जयपुर की शान और इतिहास का प्रतीक माने जाने वाला जयगढ़ किला न सिर्फ अपनी रणनीतिक वास्तुकला और विशाल तोप 'जयवन' के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि अब यह किला एक और कारण से चर्चा में है – यहां के डरावने किस्से और आत्माओं की मौजूदगी की दबी-छुपी गवाहियाँ।अरावली की पहाड़ियों पर बना जयगढ़ किला, जिसे आमेर किले की सुरक्षा के लिए निर्मित किया गया था, सदियों तक युद्धों का मूक गवाह रहा है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में स्थानीय लोगों, गाइड्स और पर्यटकों द्वारा साझा की गई कहानियां इस सवाल को जन्म देती हैं कि क्या जयगढ़ केवल एक ऐतिहासिक किला है या फिर कोई अलौकिक ताकतों का गढ़?
इतिहास के भीतर छुपा अंधेराजयगढ़ किले का निर्माण 1726 में महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने करवाया था। यह किला न केवल सुरक्षा के लिहाज से अहम था, बल्कि इसका गुप्त भंडार, जल संग्रहण प्रणाली और तोप निर्माण जैसी विशेषताएं इसे खास बनाती हैं। कहा जाता है कि युद्ध के समय यहां कई गुप्त सुरंगों का इस्तेमाल किया जाता था, जिनमें से कई आज भी पूरी तरह खोजी नहीं जा सकी हैं। इन्हीं सुरंगों के भीतर कुछ ऐसा छिपा है जिसे न तो पूरी तरह देखा जा सका है और न ही समझा गया है।
स्थानीय लोगों की डरावनी गवाहीजयगढ़ के आसपास रहने वाले कुछ ग्रामीणों और वहां कार्यरत कर्मचारियों का मानना है कि किले के अंदर और विशेष रूप से कुछ खास हिस्सों में रात के समय असामान्य गतिविधियां देखी जाती हैं। कई लोगों ने दावा किया कि उन्होंने रात के समय किसी के कदमों की आवाजें सुनीं, जबकि वहां कोई नहीं था।एक गाइड ने बताया कि एक बार कुछ पर्यटक शाम ढलने के बाद किले के भीतर फोटोग्राफी कर रहे थे, तभी उन्हें एक धुंधली आकृति दिखाई दी जो देखते-ही-देखते दीवार के अंदर समा गई। इसके बाद वे सभी इतने डर गए कि आधे रास्ते से ही वापस लौट गए।एक सुरक्षा गार्ड ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “कई बार रात की ड्यूटी के दौरान ऐसा लगता है जैसे कोई पीछा कर रहा हो, या कहीं से कोई फुसफुसाहटें आ रही हों। लेकिन जब ध्यान से देखा जाए तो कोई नजर नहीं आता।”
टूरिस्ट्स का अनुभव भी कम नहीं डरावनाकुछ पर्यटकों ने TripAdvisor और अन्य सोशल प्लेटफॉर्म्स पर अपने अनुभव साझा किए हैं, जिनमें उन्होंने बताया कि किले की ऊँचाई पर जाने के दौरान अचानक ठंडी हवा का तेज झोंका, अजीब सी गंध और सिर में भारीपन महसूस हुआ। इन घटनाओं को आमतौर पर नजरअंदाज किया जाता है, लेकिन बार-बार होने वाली घटनाएं इसे एक अलग ही स्वरूप देती हैं।
वैज्ञानिक नजरिया या अंधविश्वास?भूत-प्रेत की घटनाओं को लेकर वैज्ञानिकों और इतिहासकारों के अपने-अपने मत हैं। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि यह सब मानसिक भ्रम, थकान, या किले के माहौल का असर हो सकता है। पत्थरों से बने पुराने ढांचे, बंद सुरंगें और घना सन्नाटा किसी को भी भ्रमित कर सकते हैं।वहीं दूसरी ओर, आध्यात्मिक और पारलौकिक शोध में रुचि रखने वाले कुछ लोग मानते हैं कि ऐसा संभव है कि इतिहास में हुए हत्या, युद्ध और विश्वासघात के कारण यहां ऊर्जा का असंतुलन हो और वह अब भी किसी रूप में सक्रिय हो।
क्या आज भी जिंदा हैं अतीत के साये?जयगढ़ किला सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि सैकड़ों वर्षों के रहस्यों, कहानियों और असहनीय सन्नाटों का साक्षी रहा है। यह किला हमें एक ओर राजपूती वीरता की गौरवगाथा सुनाता है, वहीं दूसरी ओर यह भी सोचने पर मजबूर करता है कि क्या वहां आज भी कुछ अधूरी आत्माएं भटक रही हैं?
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