7 साल का सौरभ पिछले दिनों सूखी खांसी से परेशान था। जब रात को बच्चे को तेज खांसी होने लगी तो पैरंट्स परेशान हो गए। उन्होंने सोचा कि फिलहाल घरेलू नुस्खा आजमाते हैं। उन्होंने अखबार में पढ़ा था कि स्टीम या भाप से भी खांसी में आराम आ सकता है। उन्होंने सौरभ को सादे पानी की भाप दिलाई। इससे काफी फायदा हुआ। फिर शहद और अदरक का रस को मिलाकर भी पिलाया। इससे और भी आराम मिल गया। दूसरे दिन उन्होंने सौरभ के खानपान का भी ध्यान रखा। उसे पीने के लिए गुनगुना पानी ही दिया।
साथ ही, थोड़ी मात्रा में काढ़ा भी पिलाया। इससे बच्चे की खांसी पूरी तरह ठीक तो नहीं हुई, लेकिन काफी राहत मिली। करीब 6-7 दिनों के बाद खांसी रुक गई। इसका मतलब यही है कि अगर अस्थमा जैसी परेशानी न हो, खांसी गंभीर न हो तो घरेलू नुस्खे से काम चल जाता है। वैसे खांसी के लिए आमतौर पर लोग कफ सिरप लेते हैं। पर ध्यान दें कि एक ही तरह का सिरप सूखी और गीली खांसी में काम नहीं करता। कफ सिरप ही लेना हो तो कौन-सा सिरप कितनी बार लेना है, डॉक्टर इसका फैसला बच्चे का वज़न, उम्र आदि देखकर करते हैं। खुद ही केमिस्ट से पूछकर, गूगल करके या AI से पूछकर न लें। ज्यादातर खांसी में कफ सिरप की ज़रूरत नही होती।
घर पर कर सकते हैं ये-ये उपाय
गरारे

गले की सामान्य परेशानी, खासकर जब वह खांसी, सर्दी आदि से जुड़ी हो तो गरारे काफी कारगर होते हैं। अहम बात यह है कि गरारे सामान्य गुनगुने पानी से, गुनगुने पानी में नमक मिलाकर या फिर गुनगुने पानी में बीटाडीन दवा मिलाकर करना चाहिए। ये तीनों उपाय अलग-अलग परिस्थितियों में काम आते हैं।
जब गले में खराश हो या हल्की सूजन हो और इसकी वजह से खांसी हो तो गुनगुने पानी से गरारे करना फायदेमंद होता है। सिर्फ गले में खराश है तो आवाज़ में बदलाव नहीं होता। ऐसे में गुनगुने पानी से गरारे करें।
खराश के साथ सूजन है यानी आवाज़ में बदलाव है तो गुनगुने पानी में नमक भी मिला दें। अगर खराश और सूजन के साथ दर्द भी है तो गुनगुने पानी में बीटाडीन दवा मिला सकते हैं। दरअसल, गले में दर्द बैक्टीरियल या वायरल इन्फेक्शन की वजह से होता है। ऐसे में बीटाडीन फायदेमंद है। एक दिन में 2-3 बार गरारे करना काफी है। साथ ही डॉक्टर को ज़रूर दिखाएं।
स्टीम
भाप या स्टीम गले में जमे बलगम को बाहर निकालने में मदद करती है। स्टीम की प्रक्रिया में सिर्फ सामान्य पानी को गर्म करके उसकी भाप को नाक और मुंह से अंदर खींचा जाता है। हम खुद को स्टीमर समेत टावल या कंबल से ढक लें। सिर्फ सामान्य पानी को अच्छी तरह से उबालने (5 मिनट उबालना) के बाद स्टीम अंदर खींचने से फायदा होता है। एक बार में 5 से 7 मिनट तक स्टीम करना काफी है। पानी में कुछ भी न मिलाएं। किसी भी तरह की दवा या कैप्सूल या नमक की ज़रूरत नहीं होती। एक दिन में 2-3 बार स्टीम करना सही रहता है। बच्चों (12 साल से कम उम्र) को स्टीम न दें तो बेहतर है। उनके जलने का खतरा रहता है।
मास्क
अगर पलूशन बढ़ने से एलर्जी के मामले बढ़ते हैं, जैसे सांस लेने में परेशानी, छींक आए, सिर दर्द हो तो मास्क लगाने से कुछ राहत मिल सकती है। लेकिन यह ज़रूरी नहीं कि कोई महंगा मास्क ही लगाएं।
...तब इनहेलर को न भूलें
सांस से जुड़ी बीमारी होने के कारण अस्थमा के मरीजों को साफ हवा की दरकार ज्यादा होती है। इसलिए यह जरूरी है कि वे इनहेलर हमेशा अपने साथ रखें। यहां तक कि परेशानी ज्यादा हो तो बाथरूम में भी इसे ले जाना न भूलें।
क्यों परेशान करती है एलर्जी?
एलर्जी वैसे तो कई तरह की परेशानियों के समूह या लक्षणों को कह सकते हैं, लेकिन असल में यह हमारे शरीर के इम्यून सिस्टम का उठाया हुआ एक कदम है। अगर हमारे शरीर में कोई भी बाहरी चीज़ या कण अंदर जाता है तो शरीर उसे तुरंत बाहर की ओर धकेल देता है। इन चीजों में धूल, पौधों से निकलने वाला परागण, दवा, खाने की कोई खास चीज़, कीड़े का डंक, गंध, वायरस, बैक्टीरिया आदि। ऐसे में एलर्जी के लक्षण उभरते हैं। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि जब किसी की आंख में कोई कीड़ा चला जाए तो आंखों से पानी बहने लगता है, आंखें लाल हो जाती हैं और पानी के साथ वह भी बाहर निकल जाता है।
जब ऐसी चीज़ें अंदरूनी स्तर पर हों तो शरीर उसे खतरनाक समझकर एक केमिकल हिस्टामिन निकालता है। यह शरीर की भीतरी सुरक्षा के लिए होता है। अगर किसी बाहरी तत्व की वजह से ट्रेकिया में सूजन आ जाए तो शरीर चाहता है कि सूजन जल्दी ठीक हो, इसलिए सूखी खांसी हो जाती है। हिस्टामिन के असर को कम करने के लिए अक्सर कफ सिरप, दवा (ऐंटिहिस्टामिन) आदि लेते हैं, ताकि खांसी कम हो सके। वैसे इन सबसे ज्यादा फायदा नहीं होता।
आंतरिक सूजन
एलर्जी की वजह से एक या कई तरह के लक्षण उभर सकते हैं। इससे हमारी सांसें यानी श्वसन तंत्र, त्वचा, आंखें आदि प्रभावित हो सकती हैं। इसलिए लक्षण भी प्रभावित अंगों के अनुसार ही उभरते हैं। जब शरीर में फ्री-रेडिकल्स की संख्या ज्यादा बढ़ जाती है और ऐंटिऑक्सिडेंट्स की संख्या कम हो जाती है तो शरीर के भीतरी अंगों में इन्फ्लेमेशन यानी सूजन होने लगती है। वे अंग पूरी क्षमता से काम नहीं कर पाते।
ये हो सकते हैं लक्षण
रुक-रुक कर छींकें आना या लगातार छीकें आना, नाक से पानी बहना या नाक का बंद होना, गले में खराश या खुजली, आंखों में पानी, थकान या सिरदर्द, हल्का बुखार जैसा महसूस होना, सांस लेने में तकलीफ, सीने में जकड़न, खांसी रात में बढ़ती हो, खुजली या जलन, लाल चकत्ते या दाने आदि।
एलर्जी या खांसी होने के बाद डॉक्टर के पास कब जाएं?
सामान्य खांसी, हल्का बुखार, सिर दर्द आदि सामान्य मामलों को घर पर रहकर भी ठीक किया जा सकता है। घरेलू नुस्खों की मदद ली जा सकती है। लेकिन कुछ परिस्थितियां ऐसी भी बन सकती हैं जब किसी डॉक्टर के पास या अस्पताल में जाना जाना ज़रूरी हो जाता है:-
डॉक्टर से पूछे बिना कफ सिरप लेने के नुकसान
एक बार जब खांसी होने लगती है तो हमें लगता है कि यह किसी भी तरह रुक हो जाए। ऐसे में सबसे आसान और सहज इलाज लगता है कफ सिरप देना। पर इस बात को समझ लें कि कुछ मामलों में ही कफ सिरप देने की ज़रूरत होती है, ज्यादातर मामलों में तो इसकी ज़रूरत ही नहीं होती। नाक, नाक के सुराख, नेजल कैविटी, साइनस, गला (फैरिंक्स), टॉन्सिल, लेरिंक्स (वॉइस बॉक्स) आदि में सूजन हो जाए तो इसे अपर ट्रैक्ट इन्फेक्शन कहते हैं, वहीं अगर इन्फेक्शन फेफड़ों, ब्रांकाई आदि में हो तो यह लोअर ट्रैक्ट इन्फेक्शन है। इनमें से किसी भी अंग में सूजन की वजह से खांसी हो सकती है। लेकिन दोनों परिस्थितियों में अलग-अलग तरह की खांसी होती है। एक में सूखी खांसी तो दूसरे में गीली खांसी। इसलिए कफ सिरप भी अलग-अलग तरह का दिया जाता है। कफ सिरप का चुनाव डॉक्टर करें तो बढ़िया।
कभी सूखी तो कभी गीली खांसी क्यों होती है ?
जब शरीर के अंदर डस्ट, वायरस आदि पहुंचता है तो हमारा इम्यून सिस्टम ऐक्टिवेट हो जाता है। कोई स्राव (बलगम) नहीं होता है तो खांसी सूखी होती है। वहीं, जब शरीर सांस की नली या फेफड़ों पर चिपके डस्ट, वायरस आदि को हटाने के लिए स्राव निकालता है तो गीली खांसी।
आयुर्वेद से दूर करें परेशानी
आयुर्वेद में खांसी (कास) 5 तरह की होती है: वातज, पित्त, कफज, क्षयज और क्षतज। आयुर्वेद के अनुसार इनका इलाज और औषधियां भी अलग-अलग होती हैं। सच तो यह है कि आयुर्वेद में कई औषधीय कल्प हैं जैसे वासावलेह, व्याघ्री हरीतकी, चित्रक हरीतकी आदि। ये सब अलग-अलग प्रकार की खांसी में फायदेमंद हैं, लेकिन इनके सेवन से पहले अपने आयुर्वेदिक चिकित्सक से सलाह ज़रूर लें। नीचे कुछ विकल्प दिए जा रहे हैं जिन्हें अपना सकते हैं:
सुबह उठने पर क्या करें
नस्य है फायदेमंद
यह विशेष रूप से नाक से औषधियों (तिल का तेल, जटामांसी, इलायची आदि) या तेलों को सांस के ज़रिये ग्रहण करने की प्रक्रिया है। यह सिरदर्द, साइनस और दूसरी नाक से जुड़ी परेशानियों के इलाज में भी उपयोगी है। इसके लिए अपनी उंगली पर तिल या अणु तेल की 2 बूंद लेकर नाक के दोनों सुराखों में डालने से फायदा होता है।
नवजात की मालिश/अभ्यंग करें
हल्के हाथ से की जाने वाली यह तेल मालिश नवजात शिशुओं को फायदा देती है। उनकी इम्युनिटी बढ़ाने और शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मददगार होती है, साथ ही त्वचा को पोषण देती है। इससे बच्चों की ग्रोथ सही बनी रहता है। आजकल भी बहुत-सी जगहों पर नवजात शिशुओं का रोजाना अभ्यंग होता ही है।
बच्चों की खांसी: अदरक का रस (दो बूंद)+शहद (आधा चम्मच)। इससे गले की खिच-खिच, दर्द और खांसी में राहत मिलती है।
बड़ों की खांसी (सूखी खांसी के लिए):
होम्योपैथी में एलर्जी से लड़ने के कई ऑप्शंस
1. Allium Cepa (एलियम सेपा): अगर सर्दी-जुकाम जैसी एलर्जी है। नाक से लगातार पानी बहता है तो यह दवा बहुत असरदार है।
2. Arsenicum Album (आर्सेनिकम एल्बम): यह दवा सांस की एलर्जी या अस्थमा जैसी स्थिति में दी जाती है। मरीज को सांस लेने में तकलीफ होती है, खासकर रात में या ठंडी हवा लगने पर। नाक बंद रहती है, बेचैनी महसूस होती है और शरीर में कमजोरी आती है।
3. Pulsatilla (पल्सेटिला): यह दवा उन लोगों के लिए है जिन्हें ठंडी हवा या तैलीय खाना खाने से एलर्जी या जुकाम हो जाता है। नाक बंद रहती है और उसमें से पीला या हरा म्यूकस (बलगम) निकलता है। मौसम बदलते ही जुकाम या एलर्जी बार-बार हो जाती है। ठंडी चीजें खाने या पीने से लक्षण और बढ़ जाते हैं।
4. Sulphur (सल्फर): यह दवा पुरानी स्किन एलर्जी या खुजली वाले लोगों के लिए फायदेमंद है। स्किन पर लाल दाने, जलन और खुजली होती है। यह उन लोगों के लिए अच्छी दवा है जिनकी एलर्जी बार-बार वापस आ जाती है।
5. Natrum Muriaticum (नैट्रम म्यूर): यह दवा उन लोगों के लिए उपयोगी है जिन्हें बार-बार छींकें आती हैं और नाक से पानी गिरता है। धूप या गर्मी से उनकी परेशानी बढ़ जाती है। अक्सर होंठ सूखे रहते हैं और एलर्जी के साथ सिरदर्द भी होता है। यह पुराने जुकाम या सीज़नल एलर्जी में बहुत असरदार होती है।
कितना लें: ऊपर लिखी सभी दवाइयां 5-5 गोली सुबह, दोपहर और शाम।
(ऊपर लिखी दवाओं में से कोई एक दवा को जरूरत पड़ने पर हर कोई ले सकता है। ध्यान रखें कि हर इंसान पर दवा का असर अलग-अलग होता है, इसलिए दवा डॉक्टर की सलाह से ही लें।)
यूनानी चिकित्सा में उपाय
जब मौसम अचानक गर्मी से सर्दी या बरसात से ठंड में बदलता है तो रोग-प्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ जाती है। यूनानी मत के अनुसार यह स्थिति शरीर के चार रसों या 'अखलात'- दम, बलगम, सफ़रा और सुदा के असंतुलन से जुड़ी होती है।
बच्चों के लिए प्राकृतिक उपचार और औषधियां
सर्दी-जुकाम में: जोशांदा, खमीरा बनफ्शा, शरबत उन्नाब
खांसी में: शरबत तूत सियाह, खमीरा गौजबान अंबरी जवाहर वाला, लऊक सपिस्तान ख्यार शंबरी आदि दिए जा सकते हैं।
इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए: खमीरा अबरेशम, दवा-उल-मिस्क, जवारिश जालीनूस दी जा सकती है।
खानपान और देखभाल
यूनानी मत में कहा गया है कि 'सही आहार ही सबसे बड़ी दवा है।' बच्चों के लिए हल्का, पौष्टिक और मिजाज के अनुरूप भोजन जैसे दलिया, मूंग की खिचड़ी, गर्म दूध और मौसमी फल सबसे उपयुक्त हैं। ठंडे पेय, आइसक्रीम और तले-भुने भोजन से परहेज़ करें। हल्की मालिश (दलक), नियमित नींद और स्वच्छ वातावरण भी बच्चे को मौसम के प्रभाव से बचाते हैं।
एक्सपर्ट पैनल
-डॉ. प्रदीप देवता, प्रफेसर एंड HOD पीडियट्रिक्स, सफदरजंग अस्पताल
-डॉ. महेश व्यास, डीन, ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ आयुर्वेद
-डॉ. अंशुल वार्ष्णेय, सीनियर कंसल्टेंट, फिजिशन
-डॉ. नीतू जैन, सीनियर कंसल्टेंट, पल्मोनलॉजी एंड क्रिटकल केयर, PSRI हॉस्पि.
-डॉ. खुर्शीद अहमद अंसारी, विभागाध्यक्ष, प्रो. शरीर रचना विज्ञान, जामिया हमदर्द
-डॉ. आनन्द पांडेय, मुख्य चिकित्सक, गंगा आयुर्वेदिक चिकित्सालय
-डॉ. सुशील वत्स, सीनियर होम्योपैथ
-डॉ. मीना तान्दले, वरिष्ठ आयुर्वेदाचार्य, उत्तरांचल आयुर्वेदिक हॉस्पिटल
डिस्क्लेमर: यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है। एनबीटी इसकी सत्यता, सटीकता और असर की जिम्मेदारी नहीं लेता है। यह किसी भी तरह से किसी दवा या इलाज का विकल्प नहीं हो सकता। ज्यादा जानकारी के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
साथ ही, थोड़ी मात्रा में काढ़ा भी पिलाया। इससे बच्चे की खांसी पूरी तरह ठीक तो नहीं हुई, लेकिन काफी राहत मिली। करीब 6-7 दिनों के बाद खांसी रुक गई। इसका मतलब यही है कि अगर अस्थमा जैसी परेशानी न हो, खांसी गंभीर न हो तो घरेलू नुस्खे से काम चल जाता है। वैसे खांसी के लिए आमतौर पर लोग कफ सिरप लेते हैं। पर ध्यान दें कि एक ही तरह का सिरप सूखी और गीली खांसी में काम नहीं करता। कफ सिरप ही लेना हो तो कौन-सा सिरप कितनी बार लेना है, डॉक्टर इसका फैसला बच्चे का वज़न, उम्र आदि देखकर करते हैं। खुद ही केमिस्ट से पूछकर, गूगल करके या AI से पूछकर न लें। ज्यादातर खांसी में कफ सिरप की ज़रूरत नही होती।
घर पर कर सकते हैं ये-ये उपाय
गरारे
गले की सामान्य परेशानी, खासकर जब वह खांसी, सर्दी आदि से जुड़ी हो तो गरारे काफी कारगर होते हैं। अहम बात यह है कि गरारे सामान्य गुनगुने पानी से, गुनगुने पानी में नमक मिलाकर या फिर गुनगुने पानी में बीटाडीन दवा मिलाकर करना चाहिए। ये तीनों उपाय अलग-अलग परिस्थितियों में काम आते हैं।
जब गले में खराश हो या हल्की सूजन हो और इसकी वजह से खांसी हो तो गुनगुने पानी से गरारे करना फायदेमंद होता है। सिर्फ गले में खराश है तो आवाज़ में बदलाव नहीं होता। ऐसे में गुनगुने पानी से गरारे करें।
खराश के साथ सूजन है यानी आवाज़ में बदलाव है तो गुनगुने पानी में नमक भी मिला दें। अगर खराश और सूजन के साथ दर्द भी है तो गुनगुने पानी में बीटाडीन दवा मिला सकते हैं। दरअसल, गले में दर्द बैक्टीरियल या वायरल इन्फेक्शन की वजह से होता है। ऐसे में बीटाडीन फायदेमंद है। एक दिन में 2-3 बार गरारे करना काफी है। साथ ही डॉक्टर को ज़रूर दिखाएं।
स्टीम
भाप या स्टीम गले में जमे बलगम को बाहर निकालने में मदद करती है। स्टीम की प्रक्रिया में सिर्फ सामान्य पानी को गर्म करके उसकी भाप को नाक और मुंह से अंदर खींचा जाता है। हम खुद को स्टीमर समेत टावल या कंबल से ढक लें। सिर्फ सामान्य पानी को अच्छी तरह से उबालने (5 मिनट उबालना) के बाद स्टीम अंदर खींचने से फायदा होता है। एक बार में 5 से 7 मिनट तक स्टीम करना काफी है। पानी में कुछ भी न मिलाएं। किसी भी तरह की दवा या कैप्सूल या नमक की ज़रूरत नहीं होती। एक दिन में 2-3 बार स्टीम करना सही रहता है। बच्चों (12 साल से कम उम्र) को स्टीम न दें तो बेहतर है। उनके जलने का खतरा रहता है।
मास्क
अगर पलूशन बढ़ने से एलर्जी के मामले बढ़ते हैं, जैसे सांस लेने में परेशानी, छींक आए, सिर दर्द हो तो मास्क लगाने से कुछ राहत मिल सकती है। लेकिन यह ज़रूरी नहीं कि कोई महंगा मास्क ही लगाएं।
...तब इनहेलर को न भूलें
सांस से जुड़ी बीमारी होने के कारण अस्थमा के मरीजों को साफ हवा की दरकार ज्यादा होती है। इसलिए यह जरूरी है कि वे इनहेलर हमेशा अपने साथ रखें। यहां तक कि परेशानी ज्यादा हो तो बाथरूम में भी इसे ले जाना न भूलें।
क्यों परेशान करती है एलर्जी?
एलर्जी वैसे तो कई तरह की परेशानियों के समूह या लक्षणों को कह सकते हैं, लेकिन असल में यह हमारे शरीर के इम्यून सिस्टम का उठाया हुआ एक कदम है। अगर हमारे शरीर में कोई भी बाहरी चीज़ या कण अंदर जाता है तो शरीर उसे तुरंत बाहर की ओर धकेल देता है। इन चीजों में धूल, पौधों से निकलने वाला परागण, दवा, खाने की कोई खास चीज़, कीड़े का डंक, गंध, वायरस, बैक्टीरिया आदि। ऐसे में एलर्जी के लक्षण उभरते हैं। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि जब किसी की आंख में कोई कीड़ा चला जाए तो आंखों से पानी बहने लगता है, आंखें लाल हो जाती हैं और पानी के साथ वह भी बाहर निकल जाता है।
जब ऐसी चीज़ें अंदरूनी स्तर पर हों तो शरीर उसे खतरनाक समझकर एक केमिकल हिस्टामिन निकालता है। यह शरीर की भीतरी सुरक्षा के लिए होता है। अगर किसी बाहरी तत्व की वजह से ट्रेकिया में सूजन आ जाए तो शरीर चाहता है कि सूजन जल्दी ठीक हो, इसलिए सूखी खांसी हो जाती है। हिस्टामिन के असर को कम करने के लिए अक्सर कफ सिरप, दवा (ऐंटिहिस्टामिन) आदि लेते हैं, ताकि खांसी कम हो सके। वैसे इन सबसे ज्यादा फायदा नहीं होता।
आंतरिक सूजन
एलर्जी की वजह से एक या कई तरह के लक्षण उभर सकते हैं। इससे हमारी सांसें यानी श्वसन तंत्र, त्वचा, आंखें आदि प्रभावित हो सकती हैं। इसलिए लक्षण भी प्रभावित अंगों के अनुसार ही उभरते हैं। जब शरीर में फ्री-रेडिकल्स की संख्या ज्यादा बढ़ जाती है और ऐंटिऑक्सिडेंट्स की संख्या कम हो जाती है तो शरीर के भीतरी अंगों में इन्फ्लेमेशन यानी सूजन होने लगती है। वे अंग पूरी क्षमता से काम नहीं कर पाते।
ये हो सकते हैं लक्षण
रुक-रुक कर छींकें आना या लगातार छीकें आना, नाक से पानी बहना या नाक का बंद होना, गले में खराश या खुजली, आंखों में पानी, थकान या सिरदर्द, हल्का बुखार जैसा महसूस होना, सांस लेने में तकलीफ, सीने में जकड़न, खांसी रात में बढ़ती हो, खुजली या जलन, लाल चकत्ते या दाने आदि।
एलर्जी या खांसी होने के बाद डॉक्टर के पास कब जाएं?
सामान्य खांसी, हल्का बुखार, सिर दर्द आदि सामान्य मामलों को घर पर रहकर भी ठीक किया जा सकता है। घरेलू नुस्खों की मदद ली जा सकती है। लेकिन कुछ परिस्थितियां ऐसी भी बन सकती हैं जब किसी डॉक्टर के पास या अस्पताल में जाना जाना ज़रूरी हो जाता है:-
- अगर अस्थमा है तो थोड़ी खांसी होने पर भी एक बार डॉक्टर से ज़रूर मिलें।
- अगर सांसों से जुड़ी कोई दूसरी बीमारी है तो भी किसी भी तरह की एलर्जी के लक्षणों को हल्के में नहीं लेना चाहिए।
- जब खांसी के साथ तेज बुखार आए (101 डिग्री फारेनहाइट से ज्यादा)।
- बच्चा बेचैन हो और सामान्य रूप से व्यवहार न कर रहा हो। साथ ही उसे बार-बार बुखार आ रहा हो।
- सांस लेने या बोलने में दिक्कत हो।
- जीभ/चेहरे पर सूजन आ जाए।
- बच्चे को बहुत तेज खांसी हो या फिर सीने से सीटी जैसी आवाज़ सुनाई दे।
- स्किन पर लगातार दाने या खुजली हो।
- एलर्जी बार-बार लौटती रहे।
डॉक्टर से पूछे बिना कफ सिरप लेने के नुकसान
एक बार जब खांसी होने लगती है तो हमें लगता है कि यह किसी भी तरह रुक हो जाए। ऐसे में सबसे आसान और सहज इलाज लगता है कफ सिरप देना। पर इस बात को समझ लें कि कुछ मामलों में ही कफ सिरप देने की ज़रूरत होती है, ज्यादातर मामलों में तो इसकी ज़रूरत ही नहीं होती। नाक, नाक के सुराख, नेजल कैविटी, साइनस, गला (फैरिंक्स), टॉन्सिल, लेरिंक्स (वॉइस बॉक्स) आदि में सूजन हो जाए तो इसे अपर ट्रैक्ट इन्फेक्शन कहते हैं, वहीं अगर इन्फेक्शन फेफड़ों, ब्रांकाई आदि में हो तो यह लोअर ट्रैक्ट इन्फेक्शन है। इनमें से किसी भी अंग में सूजन की वजह से खांसी हो सकती है। लेकिन दोनों परिस्थितियों में अलग-अलग तरह की खांसी होती है। एक में सूखी खांसी तो दूसरे में गीली खांसी। इसलिए कफ सिरप भी अलग-अलग तरह का दिया जाता है। कफ सिरप का चुनाव डॉक्टर करें तो बढ़िया।
कभी सूखी तो कभी गीली खांसी क्यों होती है ?
जब शरीर के अंदर डस्ट, वायरस आदि पहुंचता है तो हमारा इम्यून सिस्टम ऐक्टिवेट हो जाता है। कोई स्राव (बलगम) नहीं होता है तो खांसी सूखी होती है। वहीं, जब शरीर सांस की नली या फेफड़ों पर चिपके डस्ट, वायरस आदि को हटाने के लिए स्राव निकालता है तो गीली खांसी।
आयुर्वेद से दूर करें परेशानी
आयुर्वेद में खांसी (कास) 5 तरह की होती है: वातज, पित्त, कफज, क्षयज और क्षतज। आयुर्वेद के अनुसार इनका इलाज और औषधियां भी अलग-अलग होती हैं। सच तो यह है कि आयुर्वेद में कई औषधीय कल्प हैं जैसे वासावलेह, व्याघ्री हरीतकी, चित्रक हरीतकी आदि। ये सब अलग-अलग प्रकार की खांसी में फायदेमंद हैं, लेकिन इनके सेवन से पहले अपने आयुर्वेदिक चिकित्सक से सलाह ज़रूर लें। नीचे कुछ विकल्प दिए जा रहे हैं जिन्हें अपना सकते हैं:
सुबह उठने पर क्या करें
- सुबह टूथपेस्ट-ब्रश की जगह नीम की दातुन इस्तेमाल करना सही है।
- दिन में किसी भी समय 20 से 25ml तिल या नारियल का तेल मुंह में भर लें और 2 से 5 मिनट तक रखे रहें। फिर कुल्ला करके फेंक दें। इस क्रिया को गण्डूष कहते हैं।
- 50 ml सरसों के तेल में 2 चुटकी नमक मिलाकर 2 मिनट तक गर्म कर लें। सीने पर हल्के हाथों से अच्छी तरह मालिश करें।
- गुनगुना पानी पिएं। दिनभर में 2-3 लीटर।
- गला खराब होने पर गरारे करें। गरारे करने के लिए एक गिलास पानी में आधा चम्मच सेंधा नमक मिला लें। -एसिडिटी होने पर सेंधा नमक से गरारे करने से फायदा होता है। गुनगुने पानी में फिटकरी मिलाकर भी गरारे कर सकते हैं।
नस्य है फायदेमंद
यह विशेष रूप से नाक से औषधियों (तिल का तेल, जटामांसी, इलायची आदि) या तेलों को सांस के ज़रिये ग्रहण करने की प्रक्रिया है। यह सिरदर्द, साइनस और दूसरी नाक से जुड़ी परेशानियों के इलाज में भी उपयोगी है। इसके लिए अपनी उंगली पर तिल या अणु तेल की 2 बूंद लेकर नाक के दोनों सुराखों में डालने से फायदा होता है।
नवजात की मालिश/अभ्यंग करें
हल्के हाथ से की जाने वाली यह तेल मालिश नवजात शिशुओं को फायदा देती है। उनकी इम्युनिटी बढ़ाने और शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मददगार होती है, साथ ही त्वचा को पोषण देती है। इससे बच्चों की ग्रोथ सही बनी रहता है। आजकल भी बहुत-सी जगहों पर नवजात शिशुओं का रोजाना अभ्यंग होता ही है।
बच्चों की खांसी: अदरक का रस (दो बूंद)+शहद (आधा चम्मच)। इससे गले की खिच-खिच, दर्द और खांसी में राहत मिलती है।
बड़ों की खांसी (सूखी खांसी के लिए):
- त्रिकटु चूर्ण (सौंठ+काली मिर्च+पिप्पली) को देसी घी में भूनकर उसमें गुड़ और थोड़ा-सा पानी डालकर कढ़ाई में पका लें। जब वह गोलियां बनाने लायक सूख जाए तो चने के साइज़ की गोलियां बना लें। इसे दिनभर में 5-6 बार चूस लें।
- किसी को भी कफ के साथ खांसी आए तो ये तरीके आज़माएं-अदरक का रस (1-2 बूंद)+तुलसी का रस बराबर मात्रा में लेकर उसमे शहद मिलाकर चाटने के लिए दें। दिनभर में 5-6 बार लें।
- गले में दर्द हो और गला बैठ गया तो एक गिलास गुनगुने पानी में आधा चम्मच हल्दी पाउडर और थोड़ा-सा सेंधा नमक और आधा चम्मच देसी घी मिलाकर सुबह-शाम गरारे करने से फायदा होता है। दिन में 2 से 3 बार गरारे कर सकते हैं।
- जुकाम, खांसी हो और भूख न लग रही हो तो 2 ग्राम तालीसादि चूर्ण और शहद मिलाकर हर 2 घंटे पर चटाने से फायदा होता है।
- खांसी हो, लेकिन कफ न निकले तो अडूसा (वासा) के पत्ते का रस 2-3ml+आधा चुटकी सेंधा नमक+शहद (आधा चम्मच) मिलाकर दिनभर में 3 से 4 बार चाटने से फायदा होगा।
- अगर खांसी कफ के साथ हो तो कच्चे अमरूद को आग पर भूनकर खाने के लिए दें, इससे खांसी और कफ दोनों में राहत मिलेगी।
- गले में दर्द हो और खांसी भी हो तो काली मिर्च और मिश्री का पीसकर (1:4 के अनुपात में) सेवन करें।
- ऐसे बनाएं काढ़ा (एक व्यक्ति के लिए)पानी: 60 से 70 ml (1 कप) तुलसी के पत्ते: 3, लौंग: 1, काली मिर्च: 1, दालचीनी: एक चुटकी पाउडर, सेंधा नमक: एक चुटकी। इसे उबालें, जब पानी आधा कप रह जाए तो चाय की तरह पी लें।
होम्योपैथी में एलर्जी से लड़ने के कई ऑप्शंस
1. Allium Cepa (एलियम सेपा): अगर सर्दी-जुकाम जैसी एलर्जी है। नाक से लगातार पानी बहता है तो यह दवा बहुत असरदार है।
2. Arsenicum Album (आर्सेनिकम एल्बम): यह दवा सांस की एलर्जी या अस्थमा जैसी स्थिति में दी जाती है। मरीज को सांस लेने में तकलीफ होती है, खासकर रात में या ठंडी हवा लगने पर। नाक बंद रहती है, बेचैनी महसूस होती है और शरीर में कमजोरी आती है।
3. Pulsatilla (पल्सेटिला): यह दवा उन लोगों के लिए है जिन्हें ठंडी हवा या तैलीय खाना खाने से एलर्जी या जुकाम हो जाता है। नाक बंद रहती है और उसमें से पीला या हरा म्यूकस (बलगम) निकलता है। मौसम बदलते ही जुकाम या एलर्जी बार-बार हो जाती है। ठंडी चीजें खाने या पीने से लक्षण और बढ़ जाते हैं।
4. Sulphur (सल्फर): यह दवा पुरानी स्किन एलर्जी या खुजली वाले लोगों के लिए फायदेमंद है। स्किन पर लाल दाने, जलन और खुजली होती है। यह उन लोगों के लिए अच्छी दवा है जिनकी एलर्जी बार-बार वापस आ जाती है।
5. Natrum Muriaticum (नैट्रम म्यूर): यह दवा उन लोगों के लिए उपयोगी है जिन्हें बार-बार छींकें आती हैं और नाक से पानी गिरता है। धूप या गर्मी से उनकी परेशानी बढ़ जाती है। अक्सर होंठ सूखे रहते हैं और एलर्जी के साथ सिरदर्द भी होता है। यह पुराने जुकाम या सीज़नल एलर्जी में बहुत असरदार होती है।
कितना लें: ऊपर लिखी सभी दवाइयां 5-5 गोली सुबह, दोपहर और शाम।
(ऊपर लिखी दवाओं में से कोई एक दवा को जरूरत पड़ने पर हर कोई ले सकता है। ध्यान रखें कि हर इंसान पर दवा का असर अलग-अलग होता है, इसलिए दवा डॉक्टर की सलाह से ही लें।)
यूनानी चिकित्सा में उपाय
जब मौसम अचानक गर्मी से सर्दी या बरसात से ठंड में बदलता है तो रोग-प्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ जाती है। यूनानी मत के अनुसार यह स्थिति शरीर के चार रसों या 'अखलात'- दम, बलगम, सफ़रा और सुदा के असंतुलन से जुड़ी होती है।
बच्चों के लिए प्राकृतिक उपचार और औषधियां
सर्दी-जुकाम में: जोशांदा, खमीरा बनफ्शा, शरबत उन्नाब
खांसी में: शरबत तूत सियाह, खमीरा गौजबान अंबरी जवाहर वाला, लऊक सपिस्तान ख्यार शंबरी आदि दिए जा सकते हैं।
इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए: खमीरा अबरेशम, दवा-उल-मिस्क, जवारिश जालीनूस दी जा सकती है।
खानपान और देखभाल
यूनानी मत में कहा गया है कि 'सही आहार ही सबसे बड़ी दवा है।' बच्चों के लिए हल्का, पौष्टिक और मिजाज के अनुरूप भोजन जैसे दलिया, मूंग की खिचड़ी, गर्म दूध और मौसमी फल सबसे उपयुक्त हैं। ठंडे पेय, आइसक्रीम और तले-भुने भोजन से परहेज़ करें। हल्की मालिश (दलक), नियमित नींद और स्वच्छ वातावरण भी बच्चे को मौसम के प्रभाव से बचाते हैं।
एक्सपर्ट पैनल
-डॉ. प्रदीप देवता, प्रफेसर एंड HOD पीडियट्रिक्स, सफदरजंग अस्पताल
-डॉ. महेश व्यास, डीन, ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ आयुर्वेद
-डॉ. अंशुल वार्ष्णेय, सीनियर कंसल्टेंट, फिजिशन
-डॉ. नीतू जैन, सीनियर कंसल्टेंट, पल्मोनलॉजी एंड क्रिटकल केयर, PSRI हॉस्पि.
-डॉ. खुर्शीद अहमद अंसारी, विभागाध्यक्ष, प्रो. शरीर रचना विज्ञान, जामिया हमदर्द
-डॉ. आनन्द पांडेय, मुख्य चिकित्सक, गंगा आयुर्वेदिक चिकित्सालय
-डॉ. सुशील वत्स, सीनियर होम्योपैथ
-डॉ. मीना तान्दले, वरिष्ठ आयुर्वेदाचार्य, उत्तरांचल आयुर्वेदिक हॉस्पिटल
डिस्क्लेमर: यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है। एनबीटी इसकी सत्यता, सटीकता और असर की जिम्मेदारी नहीं लेता है। यह किसी भी तरह से किसी दवा या इलाज का विकल्प नहीं हो सकता। ज्यादा जानकारी के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
You may also like

ये हैं देश के तीन सबसे ज्यादा नक्सल प्रभावित जिले, देखें लिस्ट में किसका है नाम, यहां जवानों का बड़ा ऑपरेशन

Naagin 7: प्रियंका चाहर चौधरी हैं एकता कपूर की अगली नागिन, सलमान खान भी देखकर शॉक्ड, अंकित गुप्ता का पूछा हाल

देव दीपावली: काशी में झिलमिलाएंगे दस लाख दीप, अध्यात्म, संस्कृति और रोशनी का दिखेगा अनूठा संगम

नकली शराब का एपिक सेंटर बोकारो! ऑडी, सफारी और एंडेवर जैसी लग्जरी कारों से बिहार में सप्लाई

Greater Afghanistan Map: तालिबान ने लॉन्च किया ग्रेटर अफगानिस्तान का नक्शा, पाकिस्तान के कई हिस्से शामिल, बोला- लाहौर तक फहराएंगे झंडा




