गोविंद देव जी, भगवान श्रीकृष्ण का एक विशेष रूप हैं। इस प्रतिमा को भगवान श्रीकृष्ण का वही रूप माना जाता है जो राधा रानी को वृंदावन में प्रकट हुआ था। मान्यता है कि इस मूर्ति को स्वयं ब्रजभूमि के महान भक्त श्री रूप गोस्वामी ने लगभग 450 साल पहले स्थापित किया था। यह मूर्ति स्वयं श्रीकृष्ण के पौत्र वज्रनाभ द्वारा बनाई गई थी और इसे उनके समय से लेकर मुगलों के काल तक बड़े संरक्षण में रखा गया।
मंदिर निर्माण से पहले की पृष्ठभूमिगोविंद देव जी की मूल प्रतिमा वृंदावन (उत्तर प्रदेश) में स्थापित थी। मुगल शासक औरंगज़ेब के शासनकाल में हिन्दू मंदिरों और मूर्तियों को नष्ट किए जाने का भय उत्पन्न हुआ, जिससे कई मंदिरों की मूर्तियों को वहां से हटाकर सुरक्षित स्थानों पर ले जाया गया। गोविंद देव जी की प्रतिमा को भी इसी कारण से वृंदावन से जयपुर लाया गया।यह कार्य तत्कालीन आमेर (अब जयपुर) के महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने किया था, जो स्वयं भगवान कृष्ण के परम भक्त थे। उन्होंने जब वृंदावन से गोविंद देव जी की दिव्य मूर्ति को जयपुर लाने का निश्चय किया, तो उसके लिए पूरे शहर की वास्तु योजना बनाई गई।
मंदिर निर्माण की रोचक कथामहाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय जब जयपुर शहर की स्थापना कर रहे थे, तब उन्होंने गोविंद देव जी के मंदिर को केंद्र में रखकर ही पूरा नगर नियोजित किया। ऐसा कहा जाता है कि मंदिर का स्थान और इसका निर्माण वास्तु और खगोलशास्त्र के सिद्धांतों के अनुसार किया गया।एक रोचक मान्यता यह भी है कि मंदिर और महाराजा के महल के बीच कोई भी दीवार नहीं है ताकि राजा प्रतिदिन अपने महल से ही गोविंद देव जी के दर्शन कर सकें। यह बात आज भी सच मानी जाती है क्योंकि सिटी पैलेस से लेकर मंदिर तक एक सीधा दृश्य मार्ग बनाया गया है, जिससे भक्त राजा रोजाना दर्शन कर सकते थे।
मंदिर की वास्तुकला और विशेषतागोविंद देव जी मंदिर की वास्तुकला में राजस्थानी और मुगल शैली का अनूठा संगम देखने को मिलता है। लाल पत्थर और सफेद संगमरमर से बना यह मंदिर एक विशाल प्रांगण में स्थित है। इसके गुंबद, स्तंभ और छतों पर की गई नक्काशी इसे एक भव्य स्वरूप देती है।मंदिर के गर्भगृह में विराजित भगवान गोविंद देव जी की प्रतिमा इतनी भावमयी है कि दर्शन करते ही भक्त भावविभोर हो जाता है। राधा रानी की सुंदर प्रतिमा उनके साथ स्थापित है। मंदिर में प्रतिदिन मंगल आरती से लेकर शयन आरती तक सात झांकियां होती हैं, जिनमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं।
मंदिर से जुड़ी लोक मान्यताएंभक्तों का विश्वास है कि गोविंद देव जी की यह मूर्ति स्वयं जाग्रत है और भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करती है। कई लोगों का यह भी कहना है कि मंदिर में दर्शन करने मात्र से चित्त शांत हो जाता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।यह भी मान्यता है कि किसी भी कार्य की शुरुआत से पहले यदि गोविंद देव जी के दर्शन कर लिए जाएं, तो सफलता निश्चित मिलती है। यही कारण है कि जयपुर में सुबह का आरंभ हजारों लोग गोविंद देव जी की मंगल आरती से करते हैं।
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