नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गैरकानूनी जमावड़े के मामले में किसी बेगुनाह को फंसाए जाने से रोकने के लिए 7 दिशानिर्देश जारी किए हैं। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने मंगलवार को कहा कि किसी व्यक्ति का घटनास्थल पर मौजूद होना ये साबित नहीं करता कि वो गैरकानूनी भीड़ का हिस्सा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तक ये साबित न हो कि संबंधित व्यक्ति ने भीड़ के मकसद को समझकर काम में साथ दिया, उसे दोषी नहीं माना जा सकता। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने ये भी कहा कि अभियोजन पक्ष को सीधे या किसी तरीके से साबित करना होगा कि आरोपी ने गैरकानूनी जमावड़े में शामिल होकर मकसद पूरा करने में हिस्सा लिया।
कोर्ट ने ये फैसला करते हुए बिहार के एक गांव में 1988 में हुई एक ऐसी ही घटना के 12 दोषियों को रिहा करने का भी आदेश दिया। इन सभी पर अवैध सभा और हत्या के आरोप लगाए गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब बहुत ज्यादा लोगों पर आरोप लगे और दस्तावेजों में ये साफ न हो, तो कोर्ट को सबूतों की गहराई से जांच करनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आईपीसी की धारा 149 में लिखा है कि अगर अवैध सभा (पांच या उससे ज्यादा लोगों का जुटना) में कोई व्यक्ति साझा उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपराध करता है या उसे ये पता हो कि ऐसा अपराध हो सकता है, तो उस वक्त उस सभा में मौजूद हर व्यक्ति दोषी माना जाएगा।
जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस महादेवन की बेंच ने कहा कि किसी व्यक्ति का अवैध सभा में मौजूद रहना ही उसे उसका हिस्सा नहीं बनाता। जब तक कि ये साबित न हो कि उसने सभा के उद्देश्य को समर्थन देना या उसे माना। कोर्ट ने कहा कि बिना किसी खास भूमिका के एक साधारण दर्शक को आईपीसी की धारा 149 के दायरे में लाया नहीं जा सकता। सुप्रीम कोर्ट के अहम फैसले से गैरकानूनी जमावड़े के नाम पर गिरफ्तार किए जाने वाले उन तमाम लोगों को राहत मिलेगी, जो सिर्फ कौतूहल के कारण अपराध करने वाली भीड़ का हिस्सा बन जाते हैं।
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