देश की सत्ता का हिन्दुत्व अब पर्यावरण में जहर उगलने लगा है – इस विष से जनता बेहाल है और सत्ता वातानुकूलित कमरों में एयर प्युरिफायर के सामने बैठ कर अट्टाहास कर रही है। दिल्ली को वायु प्रदूषण की चपेट में बताने वाले अर्बन नक्सल हैं, देश की छवि बिगाड़ना चाहते हैं। दिल्ली जो गुबार से घिरी है वह तो भगवान का प्रसाद है, हमारे परंपरा का हिस्सा है। हमारे प्रधानमंत्री जी पर्यावरण पर जब भी प्रवचन देते हैं, हमारे देश में पर्यावरण संरक्षण की 5000 वर्षों की परंपरा जरूर बताते हैं, पर्यावरण संरक्षण को लाइफस्टाइल से जोड़ते हैं – और इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए दिल्ली बेहाल हो चुकी है। पोस्टरों पर दिल्ली की मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के मुस्कराते चेहरे दिल्ली को वायु प्रदूषण मुक्त कर रहे हैं। अब कृत्रिम बारिश होने वाली है – एक तरफ तो दिल्ली की मुख्यमंत्री और बड़बोले पर्यावरण मंत्री दिवाली में पटाखों के किसी असर से इनकार कर रहे हैं फिर भी पता नहीं क्यों कृत्रिम बारिश का इंतजार कर रहे हैं।
हमारे देश में सब कृत्रिम हो चला है, यही 5000 वर्षों की परंपरा है। सत्ता को जनता के बारे में कुछ भी पता नहीं है, जनता बस वोट बैंक है, इसके बाद वह मरे या जिए कोई फर्क नहीं पड़ता है। दिवाली के दिन दिल्ली में शोर का स्तर बेतहाशा बढ़ गया था, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार दिल्ली में 26 जगह शोर का आकलन किया गया, जिसमें से 23 मे इसका स्तर किसी भी मानक की तुलना में बहुत अधिक था। अस्पतालों के आसपास का क्षेत्र शोर के संदर्भ में “शांत क्षेत्र” कहलाता है, ऐसे क्षेत्रों में रात के समय शोर का स्तर 40 डेसीबल से अधिक नहीं होना चाहिए। ऐसे क्षेत्रों में दिवाली की रात शोर का स्तर 78 डेसीबल तक पहुंच गया था। दिवाली की रात दिल्ली में शोर का औसत स्तर 88 डेसीबल से अधिक रहा। इस स्तर से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है। सत्ता इस स्वास्थ्य के प्रभाव को भी परंपरा बताती है।
जाहिर है दिवाली की रात शोर बढ़ने का कारण पटाखे थे, यह किसी अनपढ़ को भी पता है। पर, दिल्ली की मुख्यमंत्री और पर्यावरण मंत्री को इसके पीछे का स्पष्ट कारण पता है – पंजाब के किसानों ने दिल्ली को परेशान करने के लिए पराली जलाई। पंजाब के किसानों द्वारा पराली जलाने से दिल्ली में शोर का स्तर बढ़ता गया। यह दिल्लीवालों के खिलाफ साजिश थी। सत्ता ने यह स्पष्ट तौर पर नहीं कहा पर उनकी मंशा यही है। दिल्ली सरकार के अनुसार यहाँ पटाखों का प्रदूषण नहीं था, दिल्ली का अपना कोई प्रदूषण नहीं था बल्कि पंजाब में किसानों ने पराली जलाकर सारा प्रदूषण दिल्ली भेज दिया। अब जब दिल्ली सरकार स्वयं बता रही है कि वायु प्रदूषण पटाखों की देन नहीं है तो जाहिर है शोर भी पराली जलाने से उत्पन्न हुआ होगा। दिल्लीवासियों के खिलाफ ऐसी गहरी साजिश का खुलासा जो कर रहे हैं, उनसे अधिक निर्लज्ज नेता दुनिया के इतिहास ने कभी नहीं रहे होंगें।
ग्रीन पटाखे एक गहरी साजिश है, यह सबको पहले से पता था। इसके साथ जिस नेशनल इन्वाइरन्मेनल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टिट्यूट का नाम जुड़ा है, इस संस्थान का पर्यावरण संरक्षण में आजतक कोई सकारात्मक योगदान नहीं रहा है, बल्कि ध्यान से देखने पर इस संस्थान द्वारा पर्यावरण विनाश की अनेक घटनाएं जुड़ी हैं। इस संस्थान के अनुसार ग्रीन पटाखे 30 प्रतिशत तक कम प्रदूषण फैलाते हैं – यह तथ्य ही बिल्कुल अवैज्ञानिक है, यह जनता, न्यायालय और सरकार को बेवकूफ बनाने की साजिश है। इसका उदाहरण हम सबने इस बार दीवाली के पहले देख लिया।
दिल्ली सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में कहा कि पर्यावरण संरक्षण और दिवाली की परंपरा को ध्यान में रखते हुए ग्रीन पटाखों की इजाजत दी जाए। सर्वोच्च न्यायालय ने जनस्वास्थ्य और उद्योगों के हित में समन्वय की बात करते हुए ग्रीन पटाखों की इजाजत दे दी। नतीजा सबके सामने है, दिल्ली में पिछले पांच वर्षों में सबसे प्रदूषित दिवाली रही और शोर का स्तर पिछले 3 वर्षों में सबसे अधिक रहा। लोगों का दम घुटता रहा पर दिल्ली सरकार की परंपरा का निर्वाह हो गया और सर्वोच्च न्यायालय के उद्योगों का हित भी सध गया।
दिवाली की परंपरा के निर्वाह तो मद्य प्रदेश और बिहार में भी स्पष्ट हो गया। मध्य प्रदेश में दिवाली की रात कार्बाइड गन, जिससे विस्फोट किया जाता है, को चलाने से 120 से अधिक बच्चे अस्पताल पहुंच गए जिनमें से 12 से अधिक बच्चों की आंखों की रोशनी हमेशा के लिए चली गई। बिहार के पटना में दिवाली की रात 50 से अधिक बच्चों की आँखों की रोशनी चली गई।
अब दिवाली का दिल्ली सरकार का तमाशा खत्म हो गया और छठ का शुरू हो गया। यमुना की सफ़ाई का दिखावा शुरू हो गया। इसमें बहता काला बदबूदार पानी को छठ के नाम पर अमृत में बदल दिया जाएगा। यदि यमुना में प्रदूषण और झाग नियंत्रित नहीं हुआ तो इसे विपक्ष की साजिश करार दिया जाएगा, देश के सम्मान के साथ खिलवाड़ बताया जाएगा, प्रधानमंत्री मोदी की बेइज्जती करार दिया जाएगा।
मार्च में जल संसाधनों पर संसद की स्टैन्डिंग कमिटी ने एक रिपोर्ट में बताया था कि दिल्ली में यमुना नदी का अस्तित्व लगभग नहीं के बराबर है और इसमें घुलित आक्सिजन के नहीं होने के कारण इसमें जलीय जीवन को पालने की क्षमता नहीं है। यदि दिल्ली से निकलने वाले गंदे पानी यानि घरेलू मलजल और औद्योगिक गंदे जल की हरेक बूंद भी निर्धारित मानकों के अनुसार साफ कर भी यमुना में डाला जाए तब भी यमुना का अस्तित्व बचाना कठिन है।
दिल्ली की बीजेपी सरकार के पास यमुना को साफ करने की वही घिसीपीटी योजना है, जिससे नदियां साफ नहीं होतीं बल्कि प्रदूषण और बढ़ जाता है। पर, बीजेपी सरकार तमाम रंगीन पोस्टरों पर प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता की तस्वीरों के सहारे हमें बताती रहेगी कि यमुना साफ हो गई है और अति-उत्साही मीडिया रिपोर्टर यमुना का पानी पीकर दिखाएंगें कि पानी कितना साफ है, भले ही इसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़े। जनता भी बदबूदार यमुना के किनारे खड़ी होकर पोस्टरों को देखकर जय श्री राम का जयकारा लगाएगी।
नदियां एक थर्मामीटर की तरह हैं जो पृथ्वी की सतह की स्थिति से अवगत कराती हैं। मनुष्य जो भी गतिविधि पृथ्वी की सतह पर करता है उसका संवेदनशील सूचक नदियाँ हैं। नदियां कृषि, उद्योग, मनोरंजन, पर्यटन और यातायात का आधार हैं, फिर भी सरकारें और नागरिक इनकी लगातार उपेक्षा करते जा रहे हैं। दिल्ली और केंद्र सरकार तो एक कदम आगे है – इसे कहीं अपना प्रदूषण नजर नहीं आता, सब विपक्ष की देन है, सत्ता के खिलाफ साजिश है, मोदी जी की छवि धूमिल करने का षड्यन्त्र है। अब तो न्यायालय भी पर्यावरण संरक्षण से अधिक उद्योगों के हित की बात करने लगे हैं।
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