पढ़ने में होशियार, अंग्रेज़ी में फ़र्राटेदार कविता सुनाने वाली आठ साल की अनन्या पढ़-लिखकर आईएएस अफ़सर बनना चाहती हैं ताकि वह ग़रीबों की मदद कर सकें और खुद की स्थिति सुधार सकें.
क़रीब 15 दिन पहले सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें बुलडोज़र से गिराए जाते घर से किताबें लेने के लिए वह दौड़ती दिखाई देती हैं. घास फूस, मिट्टी से बने घर को प्रशासन ने अवैध बताकर ढहाने का आदेश दिया था. प्रशासन ने अपने इस एक्शन को पूरी तरह से वैध और क़ानूनी बताया था.
अनन्या की माँ 28 साल की नीतू यादव उस दिन के बारे में बताती हैं, "मैंने इसे बहुत रोकने की कोशिश की, लेकिन ये नहीं मानी. ये मुझसे कहने लगी मम्मी अगर मेरी किताबें जल जाएंगी तो हम पढ़ेंगे-लिखेंगे कैसे? ये रोते हुए दौड़कर अपनी किताबें और बैग उठा लाई."
वो कहती हैं, "मुझे डर लग रहा था कि अगर ये जाएगी तो भीड़ में इसे चोट लग सकती है. ये गिर सकती है. पर ये नहीं मानी. इसने मुझे रोकने का मौका ही नहीं दिया. किताबें लेने की बात कहकर रोते हुए भाग गई."
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21 मार्च की यह घटना यूपी के अंबेडकरनगर ज़िला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर जलालपुर ब्लॉक के अजईपुर गाँव की है.
अपनी किताबें और स्कूल बैग बचाने की कोशिश कर रही इस बच्ची को अंदाज़ा भी नहीं रहा होगा कि उसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो जाएगा और सुप्रीम कोर्ट को भी अपनी ओर ध्यान खींचने के लिए विवश कर देगा.
प्रशासन की भीड़, चलते बुलडोज़र और आग की उठती लपटों से कुछ क़दम की दूरी पर दूसरे कमरे में रखी किताबों को बचाने के लिए अनन्या ने अपनी जान जोख़िम में डाल दी.
स्कूल ड्रेस में सीने से लगाए अपनी किताबें और बैग लेकर भागते हुए अनन्या, एक वीडियो में दिखाई दे रही थीं.
वायरल हुए इस वीडियो पर सोशल मीडिया में हर किसी ने बच्ची के जज़्बे की सराहना की और मकान गिराए जाने की प्रक्रिया पर सवाल उठाए.
घर गिराए जाने की घटना के एक पखवाड़ा बीत जाने के बाद भी इस परिवार के ज़ख़्म अभी हरे हैं.
जब हम अनन्या से मिलने उनके घर पहुंचे उस वक़्त वो अपने जले पड़े घर के पास ही चारपाई पर अपने परिजनों के साथ बैठी थीं.
अनन्या ने उस दिन की घटना के बारे में बीबीसी हिंदी को , "जब मैंने गाय वाले घर पर बुलडोज़र चलते और आग जलते हुए देखा तो मैं डर गई. मैंने सोचा अगर मेरी किताबें इस आग में जल गईं तो मैं पढ़ाई कैसे करूंगी? ये सोचकर मैं दौड़कर भागी और अपनी किताबें और झोला उठा लाई. मुझे डर नहीं लगा."
ये बताते हुए अनन्या के चेहरे पर आग की लपटों के बीच से अपनी किताबें और बैग बचाने का सुकून साफ़ दिख रहा था.
अनन्या शायद अपने परिवार की गरीबी को समझती हैं.
वह कहती हैं, "मैं चाहती हूँ कि मेरे पापा मज़दूरी करना छोड़ दें. वो कहीं बाहर दिल्ली कमाने जाएं. हम लोगों का अच्छा घर बन जाए. मैं अच्छे इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ना चाहती हूँ, जहाँ खूब अच्छी पढ़ाई होती हो."
अनन्या के पिता अभिषेक यादव दिहाड़ी मजदूरी करते हैं. ये चार भाई हैं. इनकी कुल ज़मीन सात बिस्वा (क़रीब 0.2 एकड़) है.
सभी भाई दिहाड़ी मेहनत-मज़दूरी करके परिवार का भरण-पोषण करते हैं. चारों भाइयों ने मिलकर गाँव में तीन-चार कमरे का एक पक्का घर बनवा लिया है.
लेकिन इनके घर का खाना गाँव के बाहर बने झोपड़ीनुमा कमरे में चूल्हे पर बनता है.
यहाँ इनके जानवर बांधे जाते हैं और परिवार के कुछ लोग रहते भी हैं. यहाँ अभी मिट्टी के बने और छप्पर रखे दो कमरे मौजूद हैं. प्रशासन ने इसे अवैध बताया और ढहा दिया. नल को भी उखाड़ दिया.

जिस समय अनन्या के घर पर बुलडोज़र चलाया गया था उस वक़्त वो पहली कक्षा में थीं.
एक अप्रैल से नया सत्र शुरू हुआ है और अब वो गाँव के प्राथमिक विद्यालय में दूसरी कक्षा में पहुंच गई हैं.
वो पढ़ने में होशियार हैं, चंचल हैं, समझदार हैं. वह अंग्रेज़ी को अपना पसंदीदा विषय बताती हैं.
अपनी इंग्लिश टीचर तहज़ीब फ़ातिमा की ख़ूब तारीफ़ करती हैं. अनन्या ने इंग्लिश और हिंदी की कुछ कविताएं भी हमें सुनाईं.
जबसे अनन्या का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है तब से बहुत सारे लोग मिलने उनके घर आ चुके हैं.
कुछ लोगों ने उसे स्कूल बैग दिए तो कुछ ने थोड़ी बहुत आर्थिक मदद भी की है.
अनन्या का एक छोटा भाई भी है.
अनन्या नीले रंग के नए बैग की तरफ इशारा करते हुए कहती हैं, "ये बैग अभी नया मिला है. एक अंकल दे गए हैं. हमको अब तक चार नए बैग मिल गए हैं. एक गुलाबी रंग का बैग मैंने भाई को दे दिया."
अनन्या के पिता अभिषेक यादव (उम्र 32 साल) अपनी बेटी को पढ़ाना चाहते हैं ताकि उनकी बेटी का भविष्य बेहतर हो सके.
अभिषेक बताते हैं, "मज़दूर आदमी हूँ. 12 साल की उम्र से मज़दूरी कर रहा हूँ. मेहनत मज़दूरी करके हमने स्नातक तक की पढ़ाई की. पैसे के अभाव में आगे नहीं पढ़ सके. लेकिन बेटी को खूब पढ़ाना चाहते हैं."
अभिषेक खुश होकर बताते हैं, "ये तो सोशल मीडिया पर खूब छा गई है. इसकी पढ़ने में बहुत लगन है. अगर सरकार मदद करेगी तो ये जितना चाहेगी हम इसको उतना पढ़ाएंगे."
आपकी बेटी का क्या सपना है? इस सवाल पर अभिषेक कहते हैं, "वो आईएएस बनना चाहती है. हम भगवान से यही दुआ करेंगे कि वो ग़रीबों की मदद करे और किसी पीड़ित को कभी न सताए."
एक अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में एक मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति एएस ओका और उज्जवल भुइयां की पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार और प्रयागराज विकास प्राधिकरण को 2021 के बुलडोज़र अभियान के लिए फटकार लगाई.
उन्होंने अपनी सुनवाई में इस 8 साल की बच्ची अनन्या के वीडियो का भी ज़िक्र किया और कहा कि इस तरह के दृश्यों से हर कोई परेशान है.
उन्होंने बुलडोज़र की कार्रवाई को 'अमानवीय' बताया और इस याचिका के ज़रिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाने वाले प्रत्येक व्यक्ति को 10 लाख रुपये का मुआवज़ा देने का आदेश दिया.
समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट को शेयर करते हुए इस बच्ची की मदद करने की बात कही.
उन्होंने लिखा, "जो बच्चों का भविष्य उजाड़ते हैं, दरअसल वो बेघर होते हैं. हम इस बच्ची की पढ़ाई का संकल्प उठाते हैं. पढ़ाई का मोल पढ़नेवाले ही जानते हैं. बुलडोज़र विध्वंसक शक्ति का प्रतीक है, ज्ञान, बोध या विवेक का नहीं. बुलडोज़र अहंकार के ईंधन से, दंभ के पहियों पर सवार होकर चलता है, इसमें इंसाफ़ की लगाम नहीं होती है."

अनन्या के 73 साल के बाबा राम मिलन बताते हैं, "हम इस जगह पर 50 साल से रह रहे हैं. कभी किसी ने कुछ नहीं कहा. आठ महीने पहले गांव के एक व्यक्ति ने खाली करने की धमकी दी थी. तबसे केस चल रहा है. महीने में 3, 4 तारीखें पड़ जाती हैं लेकिन सुनवाई कुछ नहीं होती."
दो अप्रैल को राममिलन इस मामले की तारीख़ से ही लौटे थे. उन्होंने एक पर्ची दिखाई जिसपर अगली तारीख़ 7 अप्रैल लिखी थी.
उन्होंने कहा, "तारीख़ पर कोई कार्रवाई नहीं होती. हर बार पर्ची में लिखकर अगली तारीख़ दे देते हैं."
वहीं जलालपुर तहसीलदार पद्मेश श्रीवास्तव ने बीबीसी से कहा, "न्यायालय तहसीलदार द्वारा इन्हें प्रॉपर नोटिस दिया गया था. नोटिस देने के एक महीने बाद 21 मार्च को अतिक्रमण हटाया गया. उस दिन भी केवल पशुशाला हटाई गई."
"एक कमरे में चारपाई और कुछ बर्तन रखे थे वो नहीं हटाए गए. उस दिन इन्हें फिर 15 दिन का नोटिस दिया गया कि ये स्वतः खाली कर लें. इस पूरे अभियान में विधिक प्रक्रिया का विधिवत पालन किया गया है."
अनन्या के पिता अभिषेक ने सरकार से गुज़ारिश की है, "हम ग़रीब आदमी हैं. हमारी मदद की जाए. हम कहाँ जाएंगे. गाँव में बहुत सारे लोग जिनके पास घर बनाने की ज़मीन नहीं है वो सालों से ऐसे ही रहते आए हैं. किसी के पास भी काग़ज नहीं है. कभी नहीं उजाड़ा गया. हम लोग ग़रीब आदमी हैं सरकार की ज़मीन पर ही रह रहे हैं."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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