Study Abroad Tips: विदेश में पढ़ने का ख्याल मन में आते ही लोगों को लगता है कि जिसके अच्छे नंबर्स होते हैं, सिर्फ उन्हें ही एडमिशन मिल पाता है। स्टूडेंट्स को लगता है कि अगर उनके नंबर कम हैं, तो फिर उनके लिए विदेशी यूनिवर्सिटीज के दरवाजे बंद हो चुके हैं। हालांकि, ऐसा बिल्कुल भी नहीं है, क्योंकि ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा की यूनिवर्सिटीज स्टूडेंट्स के नंबर से ज्यादा चीजें देखती हैं। वे स्टूडेंट की पढ़ने और कामयाब होने की इच्छा, सुधार और ओवरऑल प्रोफाइल के आधार पर एडमिशन देती हैं।
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यूनिवर्सिटीज एडमिशन के समय ये जानने में दिलचस्पी रखती हैं कि स्टूडेंट कौन है, उसने अपने जीवन में क्या हासिल किया है और वह आगे क्या करना चाहते हैं? उन्हें नंबरों से परे की चीजों में ज्यादा दिलचस्पी होती हैं। यही वजह है कि स्टूडेंट्स के पास कम नंबर होते हुए भी विदेश में पढ़ने का ऑप्शन रहता है। आइए आज आपको बताते हैं किस तरह कम नंबर होने के बाद भी विदेश में हायर एजुकेशन हासिल की जा सकती है। इसके लिए कौन-कौन से रास्ते मौजूद हैं।
फाउंडेशन और पाथवे प्रोग्राम
जिन स्टूडेंट्स के स्कूल में नंबर कम हैं, वे फाउंडेशन और पाथवे प्रोग्राम की पढ़ाई कर सकते हैं। ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप में उपलब्ध ये प्रारंभिक कोर्सेज छात्रों को गैप को पाटने और इंटरनेशनल एजुकेशन सिस्टम के अनुकूल बनने में मदद करते हैं। एक फाउंडेशन प्रोग्राम मुख्य डिग्री से पहले करना होता है, जिससे आपको एक साल एक्स्ट्रा पढ़ने का मौका मिलता है। फाउंडेशन प्रोग्राम से आपकी जानकारी और आत्मविश्वास दोनों बढ़ता है। पाथवे प्रोग्राम मुख्य डिग्री के साथ ही किया जाता है।
प्री-मास्टर प्रोग्राम
अगर आपके बैचलर्स में अच्छे नंबर्स नहीं हैं, तो फिर आपको प्री-मास्टर प्रोग्राम के बारे में विचार करना चाहिए। ये शॉर्ट कोर्स स्टूडेंट्स को मास्टर लेवल के काम के लिए तैयार करता है और इन्हें दुनियाभर की यूनिवर्सिटीज में स्वीकार किया जाता है। प्री-मास्टर प्रोग्राम मुख्य मास्टर कोर्स के बीच एक पुल का काम करता है। अगर आप इसमें अच्छा प्रदर्शन करते हैं, तो फिर इस आधार पर आपको किसी भी प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी में एडमिशन मिल सकता है।
टेस्ट स्कोर और रिकमेंडेशन लेटर
बहुत से स्टूडेंट्स भले ही पढ़ाई में कमजोर हों, लेकिन अगर वे SAT, GRE या GMAT जैसे एग्जाम में अच्छा प्रदर्शन करते हैं, तो फिर उन्हें इस आधार पर एडमिशन मिल जाता है। इसके अलावा अगर आपके लिए कोई अच्छा रिकमेंडेशन लेटर भी लिख देता है, तो उसके आधार पर भी आपको एडमिशन मिल सकता है। रिकमेंडेशन लेटर में इस बात का जिक्र किया जाता है कि आप किस तरह के स्टूडेंट हैं और आपने अभी तक किन उपलब्धियों को हासिल किया है।
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यूनिवर्सिटीज एडमिशन के समय ये जानने में दिलचस्पी रखती हैं कि स्टूडेंट कौन है, उसने अपने जीवन में क्या हासिल किया है और वह आगे क्या करना चाहते हैं? उन्हें नंबरों से परे की चीजों में ज्यादा दिलचस्पी होती हैं। यही वजह है कि स्टूडेंट्स के पास कम नंबर होते हुए भी विदेश में पढ़ने का ऑप्शन रहता है। आइए आज आपको बताते हैं किस तरह कम नंबर होने के बाद भी विदेश में हायर एजुकेशन हासिल की जा सकती है। इसके लिए कौन-कौन से रास्ते मौजूद हैं।
फाउंडेशन और पाथवे प्रोग्राम
जिन स्टूडेंट्स के स्कूल में नंबर कम हैं, वे फाउंडेशन और पाथवे प्रोग्राम की पढ़ाई कर सकते हैं। ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप में उपलब्ध ये प्रारंभिक कोर्सेज छात्रों को गैप को पाटने और इंटरनेशनल एजुकेशन सिस्टम के अनुकूल बनने में मदद करते हैं। एक फाउंडेशन प्रोग्राम मुख्य डिग्री से पहले करना होता है, जिससे आपको एक साल एक्स्ट्रा पढ़ने का मौका मिलता है। फाउंडेशन प्रोग्राम से आपकी जानकारी और आत्मविश्वास दोनों बढ़ता है। पाथवे प्रोग्राम मुख्य डिग्री के साथ ही किया जाता है।
प्री-मास्टर प्रोग्राम
अगर आपके बैचलर्स में अच्छे नंबर्स नहीं हैं, तो फिर आपको प्री-मास्टर प्रोग्राम के बारे में विचार करना चाहिए। ये शॉर्ट कोर्स स्टूडेंट्स को मास्टर लेवल के काम के लिए तैयार करता है और इन्हें दुनियाभर की यूनिवर्सिटीज में स्वीकार किया जाता है। प्री-मास्टर प्रोग्राम मुख्य मास्टर कोर्स के बीच एक पुल का काम करता है। अगर आप इसमें अच्छा प्रदर्शन करते हैं, तो फिर इस आधार पर आपको किसी भी प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी में एडमिशन मिल सकता है।
टेस्ट स्कोर और रिकमेंडेशन लेटर
बहुत से स्टूडेंट्स भले ही पढ़ाई में कमजोर हों, लेकिन अगर वे SAT, GRE या GMAT जैसे एग्जाम में अच्छा प्रदर्शन करते हैं, तो फिर उन्हें इस आधार पर एडमिशन मिल जाता है। इसके अलावा अगर आपके लिए कोई अच्छा रिकमेंडेशन लेटर भी लिख देता है, तो उसके आधार पर भी आपको एडमिशन मिल सकता है। रिकमेंडेशन लेटर में इस बात का जिक्र किया जाता है कि आप किस तरह के स्टूडेंट हैं और आपने अभी तक किन उपलब्धियों को हासिल किया है।
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