राजस्थान की वीरभूमि में स्थित चित्तौड़गढ़ किला सिर्फ एक दुर्ग नहीं, बल्कि भारतीय इतिहास का गौरवशाली प्रतीक है। यह किला न केवल स्थापत्य कला की अद्भुत मिसाल है, बल्कि यहां की दीवारों और बुर्जों में वह वीरता, शौर्य और बलिदान गूंजते हैं, जिसने इसे भारत के सबसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थलों में शामिल कर दिया है। 800 शब्दों के इस लेख में हम चित्तौड़गढ़ फोर्ट के इतिहास, प्रमुख युद्धों, महापुरुषों और इसकी संस्कृति से जुड़ी प्रमुख घटनाओं को विस्तार से जानेंगे।
चित्तौड़गढ़ फोर्ट की स्थापना
चित्तौड़गढ़ का किला भारत के सबसे विशाल और प्राचीन किलों में से एक है। यह किला राजस्थान के चित्तौड़गढ़ ज़िले में स्थित है और लगभग 590 फीट ऊंची पहाड़ी पर फैला हुआ है। इसकी स्थापना 7वीं शताब्दी में मौर्य शासकों ने की थी, जिनमें सबसे प्रमुख राजा चित्रांगद मौर्य थे। कहा जाता है कि किले का नाम ‘चित्रकूट दुर्ग’ के रूप में पहले प्रचलित था, जो बाद में चित्तौड़ बन गया।किला लगभग 700 एकड़ में फैला है और इसकी दीवारें 13 किलोमीटर की परिधि में बनी हैं। इसमें कुल 7 मुख्य द्वार हैं जिन्हें 'पोल' कहा जाता है – पद्म पोल, हनुमान पोल, भैरव पोल, गणेश पोल, जोड़ा पोल, लक्ष्मण पोल और राम पोल। किले तक पहुंचने का मार्ग बेहद दुर्गम और रणनीतिक रूप से मजबूत है।
चित्तौड़गढ़ की तीन प्रमुख जौहर गाथाएं
चित्तौड़गढ़ की सबसे विशेष बात इसके इतिहास में दर्ज तीन बड़े जौहर हैं, जिनमें राजपूत महिलाओं ने अपने आत्मसम्मान की रक्षा हेतु अग्नि में प्रवेश कर बलिदान दिया।
पहला जौहर (1303 ई.) – रानी पद्मिनी का बलिदान
चित्तौड़ का पहला जौहर 1303 में दिल्ली सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के हमले के दौरान हुआ। इतिहासकारों के अनुसार, अलाउद्दीन खिलजी रानी पद्मिनी की सुंदरता से इतना प्रभावित था कि उसने चित्तौड़गढ़ पर हमला कर दिया। जब विजय तय हो गई, तब रानी पद्मिनी और 16000 रानियों एवं महिलाएं अग्नि कुंड में कूद गईं। यह बलिदान भारतीय स्त्री-सम्मान का अप्रतिम उदाहरण बन गया।
दूसरा जौहर (1535 ई.) – रानी कर्णावती का जौहर
मुगल सम्राट बहादुर शाह ने चित्तौड़ पर हमला किया। तब रानी कर्णावती ने अपने राज्य की रक्षा हेतु लड़ाई लड़ी, परन्तु जब किले की हार सुनिश्चित हो गई, तो उन्होंने भी हजारों महिलाओं के साथ जौहर किया। पुरुष योद्धा ‘शाका’ कर दुश्मन से आखिरी सांस तक लड़े।
तीसरा जौहर (1568 ई.) – अकबर का आक्रमण
तीसरा और अंतिम जौहर 1568 में मुगल सम्राट अकबर के हमले के समय हुआ। चित्तौड़ के योद्धा जयमल और फत्ता की वीरता आज भी इतिहास में दर्ज है। अकबर के तोपों और हथियारों के सामने भी राजपूतों ने समर्पण नहीं किया और अंततः किला फिर से जल गया।
महान योद्धा और ऐतिहासिक स्मारक
चित्तौड़गढ़ किले ने कई ऐतिहासिक योद्धाओं को जन्म दिया, जिनमें मेवाड़ के राणा हमीर, राणा कुंभा, राणा सांगा और राणा प्रताप जैसे महानायक शामिल हैं। राणा कुंभा का शासन काल सांस्कृतिक और वास्तुकला की दृष्टि से स्वर्णकाल माना जाता है। उन्होंने विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया, जो आज भी चित्तौड़ की पहचान है।यहां का ‘कीर्ति स्तम्भ’ जैन धर्म के प्रमुख संतों को समर्पित है, जो अद्भुत शिल्पकला का उदाहरण है। ‘कर्णमती महल’, ‘गौमुख कुंड’, ‘मीरा बाई मंदिर’ और ‘पद्मिनी महल’ जैसे स्थल आज भी पर्यटकों को उस गौरवशाली युग में ले जाते हैं।
मीरा बाई और चित्तौड़
चित्तौड़ न केवल रणभूमि की वीरता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि भक्ति आंदोलन की महान संत मीरा बाई का भी यह जन्मस्थान रहा है। मीरा बाई, श्रीकृष्ण की परम भक्त थीं और उन्होंने सामाजिक रुढ़ियों के विरुद्ध जाकर भक्ति का मार्ग अपनाया। उनका मंदिर आज भी श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र है।
युनेस्को विश्व धरोहर सूची में शामिल
चित्तौड़गढ़ किला 2013 में युनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया था। यह न केवल एक पर्यटक स्थल है, बल्कि यह भारत की संस्कृति, शौर्य और इतिहास का जीवित प्रतीक है। हर साल हजारों पर्यटक यहां आते हैं और इसके इतिहास से प्रभावित होकर लौटते हैं।
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