भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव के दौरान दोनों तरफ़ से एक दूसरे के ख़िलाफ़ हमले के लिए ड्रोन का इस्तेमाल देखने को मिला है.
दक्षिण एशिया के ये दोनों ही देश परमाणु ताक़त रखने वाले हैं.
भारतीय सेना ने शुक्रवार को एक बयान में बताया कि पाकिस्तान ने 8 और 9 मई की रात में भारत में कई जगहों पर ड्रोन से हमला किया है.
भारतीय सेना की प्रवक्ता कर्नल सोफ़िया क़ुरैशी ने कहा, ''पाकिस्तान ने तकरीबन 300-400 ड्रोन फ़ायर किए हैं."
इस तरह का दावा पाकिस्तान ने भी किया है. पाकिस्तान ने दावा किया कि उसने भारत के 25 ड्रोन गिरा दिए हैं, जिस पर भारत की तरफ़ से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी गई है.
इस नए तनाव में ड्रोन के इस्तेमाल पर रक्षा विशेषज्ञ ब्रिगेडियर शार्देन्दु कहते हैं, ''ये नई विधा और तकनीक से लैस है, जो मानव रहित है. इसमें आपके लड़ाकू विमान का इस्तेमाल नहीं होता है. हमला करने वाले की जान की हानि नहीं होती है क्योंकि ये मानवरहित है तो पायलट को भी भेजने का जोख़िम नहीं है.''
ड्रोन की भूमिका अहमभारत-पाकिस्तान के बीच तनाव 22 अप्रैल को पहलगाम में पर्यटकों पर हुए हमले के बाद से चरम पर है.
इस हमले में पर्यटकों समेत कुल 26 लोगों की मौत हो गई थी. भारत ने इस हमले के जवाब में 6-7 मई की रात को पाकिस्तान में 9 जगहों पर हमले किए.
इस तनाव में ड्रोन की एंट्री हो गई है. ड्रोन को औपचारिक रूप से मानव रहित हवाई वाहन (अनमैन्ड एरियल व्हिकल) के तौर पर जाना जाता है.
ड्रोन एक तरह से उड़ने वाला रोबोट है, जिसे सॉफ्टवेयर सिस्टम से नियंत्रित किया जा सकता है. ड्रोन के सॉफ्टवेयर में उड़ान योजना, उड़ान के रास्ते आदि को पहले से प्रोग्राम करके दूर से नियंत्रित किया जा सकता है.
ये स्वायत्त रूप से उड़ाए जा सकते हैं. ड्रोन ऑनबोर्ड सेंसर और ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम (जीपीएस) के साथ मिलकर काम करते हैं.
इंपीरियल वॉर म्यूज़ियम की वेबसाइट के मुताबिक़, पहले ये रिमोटली पाइलेटेड व्हिकल (आरपीवी ) कहलाता था. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका और इंग्लैंड ने बनाया था. जिसका 1917-1918 में परीक्षण किया गया था. ये पहले रेडियो से कंट्रोल किए जाते थे.
रक्षा विशेषज्ञ ब्रिगेडियर शार्देन्दु कहते हैं, ''आज कल बन रहे ड्रोन काफी एडवांस हैं. दूर से ही टारगेट का पता कर सकते हैं और निशाना भी बना सकते हैं. अगर गिर जाए तो लड़ाकू विमान के बरअक्स इसमें आर्थिक नुक़सान कम है.''
हालांकि अमेरिका ने 9/11 के हमले के बाद अफ़ग़ानिस्तान में इसका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया है. हाल में ही रूस-यूक्रेन की लड़ाई में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है.
रॉयटर्स की 9 मई 2025 की रिपोर्ट के मुताबिक़, जेरान-2, कामिकेज़ यानि आत्मघाती ड्रोन है. इसका इस्तेमाल रूस ने यूक्रेन के ऊर्जा संबंधित ढांचे को ध्वस्त करने में किया है.
रूस ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और दो दर्जन विदेशी नेताओं के सामने रूस निर्मित ड्रोन का मॉस्को के रेड स्क्वॉयर पर प्रदर्शन किया है.
भारत और पाकिस्तान के हालिया तनाव के बीच देखें तो यह साफ़ होता है कि आधुनिक युद्ध में ड्रोन की भूमिका अहम होती जा रही है.
गुरुवार को पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शरीफ़ चौधरी ने कहा था कि उनका देश "ड्र्रोन के हमलों की ज़द में था, कराची-लाहौर जैसे बड़े आबादी वाले शहरों को ड्रोन के ज़रिए निशाना बनाया गया है.''
हालांकि भारत ने पहले दिन कहा था कि उसके हमले में किसी सैन्य स्थल को निशाना नहीं बनाया गया है. लेकिन बदलते हालात के बीच गुरुवार को भारतीय सेना की कर्नल सोफ़िया क़ुरैशी ने कहा, ''भारत ने लाहौर में सफलतापूर्वक एयर डिफेंस सिस्टम को तबाह कर दिया है.''
क़ुरैशी ने ये साफ़ नहीं किया था कि इस हमले में ड्रोन का इस्तेमाल किया गया था या मिसाइल का इस्तेमाल हुआ था.
भारत के पास कई प्रकार के ड्रोन हैं. बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक के बाद इसराइल से कई ड्रोन के सौदे हुए हैं.
हालांकि रक्षा विशेषज्ञ ब्रिगेडियर शार्देंदु का कहना है, ''पाकिस्तान के एक के मुकाबले में भारत के पास तीन ड्रोन हैं, जिससे भारत की फायर पावर ज़्यादा है. इस तरह की लड़ाई में भारत के पास पाकिस्तान से ज़्यादा क्षमता है. इनमें हैरोप, हिरोन मार्क-2 और स्काई-स्ट्राइकर जैसे ड्रोन शामिल हैं.''
भारत के पास स्काई-स्ट्राइकर ड्रोन है. इन्हें भारत और इसराइल के साझा उपक्रम के तहत बेंगलुरू में निर्मित किया गया है.
नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर एयर पॉवर स्टडीज़ के सीनियर फेलो, रिटायर्ड ग्रुप कैप्टन डॉक्टर दिनेश कुमार पांडेय का कहना है, ''भारत के पास कई प्रकार के ड्रोन हैं. ये फौज पर निर्भर है कि वो मौके की नज़ाकत के हिसाब से कौन सा ड्रोन इस्तेमाल करती है.''
उनका कहना है, ''इस वक्त भारत कई देशों को ड्रोन एक्सपोर्ट कर रहा है. अमेरिका, इसराइल और कई अन्य देश भारत से ड्रोन ले रहे हैं.''
भारत ने तकरीबन 100 स्काई-स्ट्राइकर ड्रोन 2021 में लिया था, जिनकी रेंज तकरीबन 100 किलोमीटर की है. ये ड्रोन 10 किलो तक वॉरहेड ले जा सकते हैं.
इनमें आवाज़ कम होती है. लिहाज़ा ये कम ऊंचाई पर भी कारगर माने जाते हैं.
इसको बनाने वाली कंपनी का दावा है, ''ये शांत, ना दिखाई देने वाले और अचानक हमला करने वाले हैं.''
वहीं हैरोप ड्रोन का रेंज बहुत ज़्यादा है. इसराइल निर्मित इस ड्रोन की ख़ासियत है कि ये 1000 किलोमीटर तक जा सकता है और हवा में तकरीबन 9 घंटे तक उड़ान भर सकता है.
पाकिस्तान की तरफ से दावा किया गया है कि भारत ने उसके ख़िलाफ़ हैरोप का इस्तेमाल किया है.
आधिकारिक जानकारी के मुताबिक हैरोप एंटी रडार टेक्नोलॉजी है. इसके कैमरे बड़े सैनिक मशीनरी की पहचान कर सकते हैं. इसकी क्षमता सटीक सर्जिकल स्ट्राइक की भी है.
ये 23 किलो तक के वॉरहेड या बम ले जा सकता है. इसका इस्तेमाल समुद्र से वॉरशिप से भी किया जा सकता है.
हालांकि इसके अलावा भारत के पास 3000 किलोमीटर तक की रेंज का हैरोन मार्क-2 भी है. ये 2023 में खरीदा गया था, जो 24 घंटे तक हवा में रहने की क्षमता रखता है.
इनके भीतर रडार आईआर कैमरा फिट है. ये ड्रोन लेज़र मार्किंग के ज़रिए निशाने का सटीक पता भी देते हैं. ये ज़मीन से डेटालिंक के ज़रिए कंट्रोल किए जा सकते हैं.
रिटायर्ड ग्रुप कैप्टन दिनेश कुमार पांडेय कहते हैं, ''कौन सा ड्रोन कितना पे-लोड ले जा सकता है, यह उसकी इंजन की क्षमता पर निर्भर करता है. ड्रोन पर पे-लोड जितना ज़्यादा बढ़ाएगें, उसकी ज़्यादा दूर जाने की क्षमता उतनी ही कम होती जाएगी.''
पाकिस्तान के पास भी ड्रोन
भारत की तरफ़ से शुक्रवार को सेना ने कहा कि जम्मू, पठानकोट और उधमपुर के सैन्य अड्डों पर पाकिस्तान ने गुरुवार रात हमला किया है, जिसे बेअसर कर दिया गया. उधर पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ने हमले की बात से इनकार किया है.
भारत ने गुरुवार को कहा कि पाकिस्तान ने तुर्की निर्मित ड्रोन का इस्तेमाल किया है. पाकिस्तान के पास स्वार्म ड्रोन है
स्वार्म ड्रोन के बारे में रिटायर्ड ग्रुप कैप्टन दिनेश कुमार पांडेय बताते हैं, ''ये ग्रुप में चलते हैं, इनको मारना आसान नहीं है, इनमें से कई बच भी जाते हैं.''
उन्होंने बताया, ''ये छोटे-छोटे बैच में छोड़े जाते हैं लेकिन हवा में आने के बाद एक साथ हो जाते हैं. ये किसी टारगेट को निशाना भी बना सकते हैं और बचाव भी कर सकते हैं.''
हालांकि पाकिस्तान के पास शाहपार-2 ड्रोन भी हैं, जिनकी क्षमता 23000 फ़ीट तक उड़ान भरने की है.
वहीं नवंबर 2024 में शाहपार-3 का परीक्षण पाकिस्तान ने किया था. ये ड्रोन तकरीबन 35000 फिट की उंचाई तक जा सकता है.
पाकिस्तान में दावा किया जा रहा है कि ये तकरबीन 500 किलो तक का पे लोड ले जा सकता है.
रिटायर्ड ग्रुप कैप्टन दिनेश कुमार पांडेय बताते हैं, ''पाकिस्तान के पास अपना सिर्फ बुर्राख़ ड्रोन है, बाकी बाहर से लिया गया है.''
इसके अलावा पाकिस्तान के पास तुर्की का बना अकिन्सी ड्रोन भी है. ये हवा से हवा और हवा से ज़मीन पर वार कर सकता है. यह आधुनिक तकनीक और रडार से लैस है.
जहां तक अकिन्सी का सवाल है तो उसके बारे में रिटायर्ड ग्रुप कैप्टन दिनेश कुमार पांडेय कहते हैं, ''ये बहुत ही एडवांस किस्म का ड्रोन है लेकिन इसकी तादाद कितनी है ये नहीं मालूम है, क्योंकि ये अभी ज़्यादा बने नहीं हैं तो ये एक है या दो-तीन, ये कहा नहीं जा सकता है.''
हालांकि, भारत के ख़िलाफ पाकिस्तान किस ड्रोन का इस्तेमाल कर रहा है. इसकी पुष्टि नहीं हो पाई है.
भारत के पास 200 मध्यम उंचाई के (एमएएलई) और 980 मिनी यूएवी हैं. पाकिस्तान के पास 60 एमएएलई, 60 नेवी, 70 एयर फोर्स और 100 आर्मी के यूएवी हैं. हालांकि आधिकारिक तौर पर कोई पुष्टि नहीं है.
भारत के पास हार्पी, हैरोप, एमक्यू 9 रीपर और रुस्तम-2 हैं.
हार्पी इसराइल का बना ड्रोन है. ये 9 घंटे तक उड़ सकता है. इसकी रेंज 500 किलोमीटर तक की है. हार्पी 32 किलो तक का पे लोड ले जा सकता है. इसकी कीमत लगभग 40 लाख डॉलर है.
हैरोप भी इसराइल का बना हुआ है. ये भी 9 घंटे तक उड़ सकता है लेकिन इसकी रेंज लगभग 1000 किलोमीटर की है. ये 23 किलो तक का पे लोड ले जा सकता है.
वहीं एमक्यू रीपर यूएस का बना है ये 1700 किलो तक का पे लोड ले जा सकता है. इसका इस्तेमाल अमेरिका ने इराक़, सीरिया और अफगानिस्तान में किया है.
ये हवा में 27 घंटे रह सकता है. इसकी रेंज 1850 किलोमीटर तक है. ये 3 करोड़ 20 लाख डॉलर प्रति यूनिट है.
रुस्तम-2 ये भारत के डीआरडीओ ने बनाया है. इसकी रेंज 200 किलोमीटर तक है. ये 350 किलो का पे लोड ले जा सकता है. इसकी क़ीमत तक 50 से 60 लाख डॉलर प्रति यूनिट है. हालांकि अभी ये टेस्टिंग फ़ेज़ में है.
टेकी डॉट कॉम के मुताबिक पाकिस्तान के पास बैराकतार अकिन्सी है, जो तुर्की का बना हुआ है. इसकी लंबाई 12.2 मीटर है. ये 1500 किलो तक का पे लोड ले जा सकता है और 40000 फीट की ऊंचाई तक जा सकता है.
बैराकतार टीबी-2, ये भी तुर्की का बना हुआ है. ये 18000 फीट पर 27 घंटे रह सकता है. ये 150 किलो तक का पे लोड ले जा सकता है.
इसके अलावा चीन निर्मित सीएच-4 हैं. ये 3000-5000 किलोमीटर तक जा सकता है. ये 345 किलो तक पे लोड ले जा सकता है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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