस किया गया है.''

भाविका ने कहा, ''इस सभा ने आज सुबह एक बेहद दुखद घटना देखी. सेना के ज़रिए चलाए जा रहे एक मुल्क ने जो आतंकवाद, नशीले पदार्थों के व्यापार और अंतरराष्ट्रीय अपराध के लिए वैश्विक रूप से बदनाम है उसने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र पर हमला करने का दुस्साहस किया है.''

उन्होंने कहा, ''मैं पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के भाषण में भारत के संदर्भ के बारे में बात कर रही हूं. जैसा कि दुनिया जानती है कि पाकिस्तान लंबे समय से अपने पड़ोसियों के ख़िलाफ़ हथियार के रूप में सीमा पार आतंकवाद का इस्तेमाल करता रहा है.''

उन्होंने कहा, ''इसने हमारी संसद, हमारी आर्थिक राजधानी मुंबई, बाज़ारों और तीर्थयात्राओं के रास्तों पर हमले किए हैं. ये एक लंबी सूची है. इस तरह के देश के लिए कहीं भी हिंसा के बारे में बात करना सबसे बड़ा पाखंड है.''

उ्न्होंंने आगे कहा, ''ये और भी अजीब उस देश के लिए है जहां चुनावों में धांधली का इतिहास है और वो राजनीतिक विकल्पों की बात कर रहे हैं. असली सच ये है कि पाकिस्तान हमारे क्षेत्र का लालच रखता है और वास्तव में जम्मू-कश्मीर में चुनावों को बाधित करने के लिए लगातार आतंकवाद का इस्तेमाल करता रहा है.''

शहबाज़ शरीफ़ ने और क्या कहा था image Getty Images शहबाज़ शरीफ़ यूएन में

शरीफ़ ने अनुच्छेद 370 को हटाकर जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म करने के भारत सरकार के फैसले का हवाला देते हुए कहा था कि अगर भारत को कश्मीर में स्थायी शांति चाहिए तो उसे अगस्त 2019 में उठाए गए 'एकतरफा और गैरक़ानूनी कदमों' को वापस ले लेना चाहिए.

शहबाज़ शरीफ़ ने कश्मीर के लोगों के आत्मनिर्णय का सवाल उठाया और भारत को संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों और कश्मीरी लोगों की इच्छा के मुताबिक़ इस मसले के शांतिपूर्ण हल के लिए बातचीत की सलाह दी.

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने कहा, ''संयुक्त राष्ट्र के इन प्रस्तावों में जनमत सर्वेक्षण का प्रावधान है ताकि जम्मू-कश्मीर के लोग आत्मनिर्णय के अपने मौलिक अधिकार का इस्तेमाल कर सकें.''

शरीफ़ ने कहा कि 'भारत के सुरक्षाबल कश्मीर में हत्याएं कर रहे हैं. वहां लंबे कर्फ़्यू लगाने के अलावा दूसरे दमनकारी कदम उठाए जाते हैं. भारत वहां किसी उपनिवेश की तरह अपने लोगों की बस्तियां बसा रहा है और कश्मीरी ज़मीन को हड़प रहा है. वो यहां बाहरी लोगों को बसा कर मुस्लिम बहुसंख्यकों को अल्पसंख्यक बनाने की कोशिश कर रहा है.'

बुरहान वानी, ग़ज़ा और इस्लामोफोबिया का ज़िक्र image TWITTER शहबाज़ शरीफ़ ने अपने भाषण के अंश एक्स पर भी शेयर किए

शरीफ़ ने कहा, "कश्मीर में भारत की ज़बरदस्ती, क्रूरता और उत्पीड़न ने ये सुनिश्चित कर दिया है कि बुरहान वानी की विरासत लाखों कश्मीरियों के संघर्ष और बलिदान को प्रेरित करती रहे."

"कश्मीरियों का ये विराट संघर्ष बिल्कुल जायज़ है और ये कश्मीरियों को सरकार का मुक़ाबला करने के प्रेरित करती रहेगी."

शहबाज़ शरीफ़ ने दुनिया भर में कथित तौर पर बढ़ते इस्लाफोबिया पर चिंता जताई.

उन्होंने कहा, ''इस्लामोफोबिया का सबसे चिंतित करने वाला नतीजा भारत में दिख रहा है, जहां हिंदू वर्चस्ववादी इसका नाम लेकर अपना एजेंडा चला रहे हैं. ये भारत के 20 करोड़ मुसलमानों को दबा कर रखने और भारत की इस्लामिक विरासत को मिटाने की कोशिश में लगे हैं.''

शहबाज़ शरीफ़ ने इसराइल और ग़ज़ा संघर्ष का ज़िक्र करते हुए कहा कि ग़ज़ा में जनसंहार को तुरंत रोका जाए.

उन्होंने कहा, ''ग़ज़ा के लोगों की मौजूदा स्थिति परेशान करने वाली है. ये त्रासदी अब रुक जानी चाहिए. आज दुनिया कठिन चुनौतियों से गुज़र रही है.''

कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र का प्रस्ताव image Getty Images संयुक्त राष्ट्र की ओर से कश्मीर मसले पर गठित आयोग की फ़ाइल फ़ोटो

2019 में जब भारत सरकार ने भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370 हटा कर जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म किया था तो पाकिस्तान ने इसकी कड़ी निंदा की थी.

उस वक़्त पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय की ओर से जारी किए गए बयान में कहा गया था कि भारत सरकार अपने एकतरफ़ा फ़ैसले से इस विवादित भूमि की स्थिति में बदलाव नहीं कर सकती और यह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों का उल्लंघन है.

लेकिन संयुक्त राष्ट्र के वे कौन से प्रस्ताव हैं जिनके उल्लंघन का आरोप पाकिस्तान ने लगाया है?

दरअसल भारत और पाकिस्तान के बीच इस विवादित भू-भाग को लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अब तक कई प्रस्ताव आ चुके हैं. लेकिन इसकी शुरुआत साल 1948 से हुई थी.

1947 में क़बाइली आक्रमण के बाद जम्मू कश्मीर के महाराज हरिसिंह ने भारत के साथ विलय की संधि पर हस्ताक्षर किए. भारतीय फौज मदद के लिए पहुंची और वहां उसका पख़्तून क़बाइली लोगों और पाकिस्तानी फौज से संघर्ष हुआ.

इस संघर्ष के बाद राज्य का दो तिहाई हिस्सा भारत के पास रहा. इसमें जम्मू, लद्दाख और कश्मीर घाटी शामिल थे. एक तिहाई हिस्सा पाकिस्तान के पास गया.

भारत इस मसले को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में लेकर गया जहां साल 1948 में इस पर पहला प्रस्ताव आया.

प्रस्ताव में क्या कहा गया है? image Getty Images शेख़ अब्दुल्ला, जिन्होंने कश्मीर में क़बाइली हमलों के ख़िलाफ़ लोगों को एकजुट किया

भारत इस मसले को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में लेकर गया जहां साल 1948 में इस पर पहला प्रस्ताव आया.

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सूची में यह था- प्रस्ताव नंबर 38. इसके बाद इसी साल प्रस्ताव 39, प्रस्ताव 47 और प्रस्ताव 51 के रूप में तीन प्रस्ताव और आए.

  • 17 जनवरी 1948 को प्रस्ताव 38 में दोनों पक्षों से अपील की गई कि वे हालात को और न बिगड़ने दें, इसके लिए दोनों पक्ष अपनी शक्तियों के अधीन हरसंभव कोशिश करें. साथ ही ये भी कहा गया कि सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष भारत और पाकिस्तान के प्रतिनिधियों को बुलाएं और अपने मार्गदर्शन में दोनों पक्षों में सीधी बातचीत कराएं.
  • 20 जनवरी 1948 को प्रस्ताव संख्या 39 में सुरक्षा परिषद ने एक तीन सदस्यीय आयोग बनाने का फ़ैसला किया, जिसमें भारत और पाकिस्तान की ओर से एक-एक सदस्य और एक सदस्य दोनों चुने हुए सदस्यों की ओर से नामित किया जाना तय किया गया. इस आयोग को तुरंत मौक़े पर पहुंचकर तथ्यों की जांच करने का आदेश दिया गया.
  • 21 अप्रैल 1948 को प्रस्ताव संख्या 47 में जनमत संग्रह पर सहमति बनी. प्रस्ताव में कहा गया कि भारत और पाकिस्तान दोनों जम्मू-कश्मीर पर नियंत्रण का मुद्दा जनमत संग्रह के स्वतंत्र और निष्पक्ष लोकतांत्रित तरीक़े से तय होना चाहिए. इसके लिए एक शर्त तय की गई थी कि कश्मीर में लड़ने के लिए जो पाकिस्तानी नागरिक या क़बाइली लोग आए थे, वे वापस चले जाएं.

लेकिन 1950 के दशक में भारत ने ये कहते हुए इससे दूरी बना ली कि पाकिस्तानी सेना पूरी तरह राज्य से नहीं हटी और साथ ही इस भू-भाग के भारतीय राज्य का दर्जा तो वहां हुए चुनाव के साथ ही तय हो गया.

यानी संयुक्त राष्ट्र के उन प्रस्तावों को दोनों पक्षों के बीच आरोप-प्रत्यारोप की वजह से तभी से अमल में नहीं लाया जा सका. सारी बात सेनाओं के वापस जाने और जनमत संग्रह की मांगों पर ही उलझकर रह गई.

तब से पाकिस्तान लगातार जनमत संग्रह की माँग करता रहा है और भारत पर वादे से पीछे हटने का आरोप लगाता है.

फिर 1971 में दोनों देशों की सेनाओं के बीच जंग के बाद साल 1972 में शिमला समझौता अस्तित्व में आया. इसमें सुनिश्चित कर दिया गया कि कश्मीर से जुड़े विवाद पर बातचीत में संयुक्त राष्ट्र सहित किसी तीसरे पक्ष का दख़ल मंज़ूर नहीं होगा और दोनों देश मिलकर ही इस मसले को सुलझाएंगे.

भारत सरकार ने कहा कि कश्मीर की स्थिति और विवाद के बारे में पहले हुए तमाम समझौते शिमला समझौता होने के बाद बेअसर हो गए हैं. ये भी कहा गया कि कश्मीर मुद्दा अब संयुक्त राष्ट्र के स्तर से हटकर द्विपक्षीय मुद्दे के स्तर पर आ गया है.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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