New Delhi, 27 सितंबर . छोटी आंत, जिसे अंग्रेज़ी में स्मॉल इंटेस्टाइन कहा जाता है, हमारे पाचन तंत्र का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है. यह हमारे खाए हुए भोजन से मिलने वाली असली ऊर्जा का स्रोत है. आयुर्वेद में इसे अन्नवाह स्रोतस का मूल स्थान माना गया है.
छोटी आंत पेट के निचले हिस्से में स्थित एक लंबी नली के रूप में होती है, जिसकी लंबाई लगभग 6 मीटर (20 फीट) तक होती है. इसे तीन हिस्सों में बांटा गया है—डुओडेनम (ग्रसनी), जेजुनम और इलियम. डुओडेनम पहला हिस्सा है, जहां भोजन पाचक रस और बाइल से पचता है, जेजुनम मध्य भाग है जहां अधिकांश पोषक तत्व अवशोषित होते हैं, और इलियम अंतिम हिस्सा है जहां विटामिन बी12 और पित्त लवण शरीर में समाहित होते हैं.
नाम छोटा होने के बावजूद इसकी भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है. यह शरीर को मिलने वाले लगभग 90% पोषक तत्वों का अवशोषण करता है, जिनमें विटामिन, मिनरल्स, प्रोटीन, फैट्स और कार्बोहाइड्रेट शामिल हैं. इसकी अंदरूनी सतह पर मौजूद विल्ली और माइक्रोविल्ली प्रोजेक्शंस सतह क्षेत्र को लगभग 250-300 वर्ग मीटर तक बढ़ा देते हैं, जो एक टेनिस कोर्ट जितना होता है. छोटी आंत से अवशोषित ग्लूकोज पूरे शरीर की कोशिकाओं को ऊर्जा प्रदान करता है.
इसके अलावा, छोटी आंत शरीर की लगभग 70% रोग प्रतिरोधक शक्ति का केंद्र भी है. यह हानिकारक बैक्टीरिया और वायरस से सुरक्षा प्रदान करती है. इसे सेकंड ब्रेन भी कहा जाता है क्योंकि इसमें एंटेरिक नर्वस सिस्टम होता है, जो स्वतंत्र रूप से काम कर सकता है और दिमाग से लगातार जुड़ा रहता है. छोटी आंत की लगातार हल्की मांसपेशीय गति, जिसे पेरिस्टल्सिस कहा जाता है, भोजन को धीरे-धीरे आगे बढ़ाती है और पाचन प्रक्रिया को सुचारू बनाए रखती है.
छोटी आंत में मौजूद माइक्रोबायोम अच्छे बैक्टीरिया का घर है, जो पाचन, विटामिन उत्पादन और इम्यूनिटी को संतुलित करता है. हालांकि, शराब, धूम्रपान, अत्यधिक जंक फूड और एंटीबायोटिक्स इसकी लाइनिंग को नुकसान पहुंचाकर लीकी गट सिंड्रोम जैसी समस्याएं पैदा कर सकते हैं. छोटी आंत में समस्या होने पर अक्सर लोग इसे गैस, एसिडिटी या अपच समझकर नजरअंदाज कर देते हैं, जबकि यह सेलियक डिजीज, क्रॉन डिजीज और इंटेस्टाइनल टीबी जैसी गंभीर बीमारियों का संकेत भी हो सकता है.
घरेलू और आयुर्वेदिक उपायों से छोटी आंत को स्वस्थ रखा जा सकता है. सुबह गुनगुना पानी पीना, रात में त्रिफला चूर्ण लेना, भोजन के बाद अजवाइन और सौंफ का सेवन, हल्दी वाला दूध पीना और योगासनों जैसे पवनमुक्तासन, मकरासन और भुजंगासन का अभ्यास करने से यह मजबूत और सक्रिय रहती है. इन उपायों से पाचन सुधरता है, इम्यूनिटी बढ़ती है और आंतों में सूजन और संक्रमण से सुरक्षा मिलती है.
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पीआईएम/डीएससी
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