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भारतीय फुटबॉल पर बड़ा संकट, ISL के लिए फाइनेंसर नहीं तलाश पाया AIFF, प्लेयर्स और क्लब भी मुश्किल में

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गोवा: भारतीय फुटबॉल के सामने उसका सबसे बड़ा संकट खड़ा हो गया है। ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन ( AIFF ) अपनी प्रीमियम टूर्नामेंट इंडियन सुपर लीग ( ISL ) के लिए कॉमर्शियल पार्टनर तलाशने में फेल हो गया है। एआईएफएफ ने ISL के लिए रिक्वे्सट फॉर प्रपोजल जमा कराने के लिए शुक्रवार (7 नवंबर) की तारीख तय की थी, लेकिन नेशनल फेडरेशन के ऑफर पर किसी ने भी बोली जमा नहीं की है। इससे देश की इस टॉप फुटबॉल लीग के फ्यूचर पर संकट खड़ा हो गया है। एआईएफएफ को टूर्नामेंट का फंड जुटाने के लिए दूसरे तरीके से इन्वेस्टर तलाशने पर सोचना शुरू कर दिया है, क्योंकि मौजूदा कॉमर्शियल राइट्स होल्डर फुटबॉल स्पोर्ट्स डेवलपमेंट लिमिटेड ( FSDL ) का कांट्रेक्ट 8 दिसंबर को खत्म होने जा रहा है और इसमें एक महीने से भी कम समय बचा हुआ है। Reliance समूह की कंपनी FSDL ने भी इस कॉन्ट्रेक्ट को आगे बढ़ाने में दिलचस्पी दिखाई थी, लेकिन फिर पीछे हट गई। इससे भारतीय फुटबॉल क्लबों और खिलाड़ियों के लिए भी संकट पैदा हो गया है, जिन्हें मोटा आर्थिक झटका लग सकता है।

अक्तूबर में जारी किया था टेंडरएआईएफएफ को सुप्रीम कोर्ट से नए संविधान के लिए सितंबर में हरी झंडी मिली थी। इसके बाद अक्तूबर में फेडरेशन ने टेंडर जारी किया था, जिसमें अगले 15 साल के लिए ISL का कॉमर्शियल पार्टनर बनने के लिए RFP मांगा गया था। इसके बाद FanCode, RAAK Group और स्लोवेकिया में बिजनेस वाले मोनाको स्थित बिजनेस समूह समेत कुछ कंपनियों ने दिलचस्पी भी दिखाई थी और कुछ जानकारियां भी फेडरेशन से मांगी थी। पिछले महीने के अंत में फेडरेशन ने सारे सवालों का जवाब भी दे दिया था, लेकिन इसके बावजूद एआईएफएफ को कोई बोलीदाता नहीं मिला। फेडरेशन ने आईएसएल के प्रॉडक्शन, मार्केटिंग और ब्रॉडकास्टिंग राइट्स समेत अन्य सुविधाओं के अलावा 37.5 करोड़ रुपये या रेवेन्यू में 5% हिस्से में से जो ज्यादा हो, वो हर साल फेडरेशन को देने की मांग रखी थी, लेकिन किसी ने भी इस कीमत पर बोली नहीं लगाई है। एआईएफएफ ने एक बयान में इसकी जानकारी दी है। साथ ही कहा है कि अब बिड इवेल्यूएशन कमेटी रिव्यू करने के बाद आगे का कदम तय करेगी, जिसकी अध्यक्षता जस्टिस एलएन राव कर रहे हैं। इस कमेटी में एआईएफएफ अध्यक्ष कल्याण चौबे भी मेंबर हैं।

एआईएफएफ अपने पास रखना चाहता है पॉवरटाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में एक अधिकारी के हवाले से कहा गया है कि फेडरेशन लीग का सारा कंट्रोल अपने पास रखना चाहता है, जबकि फाइनेंसर से उम्मीद कर रहा है कि वो सारा वित्तीय बोझ उठाए। इसके लिए एक गवर्निंग काउंसिल का गठन किया जाएगा, जिसमें छह प्रतिनिधि होंगे। इनमें दो एआईएफएफ की तरफ से होंगे और उनके पास वीटो वोट होगा, जबकि उसके मार्केटिंग पार्टनर यानी फाइनेंसर के पास केवल एक वीटो वोट होगा यानी फेडरेशन के ही सारे फैसले काउंसिल में चलेंगे। अधिकारी ने कहा,'एआईएफएफ सब तरह का संचालन कंट्रोल करना चाहता है। इसमें विज्ञापनों पर कंट्रोल भी शामिल है। ऐसी व्यवस्था में कौन इन्वेस्टमेंट के लिए आगे आएगा।' लीग के इस सीजन की शुरुआत 13 सितंबर से होनी थी, लेकिन इसे टालकर दिसंबर में किया गया। इससे यह भी संशय पैदा हो गया है कि क्या कॉन्टिनेंटल लाइसेंस के लिए घरेलू और दूसरे वेन्यू पर कुल 24 लीग मैच कराने की अनिवार्य शर्त को पूरा करने का पर्याप्त समय मिल पाएगा।

क्लबों और खिलाड़ियों पर आएगा संकटक्लबों के सामने पैसे की कमी हो सकती है, जिसके चलते उन्होंने खिलाड़ियों के वेतन और अन्य भुगतान में देरी करनी शुरू कर दी है। इसके अलावा उन्हें और भी कटौती करनी पड़ सकती है, जिसका सीधा असर खिलाड़ियों पर पड़ेगा। खिलाड़ियों की छंटनी भी शुरू की जा सकती है। क्लबों और खिलाड़ियों के अलावा भारतीय फुटबॉल की तैयारियों पर भी असर पड़ सकता है। ऐसा उस समय हो रहा है, जब भारत की तीन महिला टीमें अंडर-17, अंडर-20 और सीनियर वर्ग में पहली बार महाद्वीपीय चैंपियनशिप के लिए क्वालीफाई कर रही हैं। इसके अलावा भारतीय महिला लीग (IWL) पर भी संकट पैदा होगा।
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