अमेरिका ने कहा है कि ईरान के चाबहार बंदरगाह का संचालन करने वाले लोगों पर सितंबर महीने के अंत से प्रतिबंध लागू हो जाएंगे. इस फ़ैसले का असर भारत पर भी पड़ेगा, क्योंकि भारत इस रणनीतिक बंदरगाह पर एक टर्मिनल बना रहा है.
ईरान के दक्षिणी तट पर सिस्तान-बालूचिस्तान प्रांत में स्थित चाबहार बंदरगाह को भारत और ईरान मिलकर विकसित कर रहे हैं ताकि संपर्क और व्यापारिक रिश्तों को मज़बूत किया जा सके.
रणनीतिक मामलों के एक्सपर्ट ब्रह्मा चेलानी अमेरिका के फ़ैसले पर चिंता जताते हुए कहते हैं कि ये भारत के ख़िलाफ़ एक 'दंडात्मक क़दम' है.
चेलानी ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा कि अमेरिका की ऐसी नीतियों का फ़ायदा चीन को मिलता है और इसकी क़ीमत भारत को चुकानी पड़ती है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक अमेरिकी विदेश मंत्रालय के उप प्रवक्ता थॉमस पिगॉट ने इस हफ़्ते की शुरुआत में इसकी जानकारी दी थी.
उन्होंने कहा कि चाबहार में कामकाज के लिए 2018 में दी गई छूट को वापस लेना, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ईरान को अलग-थलग करने की की रणनीति का हिस्सा है.
थॉमस पिगॉट ने इस फ़ैसले की जानकारी देते हुए कहा, ''विदेश मंत्री ने 2018 में ईरान फ़्रीडम एंड काउंटर-प्रॉलिफ़रेशन एक्ट (आईएफसीए) के तहत अफ़ग़ानिस्तान पुनर्निर्माण और आर्थिक विकास के लिए जारी की गई छूट को रद्द कर दिया है.''
''यह फ़ैसला 29 सितंबर 2025 से लागू होगा. इसके लागू होने के बाद जो लोग चाबहार बंदरगाह का संचालन करेंगे या आईएफसीए में ज़िक्र की गई अन्य गतिविधियों में शामिल होंगे, वो अमेरिकी प्रतिबंधों के दायरे में होंगे.''
भारत के लिए झटका?
भारत के लिए ये फ़ैसला एक बड़ा झटका हो सकता है. क्योंकि उसने इस परियोजना में अरबों रुपयों का निवेश किया है और इसे अपनी 'कनेक्टिविटी डिप्लोमेसी' का अहम हिस्सा मानता है.
भारत ईरान के साथ मिलकर ओमान की खाड़ी पर स्थित इस बंदरगाह में टर्मिनल का विकास कर रहा है.
13 मई 2024 को भारत ने इस बंदरगाह के संचालन के लिए 10 साल का कॉन्ट्रैक्ट किया था, जिससे उसे मध्य एशिया के देशों के साथ व्यापार बढ़ाने में मदद मिलेगी.
यह पहला मौका था जब भारत ने विदेश में किसी बंदरगाह के प्रबंधन की ज़िम्मेदारी ली थी.

भारत ने 2003 में ही चाबहार बंदरगाह विकसित करने का प्रस्ताव रखा था ताकि भारतीय सामान पाकिस्तान को बायपास करते हुए सड़क और रेल परियोजना इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर यानी आईएनसीटीसी के ज़रिये अफ़ग़ानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच सके.
आईएनसीटीसी 7,200 किलोमीटर लंबी मल्टी-मोड ट्रांसपोर्ट परियोजना है, जिसका मक़सद भारत, ईरान, अफ़ग़ानिस्तान, आर्मेनिया, अज़रबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के बीच माल ढुलाई को आसान बनाना है.
लेकिन ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से बंदरगाह का विकास धीमा हो गया था.
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भारत और ईरान के बीच लंबी अवधि का यह समझौता इंडियन पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड और ईरान की पोर्ट ऐंड मैरीटाइम ऑर्गनाइजेशन के बीच हुआ था.
यह समझौता 2016 के शुरुआती समझौते की जगह पर किया गया था, जिसके तहत भारत शाहिद बेहेश्ती टर्मिनल पर हर साल रिन्यु कॉन्ट्रेक्ट के आधार पर संचालन करता रहा है.
2018 में अमेरिका ने चाबहार बंदरगाह परियोजना को प्रतिबंधों से छूट दी थी. इसकी मुख्य वजह अफ़ग़ानिस्तान को ईरानी पेट्रोलियम उत्पादों का आयात जारी रखने की सुविधा देना थी. उस समय अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी सेना मौजूद थी.
2023 में भारत ने चाबहार बंदरगाह के ज़रिये अफ़ग़ानिस्तान को 20,000 टन गेहूं भेजा था. 2021 में इसी बंदरगाह से ईरान को इको-फ्रेंडली कीटनाशक की सप्लाई की गयी थी.
लेकिन नई नीति के तहत अब ये छूट ख़त्म कर दी जाएगी.
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चाबहार पोर्ट इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर यानी आईएनएसटीसी के लिए काफ़ी अहमियत रखता है. इस रूट से भारत की यूरोप तक पहुंच आसान हो जाती, साथ ही ईरान और रूस को भी फ़ायदा होता. इस परियोजना के लिए ईरान का चाबहार बंदरगाह बहुत अहम है.
बंदरगाह के विकास के लिए भारत और ईरान के बीच साल 2003 में सहमति बनी थी. साल 2016 में भारत के पीएम नरेंद्र मोदी ने ईरान का दौरा किया था. उसी साल इस समझौते को मंज़ूरी मिली.
साल 2019 में पहली बार इस पोर्ट का इस्तेमाल करते हुए अफ़ग़ानिस्तान से माल पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए भारत आया था.
दिल्ली में हुए जी-20 सम्मेलन के दौरान जब एक नए ट्रेड रूट को बनाने पर सहमति बनी थी, तब इस परियोजना के भविष्य पर सवाल उठने लगे थे.
कहा गया कि अगर ये इंडिया-यूरोप-मिडिल ईस्ट कॉरिडोर बन गया तो चाबहार पोर्ट की बहुत अहमियत नहीं रह जाएगी. इसे ईरान की उपेक्षा के तौर पर भी देखा गया था.
मगर जब भारत और ईरान के बीच चाबहार पर अहम समझौता हो गया तो माना गया कि इसकी अहमियत कम नहीं हुई है.
ग्वादर का जवाब है चाबहार?
पाकिस्तान और चीन ईरानी सरहद के क़रीब ग्वादर पोर्ट को विकसित कर रहे हैं. भारत, ईरान और अफ़ग़ानिस्तान को जोड़ने वाले चाबहार पोर्ट को ग्वादर पोर्ट के लिए चुनौती के तौर पर देखा जाता है.
चाबहार पोर्ट चीन की अरब सागर में मौजूदगी को चुनौती देने के लिहाज से भी भारत के लिए मददगार साबित हो सकता है.
यह पोर्ट चाबहार पोर्ट से सड़क के रास्ते केवल 400 किलोमीटर दूर है जबकि समुद्र के जरिए यह दूरी महज 100 किलोमीटर ही बैठती है.
यह बंदरगाह भारत के रणनीतिक और कूटनीतिक हितों के लिए भी बेहद अहम है.
जानकारों का मानना है कि अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद भारत का मध्य एशिया से सीधा संपर्क घट गया था.
चाबहार के रास्ते भारत अब ज़रूरत पड़ने पर काबुल तक भी अपनी पहुँच बना पाएगा और साथ ही मध्य यशियाई देशों से व्यापार में भी बढ़ोतरी हो सकती है.
क्या कह रहे हैं विशेषज्ञरणनीतिक मामलों के जानकार ब्रह्मा चेलानी ने अमेरिका के फ़ैसले पर चिंता जताई है.
उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, '' ट्रंप प्रशासन ने भारत पर दबाव और बढ़ा दिया है. भारतीय सामानों पर 50 फ़ीसदी तक टैरिफ़ लगाने के बाद अब उसने भारत के ख़िलाफ़ खास तौर पर दंडात्मक कदम उठाते हुए ईरान के चाबहार बंदरगाह के लिए 2018 में दी गई प्रतिबंध-छूट वापस ले ली है. यह बंदरगाह भारत के संचालन में है.''
उन्होंने लिखा, ''यह बंदरगाह अफ़ग़ानिस्तान और मध्य एशिया के लिए भारत का व्यापारिक प्रवेश-द्वार है और पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह (जो चीन की बेल्ट ऐंड रोड परियोजना का हिस्सा है) का रणनीतिक जवाब भी.''
''भारत को उस समय दंडित किया जा रहा है जब वह चीन के प्रभाव को संतुलित करने की कोशिश कर रहा है.''

ब्रह्मा चेलानी लिखते हैं, ''विडंबना यह है कि भारत ने ट्रंप के पहले कार्यकाल में लगाए गए प्रतिबंधों का पालन करते हुए अपने हितों को किनारे रखकर ईरान से तेल आयात पूरी तरह बंद कर दिया था. उससे चीन बड़ा फ़ायदा हुआ और वह ईरान के बेहद सस्ते कच्चे तेल का लगभग एकमात्र ख़रीदार बन गया. यह दुनिया का सबसे सस्ता तेल था. जिससे चीन की ऊर्जा सुरक्षा और मजबूत हुई, जबकि भारत नुकसान उठाता रहा.
''दरअसल, ट्रंप की "अधिकतम दबाव" नीति का नतीजा लगातार यही रहा है कि अधिकतम फ़ायदा चीन को मिलता है और इसकी क़ीमत भारत को चुकानी पड़ती है.''
दक्षिण एशियाई मामलों के विशेषज्ञ माइकल कुगलमैन ने चाबहार में दी गई छूट को ख़त्म करने के एलान को लेकर एक्स पर लिखा, '' ट्रंप प्रशासन ईरान से जुड़ी छूटें वापस लेने की योजना बना रहा है. इसका सीधा असर भारत की चाबहार बंदरगाह परियोजना पर पड़ेगा. ''
उन्होंने लिखा, '' यह भारत के लिए एक रणनीतिक झटका होगा. चाबहार भारत की कनेक्टिविटी योजनाओं का अहम हिस्सा है, जिसके ज़रिये वह अफ़ग़ानिस्तान और मध्य एशिया तक बिना पाकिस्तान से गुज़रे पहुंच बना रहा है.''

जियो पॉलिटिक्स और अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकर ज़ोरावर दौलत सिंह ने भारत के हितों के ख़िलाफ़ माने जाने वाले इस अमेरिकी कदम के बारे में एक्स पर लिखा, '' यह सचमुच असाधारण स्थिति है. शायद ही कोई और ऐतिहासिक उदाहरण मिले, जहाँ एक उभरती हुई महत्वाकांक्षी ताकत को उसके ही "रणनीतिक साझेदार" ने, चीन को रोकने के नाम पर, इस तरह कमजोर कर दिया हो.''
उन्होंंने लिखा, '' विडंबना यह है कि भारत इस पूरी प्रक्रिया में ख़ुद अपनी घेराबंदी का साझेदार बन गया है. यानी जो कदम भारत ने अमेरिका को खुश करने और चीन का संतुलन साधने के लिए उठाए, वही अब भारत की रणनीतिक स्वतंत्रता को सीमित कर रहे हैं.''
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