टाटा ट्रस्ट्स के अंदर चल रहा बोर्डरूम विवाद अब नए मोड़ पर पहुंच गया है। इस हफ्ते सरकार ने बीच में आकर मामले को शांत कराने की कोशिश की और अब ट्रस्ट्स के डायरेक्टर्स आज (10 अक्टूबर) एक अहम बैठक करने जा रहे हैं। दरअसर, टाटा ट्रस्ट्स वही संस्था है जो भारत के सबसे पुराने और प्रतिष्ठित बिजनेस ग्रुप- टाटा ग्रुप को इनडायरेक्ट रूप से कंट्रोल करती है। सरकारी स्तर पर बुधवार को ट्रस्ट्स और टाटा संस (ग्रुप की होल्डिंग कंपनी) के प्रतिनिधियों के बीच बातचीत हुई, जहां अधिकारियों ने दोनों पक्षों से आपसी मतभेद सुलझाने और कंपनी के कामकाज में किसी तरह की रुकावट न आने देने की अपील की।
विवाद की शुरुआत तब हुई जब टाटा ट्रस्ट्स के कुछ सदस्यों ने भारत के पूर्व रक्षा सचिव विजय सिंह को टाटा संस के बोर्ड से नॉमिनी डायरेक्टर के पद से हटा दिया। इसके साथ ही उन्होंने एक और बोर्ड सदस्य वेनु श्रीनिवासन को भी हटाने की कोशिश की। बताया जा रहा है कि ये दोनों लोग नोएल टाटा के करीबी माने जाते हैं, जो फिलहाल टाटा ट्रस्ट्स के चेयरमैन हैं। इसलिए इस कार्रवाई को ट्रस्ट्स के अंदरूनी सत्ता संघर्ष से जोड़कर देखा जा रहा है। फिलहाल, टाटा ट्रस्ट्स और टाटा संस दोनों की तरफ से इस पूरे मामले पर कोई ऑफिशियल बयान नहीं आया है।
टाटा ट्रस्ट्स के पास टाटा संस में बड़ी हिस्सेदारी
टाटा ट्रस्ट्स, टाटा संस कंपनी में 66% हिस्सेदारी के मालिक हैं। इसका मतलब है कि उन्हें टाटा संस के बोर्ड में एक-तिहाई सदस्य खुद चुनने का अधिकार है। ट्रस्ट्स के पास इतना अधिकार भी है कि वे टाटा संस के किसी बड़े फैसले को रोक (वीटो कर) सकते हैं। यही वजह है कि कंपनी की स्ट्रैटेजी और उपरी स्तर पर होने वाली नियुक्तियों पर ट्रस्ट्स का बहुत प्रभाव रहता है। अब यही ताकत ट्रस्ट्स के भीतर चल रही खींचतान का कारण बन गई है। किसे हटाना है, किसे बोर्ड में रखना है - इन बातों पर ट्रस्ट के अंदर ही मतभेद पैदा हो गए हैं।
अगर टाटा ट्रस्ट्स के अंदर यह झगड़ा और बढ़ता है, तो इसका असर सिर्फ टाटा संस तक नहीं रहेगा, बल्कि पूरे टाटा ग्रुप पर पड़ेगा। टाटा ग्रुप में 26 कंपनियां शेयर बाजार में लिस्टेड हैं और 2024-25 में इन सभी कंपनियों की कुल कमाई 180 बिलियन डॉलर (करीब 15 लाख करोड़ रुपए) से भी ज्यादा रही है।
टाटा संस के IPO पर बंटा ट्रस्टियों का मत
सूत्रों के मुताबिक, टाटा ट्रस्ट्स के डायरेक्टर्स के बीच चल रहे विवाद की एक बड़ी वजह टाटा संस का संभावित IPO (शेयर बाजार में लिस्टिंग) है। भारतीय रिजर्व बैंक ने पहले टाटा संस को 'अपर-लेयर नॉन-बैंक फाइनेंशियल कंपनी' के रूप में क्लासिफाइड किया था। इस कैटेगरी में आने वाली कंपनियों को जरूरी रूप से शेयर बाजार में लिस्ट होना पड़ता है। कुछ ट्रस्टियों को डर है कि अगर टाटा संस पब्लिक हो गई, तो उनकी वीटो (महत्वपूर्ण फैसले रोकने की ताकत) कमजोर हो जाएगी। इसके अलावा, कंपनी पर सख्त कॉरपोरेट गवर्नेंस नियम लागू हो जाएंगे और टेकओवर (अधिग्रहण) का खतरा भी बढ़ सकता है।
ट्रस्टियों को यह भी चिंता है कि IPO के बाद 'मेजोरिटी ऑफ माइनॉरिटी' (अल्पसंख्यक निवेशकों के बहुमत से फैसले) जैसे नियमों के चलते, शापूरजी पालोनजी ग्रुप की भूमिका और प्रभाव बढ़ सकता है। इससे टाटा ट्रस्ट्स की ताकत घटकर, टाटा संस के बोर्ड और पब्लिक निवेशकों के पास ज्यादा नियंत्रण जा सकता है। हालांकि, यह मुद्दा फिलहाल टल गया है। टाटा संस को उम्मीद है कि साल के अंत तक RBI की ओर से नई गाइडलाइंस आएंगी, जिनसे शायद होल्डिंग कंपनी को IPO की अनिवार्यता से छूट मिल सकती है।
शांतिपूर्ण समाधान की कोशिश
ट्रस्टियों ने टाटा संस के चेयरमैन एन. चंद्रशेखरन से कहा है कि वह शापूरजी पालोनजी ग्रुप से बातचीत शुरू करें, ताकि समूह से उनका शांतिपूर्ण तरीके से बाहर निकलना संभव हो सके। अगर IPO में देरी होती है, तो सबसे ज्यादा नुकसान शापूरजी पालोनजी ग्रुप को हो सकता है। उनके पास टाटा संस में 18.37% हिस्सेदारी है, जिसे वे बेचना चाहते हैं ताकि अपनी भारी कर्जदारी को कम किया जा सके। कोविड महामारी के बाद कंपनी की वित्तीय हालत और बिगड़ गई है और अब उनके पास टाटा संस की हिस्सेदारी ही एक बड़ा संपत्ति के रूप में बचा है, जिसे भुनाने की कोशिश की जा रही है।
फिलहाल, टाटा ट्रस्ट्स ने कोई ठोस प्रस्ताव या योजना नहीं दी है, लेकिन शापूरजी ग्रुप कई ऑप्शनों की तलाश में है। इसमें यह भी शामिल है कि टाटा संस उनकी हिस्सेदारी को आंशिक या पूरी तरह खरीद ले। ब्लूमबर्ग की अगस्त रिपोर्ट के मुताबिक, शापूरजी ग्रुप टाटा संस में हिस्सेदारी बेचकर जो पैसे हासिल करेगा, उसका एक हिस्सा अपने इंफ्रास्ट्रक्चर यूनिट के कर्ज चुकाने में लगाएगा, ताकि ब्याज दरों का बोझ कम हो सके।
विवाद की शुरुआत तब हुई जब टाटा ट्रस्ट्स के कुछ सदस्यों ने भारत के पूर्व रक्षा सचिव विजय सिंह को टाटा संस के बोर्ड से नॉमिनी डायरेक्टर के पद से हटा दिया। इसके साथ ही उन्होंने एक और बोर्ड सदस्य वेनु श्रीनिवासन को भी हटाने की कोशिश की। बताया जा रहा है कि ये दोनों लोग नोएल टाटा के करीबी माने जाते हैं, जो फिलहाल टाटा ट्रस्ट्स के चेयरमैन हैं। इसलिए इस कार्रवाई को ट्रस्ट्स के अंदरूनी सत्ता संघर्ष से जोड़कर देखा जा रहा है। फिलहाल, टाटा ट्रस्ट्स और टाटा संस दोनों की तरफ से इस पूरे मामले पर कोई ऑफिशियल बयान नहीं आया है।
टाटा ट्रस्ट्स के पास टाटा संस में बड़ी हिस्सेदारी
टाटा ट्रस्ट्स, टाटा संस कंपनी में 66% हिस्सेदारी के मालिक हैं। इसका मतलब है कि उन्हें टाटा संस के बोर्ड में एक-तिहाई सदस्य खुद चुनने का अधिकार है। ट्रस्ट्स के पास इतना अधिकार भी है कि वे टाटा संस के किसी बड़े फैसले को रोक (वीटो कर) सकते हैं। यही वजह है कि कंपनी की स्ट्रैटेजी और उपरी स्तर पर होने वाली नियुक्तियों पर ट्रस्ट्स का बहुत प्रभाव रहता है। अब यही ताकत ट्रस्ट्स के भीतर चल रही खींचतान का कारण बन गई है। किसे हटाना है, किसे बोर्ड में रखना है - इन बातों पर ट्रस्ट के अंदर ही मतभेद पैदा हो गए हैं।
अगर टाटा ट्रस्ट्स के अंदर यह झगड़ा और बढ़ता है, तो इसका असर सिर्फ टाटा संस तक नहीं रहेगा, बल्कि पूरे टाटा ग्रुप पर पड़ेगा। टाटा ग्रुप में 26 कंपनियां शेयर बाजार में लिस्टेड हैं और 2024-25 में इन सभी कंपनियों की कुल कमाई 180 बिलियन डॉलर (करीब 15 लाख करोड़ रुपए) से भी ज्यादा रही है।
टाटा संस के IPO पर बंटा ट्रस्टियों का मत
सूत्रों के मुताबिक, टाटा ट्रस्ट्स के डायरेक्टर्स के बीच चल रहे विवाद की एक बड़ी वजह टाटा संस का संभावित IPO (शेयर बाजार में लिस्टिंग) है। भारतीय रिजर्व बैंक ने पहले टाटा संस को 'अपर-लेयर नॉन-बैंक फाइनेंशियल कंपनी' के रूप में क्लासिफाइड किया था। इस कैटेगरी में आने वाली कंपनियों को जरूरी रूप से शेयर बाजार में लिस्ट होना पड़ता है। कुछ ट्रस्टियों को डर है कि अगर टाटा संस पब्लिक हो गई, तो उनकी वीटो (महत्वपूर्ण फैसले रोकने की ताकत) कमजोर हो जाएगी। इसके अलावा, कंपनी पर सख्त कॉरपोरेट गवर्नेंस नियम लागू हो जाएंगे और टेकओवर (अधिग्रहण) का खतरा भी बढ़ सकता है।
ट्रस्टियों को यह भी चिंता है कि IPO के बाद 'मेजोरिटी ऑफ माइनॉरिटी' (अल्पसंख्यक निवेशकों के बहुमत से फैसले) जैसे नियमों के चलते, शापूरजी पालोनजी ग्रुप की भूमिका और प्रभाव बढ़ सकता है। इससे टाटा ट्रस्ट्स की ताकत घटकर, टाटा संस के बोर्ड और पब्लिक निवेशकों के पास ज्यादा नियंत्रण जा सकता है। हालांकि, यह मुद्दा फिलहाल टल गया है। टाटा संस को उम्मीद है कि साल के अंत तक RBI की ओर से नई गाइडलाइंस आएंगी, जिनसे शायद होल्डिंग कंपनी को IPO की अनिवार्यता से छूट मिल सकती है।
शांतिपूर्ण समाधान की कोशिश
ट्रस्टियों ने टाटा संस के चेयरमैन एन. चंद्रशेखरन से कहा है कि वह शापूरजी पालोनजी ग्रुप से बातचीत शुरू करें, ताकि समूह से उनका शांतिपूर्ण तरीके से बाहर निकलना संभव हो सके। अगर IPO में देरी होती है, तो सबसे ज्यादा नुकसान शापूरजी पालोनजी ग्रुप को हो सकता है। उनके पास टाटा संस में 18.37% हिस्सेदारी है, जिसे वे बेचना चाहते हैं ताकि अपनी भारी कर्जदारी को कम किया जा सके। कोविड महामारी के बाद कंपनी की वित्तीय हालत और बिगड़ गई है और अब उनके पास टाटा संस की हिस्सेदारी ही एक बड़ा संपत्ति के रूप में बचा है, जिसे भुनाने की कोशिश की जा रही है।
फिलहाल, टाटा ट्रस्ट्स ने कोई ठोस प्रस्ताव या योजना नहीं दी है, लेकिन शापूरजी ग्रुप कई ऑप्शनों की तलाश में है। इसमें यह भी शामिल है कि टाटा संस उनकी हिस्सेदारी को आंशिक या पूरी तरह खरीद ले। ब्लूमबर्ग की अगस्त रिपोर्ट के मुताबिक, शापूरजी ग्रुप टाटा संस में हिस्सेदारी बेचकर जो पैसे हासिल करेगा, उसका एक हिस्सा अपने इंफ्रास्ट्रक्चर यूनिट के कर्ज चुकाने में लगाएगा, ताकि ब्याज दरों का बोझ कम हो सके।
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