पटना: बिहार के विधानसभा चुनाव के लिए पहले चरण का मतदान 6 नवंबर को है। चुनाव की तारीखों के ऐलान के पहले से ही कई न्यूज चैनलों, वेबसाइटों और समाचार एजेंसियों ने ओपिनियन पोल जारी करना शुरू कर दिया था। यह सिलसिला पहले चरण के चुनाव के लिए प्रचार की समय सीमा समाप्त होने तक चला। अब तक ओपिनियन पोल (जनमत सर्वेक्षण) आते रहे अब चुनाव के दोनों चरण संपन्न होने के बाद एग्जिट पोल (मतदान पश्चात पूर्वानुमान) सामने आएंगे। सवाल यह है कि चुनावी घमासान के बीच सुर्खियां बटोरने वाले ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल में क्या अंतर होता है?
बिहार में विधानसभा चुनाव के पहले चरण का प्रचार थम गया है। अब 6 नवंबर को 121 सीटों पर मतदान होगा। इसके बाद दूसरे और अंतिम चरण के लिए प्रचार चलेगा और 11 नवंबर को 122 सीटों पर मतदान के साथ चुनाव संपन्न हो जाएगा। इसके तुरंत बाद एग्जिट पोल आने लगेंगे जिसमें आने वाले चुनाव परिणामों के पूर्वानुमान लगाए जाएंगे। मतगणना 14 नवंबर को होगी और इसके साथ ही नतीजे सामने आ जाएंगे।
चुनाव के नतीजों से पहले एग्जिट पोल नतीजों से पहले एग्जिट पोल सामने आएंगे, जिनमें यह अनुमान लगाया जाएगा कि कौन सी पार्टी कितनी सीटें जीत सकती है और सरकार का स्वरूप क्या हो सकता है? कई बार एग्जिट पोल के नतीजे और मतगणना के बाद आने वाले नतीजों में काफी हद तक समानता होती है। लेकिन कभी-कभी पूर्वानुमान गलत भी साबित होते हैं। यही कारण है कि एग्जिट पोल पर पूरा भरोसा नहीं किया जा सकता है। एग्जिट पोल ही नहीं चुनावी घमासान के बीच आने वाले ओपिनियन पोल भी चर्चा में रहते हैं। ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल में अंतर होता है।
एग्जिट पोल एक तरह का मतदान पश्चात सर्वे है जो वोटिंग पूरी होने के बाद किया जाता है। इसमें वोटिंग करके बाहर आने वाले मतदाताओं से पूछा जाता है कि उन्होंने किस पार्टी या उम्मीदवार को वोट दिया है। इससे प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद यह अनुमान लगाया जाता है कि चुनाव के नतीजे क्या हो सकते हैं। चुनाव आयोग की ओर से घोषित नियमों के मुताबिक एग्जिट पोल के अनुमान सभी चरणों का मतदान पूरा होने से पहले प्रसारित नहीं किए जा सकते हैं। इसका मतलब है बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण की वोटिंग संपन्न होने के बाद ही, यानी 11 नवंबर को शाम 6.30 के बाद ही एग्जिट पोल के अनुमान प्रसारित किए जा सकेंगे।
चुनाव से पहले ओपिनियन पोलओपिनियन पोल यानी जनमत सर्वेक्षण सरकार और राजनीतिक दलों को लेकर जनता की राय जानने के लिए चुनाव से पहले किया जाता है। यह चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले और चुनाव घोषित होने व आदर्श आचार संहिता लगने के बाद भी किए जाते हैं। इसमें मतदान से पहले लोगों की राय ली जाती है। ओपिनियन पोल एक प्री पोल सर्वे होता है। दूसरी तरफ एग्जिट पोल में मतदान के दौरान मतदाताओं की राय ली जाती है और मतदान की प्रक्रिया पूरी होने के बाद इसे जारी किया जाता है।
एग्जिट पोल वोटिंग के दिन किए जाते हैं। चुनाव के जितने भी चरण होंगे, हर चरण में उसमें शामिल विधानसभा सीटों पर सर्वे किया जाता है। इसमें मतदान करने वाले वोटरों से पूछा जाता है कि उन्होंने किस पार्टी या उम्मीदवार को वोट दिया है। अनुमान इससे मिलने वाले आंकड़ों से तय होते हैं। ओपिनियन पोल मतदान से पहले और चुनाव प्रचार की समय सीमा समाप्त होने से पहले किया जाने वाला सर्वेक्षण होता है। इस सर्वेक्षण में सभी लोगों को शामिल किया जा सकता है, भले ही वे वोटर हों या न हों। ओपिनियन पोल में आम तौर पर लोगों से सवाल किया जाता है कि वे किस पार्टी या उम्मीदवार के पक्ष में हैं, या किसे वोट देना चाहेंगे। राजनीतिक दलों और आम लोगों के लिए भी एग्जिट पोल और ओपिनियन पोल महत्वपूर्ण होते हैं।
ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल में यह है अंतरओपिनियन पोल के लिए लंबी समय अवधि होती है। यह चुनाव से महीनों पहले से लेकर चुनाव की घोषणा और मतदान के पहले तक होते हैं। समय-समय पर होने वाले ओपिनियन पोल में जनता की राय में बदलाव भी देखा जा सकता है। जबकि एग्जिट पोल सिर्फ मतदान के दौरान ही होते हैं। यानी चुनाव के दौरान राज्य की सभी सीटों पर मतदान होने के बाद समग्र आंकड़े का विश्लेषण किया जाता है और उसी के आधार पर अनुमान घोषित किए जाते हैं। हालांकि एग्जिट पोल हमेशा सटीक नहीं होते, क्योंकि यह जरूरी नहीं होता कि सभी मतदाता यह सच बताएं कि उन्होंने किसे वोट दिया है। ओपिनियन पोल भी पूरी तरह सटीक नहीं होते हैं। चुनाव से पहले लोगों की राय बदल सकती है।
ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल दोनों चुनाव से जुड़े अहम सर्वेक्षण होते हैं लेकिन दोनों का उद्देश्य अलग होता है। ओपिनियन पोल चुनाव से पहले जनता का रुझान जानने के लिए किया जाता है, जबकि एग्जिट पोल वोटिंग के बाद जनता के फैसले का अनुमान लगाने के लिए किया जाता है। वास्तविकता तो वोटों की गिनती के बाद ही पता चलती है। एग्जिट पोल परिणाम आने से पहले लोगों का सबसे ज्यादा ध्यान खींचते हैं।
बिहार में विधानसभा चुनाव के पहले चरण का प्रचार थम गया है। अब 6 नवंबर को 121 सीटों पर मतदान होगा। इसके बाद दूसरे और अंतिम चरण के लिए प्रचार चलेगा और 11 नवंबर को 122 सीटों पर मतदान के साथ चुनाव संपन्न हो जाएगा। इसके तुरंत बाद एग्जिट पोल आने लगेंगे जिसमें आने वाले चुनाव परिणामों के पूर्वानुमान लगाए जाएंगे। मतगणना 14 नवंबर को होगी और इसके साथ ही नतीजे सामने आ जाएंगे।
चुनाव के नतीजों से पहले एग्जिट पोल नतीजों से पहले एग्जिट पोल सामने आएंगे, जिनमें यह अनुमान लगाया जाएगा कि कौन सी पार्टी कितनी सीटें जीत सकती है और सरकार का स्वरूप क्या हो सकता है? कई बार एग्जिट पोल के नतीजे और मतगणना के बाद आने वाले नतीजों में काफी हद तक समानता होती है। लेकिन कभी-कभी पूर्वानुमान गलत भी साबित होते हैं। यही कारण है कि एग्जिट पोल पर पूरा भरोसा नहीं किया जा सकता है। एग्जिट पोल ही नहीं चुनावी घमासान के बीच आने वाले ओपिनियन पोल भी चर्चा में रहते हैं। ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल में अंतर होता है।
एग्जिट पोल एक तरह का मतदान पश्चात सर्वे है जो वोटिंग पूरी होने के बाद किया जाता है। इसमें वोटिंग करके बाहर आने वाले मतदाताओं से पूछा जाता है कि उन्होंने किस पार्टी या उम्मीदवार को वोट दिया है। इससे प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद यह अनुमान लगाया जाता है कि चुनाव के नतीजे क्या हो सकते हैं। चुनाव आयोग की ओर से घोषित नियमों के मुताबिक एग्जिट पोल के अनुमान सभी चरणों का मतदान पूरा होने से पहले प्रसारित नहीं किए जा सकते हैं। इसका मतलब है बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण की वोटिंग संपन्न होने के बाद ही, यानी 11 नवंबर को शाम 6.30 के बाद ही एग्जिट पोल के अनुमान प्रसारित किए जा सकेंगे।
चुनाव से पहले ओपिनियन पोलओपिनियन पोल यानी जनमत सर्वेक्षण सरकार और राजनीतिक दलों को लेकर जनता की राय जानने के लिए चुनाव से पहले किया जाता है। यह चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले और चुनाव घोषित होने व आदर्श आचार संहिता लगने के बाद भी किए जाते हैं। इसमें मतदान से पहले लोगों की राय ली जाती है। ओपिनियन पोल एक प्री पोल सर्वे होता है। दूसरी तरफ एग्जिट पोल में मतदान के दौरान मतदाताओं की राय ली जाती है और मतदान की प्रक्रिया पूरी होने के बाद इसे जारी किया जाता है।
एग्जिट पोल वोटिंग के दिन किए जाते हैं। चुनाव के जितने भी चरण होंगे, हर चरण में उसमें शामिल विधानसभा सीटों पर सर्वे किया जाता है। इसमें मतदान करने वाले वोटरों से पूछा जाता है कि उन्होंने किस पार्टी या उम्मीदवार को वोट दिया है। अनुमान इससे मिलने वाले आंकड़ों से तय होते हैं। ओपिनियन पोल मतदान से पहले और चुनाव प्रचार की समय सीमा समाप्त होने से पहले किया जाने वाला सर्वेक्षण होता है। इस सर्वेक्षण में सभी लोगों को शामिल किया जा सकता है, भले ही वे वोटर हों या न हों। ओपिनियन पोल में आम तौर पर लोगों से सवाल किया जाता है कि वे किस पार्टी या उम्मीदवार के पक्ष में हैं, या किसे वोट देना चाहेंगे। राजनीतिक दलों और आम लोगों के लिए भी एग्जिट पोल और ओपिनियन पोल महत्वपूर्ण होते हैं।
ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल में यह है अंतरओपिनियन पोल के लिए लंबी समय अवधि होती है। यह चुनाव से महीनों पहले से लेकर चुनाव की घोषणा और मतदान के पहले तक होते हैं। समय-समय पर होने वाले ओपिनियन पोल में जनता की राय में बदलाव भी देखा जा सकता है। जबकि एग्जिट पोल सिर्फ मतदान के दौरान ही होते हैं। यानी चुनाव के दौरान राज्य की सभी सीटों पर मतदान होने के बाद समग्र आंकड़े का विश्लेषण किया जाता है और उसी के आधार पर अनुमान घोषित किए जाते हैं। हालांकि एग्जिट पोल हमेशा सटीक नहीं होते, क्योंकि यह जरूरी नहीं होता कि सभी मतदाता यह सच बताएं कि उन्होंने किसे वोट दिया है। ओपिनियन पोल भी पूरी तरह सटीक नहीं होते हैं। चुनाव से पहले लोगों की राय बदल सकती है।
ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल दोनों चुनाव से जुड़े अहम सर्वेक्षण होते हैं लेकिन दोनों का उद्देश्य अलग होता है। ओपिनियन पोल चुनाव से पहले जनता का रुझान जानने के लिए किया जाता है, जबकि एग्जिट पोल वोटिंग के बाद जनता के फैसले का अनुमान लगाने के लिए किया जाता है। वास्तविकता तो वोटों की गिनती के बाद ही पता चलती है। एग्जिट पोल परिणाम आने से पहले लोगों का सबसे ज्यादा ध्यान खींचते हैं।
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