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Mythological Stories : छठ पूजा की वो कहानी जो आपने कभी नहीं सुनी ,आखिर किसने किया था पहला व्रत?

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News India Live, Digital Desk: Mythological Stories : छठ पूजा का त्योहार! आते ही मन एक अलग ही पवित्रता और भक्ति से भर जाता है, खासकर जब हम सूर्य देव और छठी मैया की बात करते हैं. यह केवल बिहार या पूर्वांचल का ही नहीं, बल्कि अब तो पूरे देश का और यहां तक कि विदेश में बसे भारतीयों का भी एक बड़ा और आस्था भरा पर्व बन गया है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इतनी पुरानी और पवित्र छठ पूजा की शुरुआत आखिर कैसे हुई होगी, या सबसे पहले किसने इस कठिन व्रत को रखा था? इतिहास के पन्नों और पौराणिक कथाओं में इसकी बहुत गहरी जड़ें हैं.अगर हम हिंदू धर्मग्रंथों को खंगालें, तो छठ व्रत का संबंध महाभारत काल से जुड़ता दिखाई देता है. ऐसा कहा जाता है कि सबसे पहले महाभारत के 'सूर्य पुत्र' कर्ण ने सूर्यदेव की पूजा की थी. कर्ण को तो हम सब जानते हैं, वे दानवीर थे और अपने अजेय कवच-कुंडल के लिए भी मशहूर थे. उनकी कहानी में बताया जाता है कि वे रोज कमर तक पानी में खड़े होकर, सूर्य को अर्घ्य देते थे. माना जाता है कि इसी सूर्य उपासना के बल पर उन्हें अद्भुत शक्ति और तेज मिला था. तो, छठ पूजा को सूर्य की उपासना से जोड़ने का यह एक बहुत पुराना और मजबूत आधार है.एक और कथा द्रौपदी से जुड़ी हुई है. जब पांडव अपना राजपाट हारकर वनवास में थे, तब द्रौपदी ने सूर्य देव की आराधना की थी. माना जाता है कि सूर्य की कृपा से ही द्रौपदी को अक्षय पात्र मिला था, जिसमें से भोजन कभी खत्म नहीं होता था. इसी के दम पर उन्होंने सभी साधु-संतों और पांडवों को भोजन कराया था. तो, द्रौपदी ने भी सुख-समृद्धि और अपने परिवार के कल्याण के लिए इस कठोर तपस्या का सहारा लिया था. इस तरह छठ पूजा सिर्फ अपनी इच्छाएं पूरी करने का व्रत नहीं है, बल्कि यह अपने परिवार के सुख, समृद्धि और अच्छी सेहत के लिए रखा जाने वाला एक महान त्योहार है.इसके अलावा भी एक और मान्यता है कि भगवान राम जब रावण का वध करके अयोध्या लौटे थे, तब उन्होंने और माता सीता ने 'छठी मैया' का पूजन किया था. इसके पीछे का मकसद था कि वे पापों से मुक्त हों और एक शुद्ध और धर्मपरायण जीवन जी सकें. छठ पूजा में सूर्य देव के साथ छठी मैया की भी उपासना होती है, जिन्हें संतान और स्वास्थ्य का कारक माना जाता है.यह पर्व केवल कर्मकांड तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमें प्रकृति से जुड़ना सिखाता है. उगते और डूबते सूर्य दोनों को अर्घ्य देकर, हम जीवन के हर पड़ाव, चाहे वह शुरुआत हो या अंत, उसे सम्मान देना सीखते हैं. यही छठ पूजा की खूबसूरती और उसका सबसे बड़ा संदेश है.
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