नई दिल्ली: सीडीएस अनिल चौहान ने 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान एक बहुत बड़ी रणनीतिक चूक की ओर इशारा किया है। उनका कहना है कि अगर उस समय भारतीय वायुसेना का इस्तेमाल किया जाता तो चीन की आक्रमकता को काफी हद तक कम किया जा सकता था। उनका कहना है कि इससे भारतीय थल सेना को पूरी तैयारी का समय मिल जाता। हालांकि, उनका कहना है कि उस समय वायुसेना का इस्तेमाल 'एस्केलेटरी' माना जा सकता था, लेकिन ऑपरेशन सिंदूर में हम देख चुके हैं कि अब ऐसी बात नहीं रह गई है।
'1962 के युद्ध नीति त्रुटिपूर्ण'
न्यूज एजेंसी पीटीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक 63 वर्ष पहले हुए भारत-चीन युद्ध के बारे में जनरल अनिल चौहान ने कहा कि लद्दाख से लेकर नॉर्थ-ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी (NEFA-अब अरुणाचल प्रदेश) तक एक तरह की फॉर्वर्ड पॉलिसी नहीं अपनाई जानी चाहिए थी। इसके बारे में उनका कहना है कि दोनों क्षेत्रों के विवाद का इतिहास अलग था और भूभाग भी पूरी तरह से अलग था, ऐसे में एक तरह की नीति त्रुटिपूर्ण साबित हुई। हालांकि, उन्होंने कहा है कि इन बीते दशकों में सुरक्षा के हालात बदल चुके हैं और युद्ध का चेहरा भी अपने आप बदल चुका है।
बताई कहां रह गई युद्ध नीति में चूक
एक वीडियो संदेश में सीडीएस चौहान ने 1962 के युद्ध के बारे में कहा, 'मैं इतना कह सकता हूं कि लद्दाख से लेकर नेफा तक एक समान फॉर्वर्ड पॉलिसी नहीं अपनाई जानी चाहिए थी। दोनों क्षेत्रों के विवादों का इतिहास बिल्कुल अलग था, सुरक्षा से जुड़े मुद्दे अलग थे और भूभाग भी पूरी तरह से अलग था।' वे बोले, 'लद्दाख में चीन ने पहले ही भारत के ज्यादातर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था, जबकि नेफा में भारत के दावे की वैधता ज्यादा मजबूत थी। दोनों को एक करना और एक समान नीति पर चलना, मेरी नजर में थोड़ा त्रुटिपूर्ण था।'
'वायुसेना का इस्तेमाल नहीं करने दिया'
जनरल चौहान ने इस तरह की टिप्पणी बुधवार को पुणे में दिवंगत लेफ्टिनेंट जनरल एसपीपी थोराट की संशोधित आत्मकथा, -'Reveille to Retreat' के विमोचन के मौके पर एक रिकॉर्डेड वीडियो संदेश के माध्यम से की। उनके मुताबिक जनरल थोराट चीन के साथ युद्ध में वायुसेना का इस्तेमाल चाहते थे, लेकिन तत्कालीन सरकार ने इसकी अनुमति नहीं दी। सीडीएस ने बताया, 'इससे 1962 के संघर्ष में महत्वपूर्ण फायदा मिल सकता था। कम समय में वापसी, अनुकूल भौगोलिक परिस्थिति और दुश्मन पर ज्यादा ताकत के साथ अधिकतम पेलोड ले जाने की क्षमता...अगर पूरी तरह से नहीं रोका जा सकता था तो भी हवाई शक्ति के इस्तेमाल से चीनी आक्रामकता काफी हद तक धीमी की जा सकता थी।'
'आर्मी को तैयारी का बहुत समय मिलता'
उनका कहना है कि 'इससे आर्मी को तैयारी के लिए बहुत ज्यादा समय मिल सकता था। उन दिनों मेरी समझ से एयर फोर्स का इस्तेमाल करना एस्केलेटरी माना जाता था। अब मेरी समझ में यह सच नहीं है और ऑपरेशन सिंदूर इसका एक उपयुक्त उदाहरण है।' सीडीएस चौहान जिस दिवंगत लेफ्टिनेंट जनरल थोराट को याद करते हुए ये सब कह रहे थे, वे भारत-चीन युद्ध के समय तक पूर्वी कमांड के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ थे।
'1962 के युद्ध नीति त्रुटिपूर्ण'
न्यूज एजेंसी पीटीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक 63 वर्ष पहले हुए भारत-चीन युद्ध के बारे में जनरल अनिल चौहान ने कहा कि लद्दाख से लेकर नॉर्थ-ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी (NEFA-अब अरुणाचल प्रदेश) तक एक तरह की फॉर्वर्ड पॉलिसी नहीं अपनाई जानी चाहिए थी। इसके बारे में उनका कहना है कि दोनों क्षेत्रों के विवाद का इतिहास अलग था और भूभाग भी पूरी तरह से अलग था, ऐसे में एक तरह की नीति त्रुटिपूर्ण साबित हुई। हालांकि, उन्होंने कहा है कि इन बीते दशकों में सुरक्षा के हालात बदल चुके हैं और युद्ध का चेहरा भी अपने आप बदल चुका है।
बताई कहां रह गई युद्ध नीति में चूक
एक वीडियो संदेश में सीडीएस चौहान ने 1962 के युद्ध के बारे में कहा, 'मैं इतना कह सकता हूं कि लद्दाख से लेकर नेफा तक एक समान फॉर्वर्ड पॉलिसी नहीं अपनाई जानी चाहिए थी। दोनों क्षेत्रों के विवादों का इतिहास बिल्कुल अलग था, सुरक्षा से जुड़े मुद्दे अलग थे और भूभाग भी पूरी तरह से अलग था।' वे बोले, 'लद्दाख में चीन ने पहले ही भारत के ज्यादातर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था, जबकि नेफा में भारत के दावे की वैधता ज्यादा मजबूत थी। दोनों को एक करना और एक समान नीति पर चलना, मेरी नजर में थोड़ा त्रुटिपूर्ण था।'
'वायुसेना का इस्तेमाल नहीं करने दिया'
जनरल चौहान ने इस तरह की टिप्पणी बुधवार को पुणे में दिवंगत लेफ्टिनेंट जनरल एसपीपी थोराट की संशोधित आत्मकथा, -'Reveille to Retreat' के विमोचन के मौके पर एक रिकॉर्डेड वीडियो संदेश के माध्यम से की। उनके मुताबिक जनरल थोराट चीन के साथ युद्ध में वायुसेना का इस्तेमाल चाहते थे, लेकिन तत्कालीन सरकार ने इसकी अनुमति नहीं दी। सीडीएस ने बताया, 'इससे 1962 के संघर्ष में महत्वपूर्ण फायदा मिल सकता था। कम समय में वापसी, अनुकूल भौगोलिक परिस्थिति और दुश्मन पर ज्यादा ताकत के साथ अधिकतम पेलोड ले जाने की क्षमता...अगर पूरी तरह से नहीं रोका जा सकता था तो भी हवाई शक्ति के इस्तेमाल से चीनी आक्रामकता काफी हद तक धीमी की जा सकता थी।'
'आर्मी को तैयारी का बहुत समय मिलता'
उनका कहना है कि 'इससे आर्मी को तैयारी के लिए बहुत ज्यादा समय मिल सकता था। उन दिनों मेरी समझ से एयर फोर्स का इस्तेमाल करना एस्केलेटरी माना जाता था। अब मेरी समझ में यह सच नहीं है और ऑपरेशन सिंदूर इसका एक उपयुक्त उदाहरण है।' सीडीएस चौहान जिस दिवंगत लेफ्टिनेंट जनरल थोराट को याद करते हुए ये सब कह रहे थे, वे भारत-चीन युद्ध के समय तक पूर्वी कमांड के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ थे।
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