पटना यूनिवर्सिटी के कई कॉलेजों में पहली बार लॉटरी सिस्टम से प्रिंसिपल की नियुक्ति हुई है. यूनिवर्सिटी से संबद्ध पटना साइंस कॉलेज, वाणिज्य महाविद्यालय, मगध महिला कॉलेज और पटना कॉलेज में ये नियुक्तियां हुई हैं.
बीते बुधवार को राजभवन के आदेश के मुताबिक़, पटना यूनिवर्सिटी में इसके लिए बाक़ायदा लॉटरी निकाली गई. इस लॉटरी के आधार पर पटना साइंस कॉलेज की प्रिंसिपल अलका, वाणिज्य महाविद्यालय की सुहेली मेहता, पटना कॉलेज के अनिल कुमार और मगध महिला कॉलेज के नागेंद्र प्रसाद वर्मा को बनाया गया है.
लॉटरी सिस्टम से प्रिंसिपल बनाए जाने के इस क़दम की आलोचना राज्य के शिक्षाविद कर रहे हैं.
पटना यूनिवर्सिटी की डीन ऑफ़ सोशल साइंसेज़ रही भारती एस कुमार कहती हैं, "ये कोई वैज्ञानिक तरीका नहीं है. प्रिंसिपल के पद पर सेलेक्शन का आधार मेरिट होना चाहिए. साइंस कॉलेज, आर्ट्स कॉलेज के प्रिंसिपल अगर अपने छात्रों की ज़रूरतों को नहीं समझेंगे तो ऐसी नियुक्तियों का कोई मतलब नहीं है."
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बिहार में कुल 17 स्टेट यूनिवर्सिटी हैं और राज्यपाल इन सभी के कुलाधिपति होते हैं. पटना यूनिवर्सिटी के बाद लॉटरी सिस्टम की ये प्रक्रिया बाकी सभी यूनिवर्सिटी में भी होगी.
पटना यूनिवर्सिटी के एक प्रोफे़सर नाम नहीं छापने की शर्त पर बताते हैं, "राज्यपाल को ये शिकायत मिली थी कि प्रिंसिपल की पोस्टिंग में रुपयों का लेन-देन बड़े पैमाने पर होता है जिसके बाद ये लॉटरी सिस्टम ला दिया गया. दरअसल इसे मेरिट आधारित बनाना चाहिए था. इस क़दम ने पटना यूनिवर्सिटी को और ज़्यादा बर्बाद कर दिया है."
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बिहार स्टेट यूनिवर्सिटी कमीशन ने साल 2023 में बिहार के अलग-अलग कॉलेजों के लिए 173 प्रिंसिपल के पद पर नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकाला था.
प्रिंसिपल के पद के लिए अभ्यर्थियों से 15 साल का अकादमिक अनुभव, उनके रिसर्च पेपर, किताबें आदि की सूची मांगी गई थी. जिसके बाद साल 2025 में अभ्यर्थियों का इंटरव्यू हुआ. ये इंटरव्यू बिहार स्टेट यूनिवर्सिटी कमीशन द्वारा गठित तीन एक्सपर्ट्स के बोर्ड ने लिया था.
इंटरव्यू के आधार पर मार्च 2025 में 116 सफल अभ्यर्थियों की घोषणा की गई थी. इसमें 77 प्रिंसिपल अनारक्षित कोटे से, 16 पिछड़ा वर्ग से, 3 अति पिछड़ा वर्ग से और 15 अनुसूचित जाति की कैटेगरी से चुने गए थे. बाकी 3 विधि संकाय अंतर्गत चुने सफल अभ्यर्थी थे.
'प्रधानाचार्य की कुर्सी को लॉटरी में बांध दिया'प्रिंसिपल की इस नियुक्ति में सुहेली मेहता ने टॉप किया था. अनारक्षित कोटे में टॉपर बनी सुहेली मेहता को पटना स्थित वाणिज्य महाविद्यालय का प्रिंसिपल बनाया गया है.
सुहेली मेहता ने इस पद को लेने से इनकार कर दिया है. वो बीबीसी से कहती हैं, "ये शिक्षा व्यवस्था का दुर्भाग्य है कि प्रिंसिपल के पद को लॉटरी से बांध दिया गया है. मैंने शुरुआत में ही इसका विरोध किया था. लॉटरी सिस्टम के विरोध में हाईकोर्ट का दरवाज़ा भी खटखटाया था लेकिन बात आगे नहीं बढ़ सकी. एक टॉपर को उसकी मनचाही पोस्टिंग मिलती है. मैं मगध महिला कॉलेज की प्रिंसिपल बनना चाहती थी लेकिन मुझे वाणिज्य दे दिया."
यहां दिलचस्प है कि सुहेली मेहता, गृह विज्ञान पढ़ाती हैं लेकिन उन्हें वाणिज्य महाविद्यालय का प्रिंसिपल बना दिया गया है. इसी तरह पटना साइंस कॉलेज की प्रिंसिपल अलका को बनाया गया है जो गृह विज्ञान पढ़ाती हैं.
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1927 में स्थापित पटना साइंस कॉलेज एक ज़माने में बहुत मशहूर रहा है और यहां दाख़िला लेना ही बहुत मुश्किल होता था. ये पहली बार होगा जब कला संकाय के किसी विषय की प्रोफेसर की नियुक्ति पटना साइंस कॉलेज के प्रिंसिपल के पद पर हो रही है.
पटना साइंस कॉलेज की प्रिंसिपल बनी अलका बीबीसी से कहती हैं, "मैं एमएससी होम साइंस हूं और मैं अपनी नियुक्ति को बिल्कुल सही मानती हूं. नेशनल एजुकेशन पॉलिसी में मेजर के अलावा माइनर में स्टूडेंट कोई भी सब्जेक्ट ले सकते हैं. ऐसे में मेरी नियुक्ति अच्छा कदम है. दूसरा ये कि सरकार की कई नौकरियों में लॉटरी निकलती है तो इसमें दिक्कत कहां है?"
ब्रिटिश राज के दौरान 1863 में स्थापित पटना कॉलेज आर्ट्स की पढ़ाई के लिए मशहूर रहा है. लेकिन कॉलेज का प्रिंसिपल अनिल कुमार को बनाया गया है जो केमिस्ट्री पढ़ाते हैं.
छात्र-छात्राओं में नाराज़गीपटना यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट में नाराज़गी दो बातों को लेकर है. पहला तो ये कि लॉटरी सिस्टम से कई कॉलेजों में प्रिंसिपल की नियुक्ति की गई है. दूसरा ये कि मगध महिला कॉलेज में पुरुष प्रिंसिपल की नियुक्ति हुई है.
पटना के मगध महिला कॉलेज में नागेंद्र प्रसाद वर्मा को प्रिंसिपल बनाया गया है.
पटना यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन के चुने गए सेंट्रल पैनल में से एक सौम्या श्रीवास्तव कहती हैं, "भला छात्राएं एक पुरुष प्रिंसिपल से अपनी सारी परेशानियां कैसे कह सकती हैं? हम लोग पटना के माहौल में पले-बढ़े हैं, ग्रेजुएशन में पढ़ते हैं. हमें दस तरह की समस्याएं रहती हैं, हम वो अपने प्रिंसिपल से कैसे कहेंगे? बाकी इस बात का कोई मतलब नहीं कि लॉटरी सिस्टम से नियुक्ति हो. ये तो स्टूडेंट्स के भविष्य के साथ खिलवाड़ है."
इन प्रिंसिपल की नियुक्ति पांच वर्ष या 65 वर्ष की आयु (इनमें जो पहले हो) तक की गई है. इनका कार्यकाल परफॉर्मेंस के आधार पर बढ़ाया जा सकता है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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